विदेश – अरब दुनिया के विख्यात टीकाकार अब्दुल बारी अतवान का जायज़ाः इस्राईली प्रधानमंत्री बिनयामिन नेतनयाहू जिनकी सत्ता का समापन हो चुका है इन दिनों बड़ी मेहनत से कुछ अरब देशों के साथ इस्राईल के दोस्ताना संबंधों की बातें बार बार कर रहे हैं। इसके लिए उन्होंने भ्रामक बयानों का सहारा लिया है।
उनकी कोशिश यह है कि इलाक़े में ईरान और उसके घटकों की लगातार बढ़ती ताक़त और इस्राईल के सिमटते प्रभाव और सामरिक वर्चस्व से इस्राईल के भीतर फैले भय को किसी तरह दूर करें।
नेतनयाहू ईरान के बढ़ते ख़तरे और ईरान से इस्राईल के टकराव की संभवना का बड़े पैमाने पर प्रचार कर रहे हैं लेकिन ख़ास बात यह है कि उनके इस प्रचार से कहीं अधिक तेज़ी से इलाक़े के देशों में राजनैतिक परिवर्तन आगे बढ़ रहे हैं। सीरिया में भी, यमन युद्ध के संबंध में भी और अरब देशों से ईरान के बढ़ते संबंधों के आयाम से भी राजनैतिक परिवर्तनों में बहुत तेज़ी आ गई है।
हम अपनी बात इस भूमिका से शुरू कर रहे हैं क्योंकि यह हमारी नज़र में ज़रूरी हैं। इस्राईली विदेश मंत्री यसराईल काट्स के ट्वीटर एकाउंट पर यह ख़बर लीक की गई कि उन्होंने फ़ार्स खाड़ी के अरब देशों के विदेश मंत्रियों के सामने न्यूयार्क में होने वाली मुलाक़ातों में यह प्रस्ताव रखा कि आपस में अनाक्रमण संधि कर ली जाए।
इस्राईली विदेश मंत्री ने जान बूझकर भ्रामक ट्वीट किया है क्योंकि फ़ार्स खाड़ी के अरब देशों में तो कुवैत भी शामिल है और कुवैत ने इस प्रकार की एक भी मुलाक़ात नहीं की है। इस्राईल के मुद्दे पर कुवैत की सरकार, जनता और संसद सब एक साथ हैं। इसलिए कुवैत कभी भी इस्राईल के साथ राजनैतिक, व्यापारिक या किसी भी प्रकार का समझौता नहीं कर सकता अनाक्रमण संधि की तो बात बहुत दूर है। इसके अलावा ओमान और क़तर फ़ार्स खाड़ी के वह देश हैं जिनके संबंध ईरान से बहुत अच्छे हैं वैसे यह दोनों देश इस्राईल के साथ संबंधों के मामले में किसी हद तक आगे गए हैं।
एक और बिंदु यह है नेतनयाहू अगर इन अरब देशों से अनाक्रमण संधि करना चाहते हैं तो सवाल यह है कि इस्राईल के साथ इन देशों का कौन सा युद्ध चल रहा है कि उन्हें इस संधि की ज़रूरत पड़ गई है। इन अरब देशों में तो अमरीका, फ़्रांस और ब्रिटेन की सैनिक छावनियां हैं।
इस्राईली अधिकारियों पर ईरान और उसके घटकों की लगातार बढ़ती सामरिक शक्ति का इतना भय सवार हो गया है कि वह इलाक़े में होने वाले हालिया परिवर्तनों को पढ़ नहीं पा रहे हैं। एक बहुत बड़े परिवर्तन का लक्षण ईरान के वरिष्ठ कमांडर क़ासिम रेज़ाई के बयान में देखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि अरब देशों से ईरान के संबंध अच्छे हैं, विशेष रूप से इमारात, क़तर, कुवैत और ओमान से तो बहुत अच्छे संबंध हैं। हालिया दिनों की बैठकों में बड़े अच्छे समझौतों के बारे में सहमति बनी है।
अगर इस्राईली विदेश मंत्री काट्स को हमारी इस बात में संदेह है तो हम उनका ध्यान इमारात के विदेशी मामलों के राज्यमंत्री अनवर क़रक़ाश के बयान की ओर केन्द्रित करवाना चाहेंगे। उन्होंने अबू धाबी स्ट्रैटेजिक बैठक में कहा कि ईरान के साथ तनाव बढ़ाने के बजाए कूटनैतिक प्रयासों से मामलों को सुलझाने की ज़रूरत है। क़रक़ाश ने यह भी कहा कि हौसी यमन के समाज का हिस्सा हैं और इस देश के भविष्य में उनकी भूमिका होगी।
बात यह है कि फ़ार्स खाड़ी के अधिकतर अरब देश उस ईरानोफ़ोबिया से बाहर निकलने लगे हैं जिसे अमरीका और इस्राईल इस्तेमाल करके अरब देशों को आतंकित रखते थे और उनका दोहन करते थे। इन देशों ने अब ईरान के साथ वार्ता के चैनल खोलने शुरू कर दिए हैं और यही विवेकपूर्ण शैली है। सऊदी अरब भी जो हमेशा ईरान से दुशमनी की तलवार लहराता रहता है अब अपनी नीतियों से पीछे हट रहा है। उसने भी मध्यस्थों को तेहरान भेजा है कि वार्ता का रास्ता खुले। मसक़त में हौसियों से सऊदी अरब की गुप्त वार्ता भी चल रही है।
तो अब इस्राईल के लिए ज़रूरी हो गया है कि अरब देशों से नहीं बल्कि ईरान और उसके घटकों से अनाक्रमण संधि की कोशिश करे। शायद वाशिंग्टन में इस्राईली राजदूत माइकल ओरन ने जो इंटरव्यू दिया कि एक सप्ताह के भीतर इस्राईली मंत्रिमंडल की युद्ध कमेटी की दो बार बैठकें हुईं तो इसका उद्देश्य ईरान, हिज़्बुल्लाह, सीरिया और जेहादे इस्लामी और हमास जैसे फ़िलिस्तीनी संगठनों और इराक़ की हश्दुश्शअबी फ़ोर्स की मिसाइल ताक़त का मुक़ाबला करने के तरीक़े पर चर्चा करना रहा होगा क्योंकि इन सारी ताक़तों की ओर से अगर इस्राईल पर मिसाइल बरसने लगे तो रोज़ाना चार हज़ार मिसाइल गिरेंगे और इस्राईल का कोई भी कोना सुरक्षित नहीं रहेगा।
आज के हालात में तो इस्राईल के क़रीब जाना भी ख़तरनाक हो गया है उससे अनाक्रमण संधि की तो बात ही अलग है क्योंकि इलाक़े में ताक़त का संतुलन पूरी तरह बदल गया है।
साभार पार्सटूडे