रिपोर्ट – सज्जाद अली नायाणी
विदेश – अमरीकी प्रंतिनिधि सभा ने 16 के मुक़ाबले में 405 वोटों से एक प्रस्ताव पारित करके यह पुष्टि की कि आर्मीनियन्स का क़त्ले आम हुआ था और साथ ही राष्ट्रपति ट्रम्प की ओर से तुर्की पर लगाए गए कई प्रतिबंधों को भी स्वीकृति दे दी। तुर्की से इम्पोर्ट किए जाने वाले फ़ौलाद और स्टील पर अमरीका ने कस्टम ड्यूटी भी बढ़ा दी है।
तुर्की के रक्षा मंत्रालय और ऊर्जा मंत्रालय पर प्रतिबंध लगाए गए हैं और साथ ही बड़ी संख्या में तुर्क अधिकारियों पर प्रतिबंध लगाए गए हैं।
राष्ट्रपति अर्दोग़ान ने तो कहा कि अमरीका के इस क़दम की कोई क़ीमत नहीं है जबकि तुर्क विदेश मंत्री मौलूद चावुश ओग़लू ने अमरीकी राजदूत को तलब करके आपत्ति दर्ज कराई।
तुर्की बार बार कहता है कि वर्ष 1914 से 1923 के बीच पंद्रह लाख आर्मीनियन्स के सिस्टमेटिक क़त्ले आम का आरोप ग़लत है क्योंकि इनमें से लाखों आर्मीनियन्स और तुर्की पहले विश्व युद्ध की लड़ाई में मारे गए थे। लेकिन फ़्रांस और कई यूरोपीय देशों के बाद अब अमरीका का इस क़त्ले आम की पुष्टि कर देना आर्मीनियन्स के पक्ष को मज़बूत करने की कार्यवाही है जिसके बाद आर्मीनियन्स को यह अधिकार होगा कि वह तुर्की से हरजाने की मांग कर दें।
अमरीका और तुर्की के संबंधों में तनाव और टकराव नया नहीं है। यह कई साल से चल रहा है और ख़ास तौर पर तब इसमें तेज़ी आ गई जब तुर्की ने रूस से एस-400 ख़रीदने की शुरुआत की बल्कि इससे भी कई क़दम आगे जाकर रूस से सोख़ोई-35 युद्धक विमान ख़रीदने की बात भी शुरू कर दी। मगर दोनों देशों के संबंधों में यह नया विस्फोट जो हुआ है उसका कारण हमारे विचार में यह है कि उत्तरी सीरिया के बारे में अमरीका के साथ अपने समझौते को दरकिनार करते हुए तुर्की ने रूस से नया समझौता किया जिसके आधार पर कुर्द फ़ोर्सेज़ सीमावर्ती इलाक़ों से पीछे हटीं और वहां रूस तथा तुर्की की सैनिक पुलिस की संयुक्त गश्त शुरू हो गई।
तुर्की धीरे धीरे नैटो से अलग होता जा रहा है और उसने मास्को के साथ मज़बूत रणनैतिक साझेदारी शुरू कर दी है जिसके नतीजे में अमरीका के साथ जो नैटो का मुखिया है तुर्की के संबंध बहुत ख़राब हो गए हैं।
जब अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने तुर्क राष्ट्रपति अर्दोग़ान को अपमानजनक स्वर में ख़त लिखा और उन्हें ज़िद्दी और मूर्ख कहा, तुर्की की अर्थ व्यवस्था को ध्वस्त कर देने की धमकी दी तभी से यह बात स्पष्ट हो चुकी थी कि दोनों देशों के संबंध बेहद ख़राब हो चुके हैं।
अब सवाल यह है कि अमरीकी प्रतिबंधों से तुर्की को कितना राजनैतिक और आर्थिक नुक़सान पहुंचेगा और राष्ट्रपति अर्दोग़ान इसके जवाब में क्या क़दम उठाएंगे?
इन सवालों के जवाब दे पाना कठिन है लेकिन आरंभिक संकेत यह है कि तुर्क लीरे की क़ीमत में दशमलव 2 प्रतिशत की गिरावट हुई है, यानी तुर्क इकानोमी को नुक़सान पहुंचना तय है लेकिन कितना नुक़सान पहुंचेगा यह अभी स्पष्ट नहीं है।
तुर्क इकानोमी में इस समय स्थिरता पायी जाती है। नए साल में तुर्की के निर्यात में 11 प्रतिशत की वृद्धि हुई और मुद्रा स्फीति की दर दस प्रतिशत से कम हो गई। जारी वर्ष की तीन तिमाहियों में तुर्की को पर्यटन से होने वाली आमदनी 44 अरब डालर तक पहुंची है। लेकिन इस बात की पूरी संभावना मौजूद है कि ट्रम्प एक बार फिर तुर्की की अर्थ व्यवस्था को बड़ा नुक़सान पहुंचा दें।
राष्ट्रपति अर्दोग़ान अगर इन प्रतिबंधों का सामना करना चाहते हैं तो उन्हें मध्यपूर्व में अमरीकी नीतियों को बदलना होगा क्योंकि इन नीतियों से उन्होंने विशेष रूप से सीरिया के मामले में अपने बहुत सारे दुशमन बना लिए हैं।
यह तय है कि रुस से स्ट्रैटेजिक एलायंस तुर्की के लिए ढाल का काम करेगा लेकिन अर्दोग़ान को अभी इससे बढ़कर बहुत कुछ करने की ज़रूरत है। उन्हें सीरिया से अपने संबंध अच्छे करने होंगे।
अमरीका ने तुर्की यानी उस घटक के खिलाफ़ आर्थिक युद्ध का एलान कर दिया है जिसने सीरिया पर थोपे गए युद्ध में अमरीका का भरपूर साथ दिया था। इसका मतलब यह है कि अमरीका ने केवल कुर्दों की पीठ में छुरा नहीं घोंपा बल्कि तुर्की की पीठ को भी भेद दिया है। इसका जवाब यह है कि अर्दोग़ान भी अब नए मज़बूत एलायंस बनाएं। क्या अर्दोग़ान यह काम करेंगे?
साभार रायुल यौम