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Friday, May 3, 2024

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आपकी अभिव्यक्ति : कैराना विधानसभा चुनाव और मतदाताओं के ध्रुवीकरण पर विशेष – भोलानाथ मिश्र

कुल वोटर :17 लाख
मुसलमान : 5.5 लाख

विधानसभा चुनावों के दौर में आज देश के विभिन्न राज्यों में विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों के लिए मतदान हो रहा है।इनमें उत्तर प्रदेश का कैराना विधानसभा क्षेत्र का चुनाव सबसे महत्वपूर्ण एवं रोचक अंदाज में हो रहा है और पक्ष विपक्ष दोनों इस पर फतह पाने के लिये हर तरह की कुर्बानी दे रहे हैं।यहाँ पर करीब17 लाख मतदाता है जिसमें सबसे ज्यादा करीब साढ़े पांच लाख मुस्लिम मतदाता है।इसके अलावा करीब दो लाख दलित, चार लाख पिछड़ी जाति जैसे जाट, सैनी, प्रजापति, कश्यप आदि आते हैं। यहाँ पर करीब 4 लाख गुर्जर , 1लाख तीस हज़ार राजपूत,75 हजार ब्राह्मण और करीब60 हजार वैश्य है। भाजपा और विपक्ष इन्हीं मतदाताओं के सहारे चुनावी वैतरणी पार करना चाहता है।कैराना विधानसभा क्षेत्र में शुरू महाभारत का फैसला आज मतदाता भगवान कर रहा है।


बीजेपी की बात करें तो पार्टी ने जाट और राजपूत वोटों को सबसे पहले निशाना बनाया है। जाट गांवों में एचआरडी मंत्री चौधरी सतपाल और केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान दौरा कर चुके हैं। दोनों ही मुजफ्फरनगर दंगों के बाद इलाके में बने जाट बनाम मुस्लिम समीकरण को भुनाने की कोशिश कर चुके हैं। कैराना चुनाव में हिंदू पलायन के मुद्दे को बालियान लगातार जनसभाओं में उठाया और मीडिया में भी इसे इलाके का मुद्दा बनाकर पेश किया गया हैं। उधर बागपत से एमपी सत्यपाल सिंह भी जाटों को भाजपा के पक्ष में करने के लिए लगातार क्षेत्र में दौरा कर चुके हैं। पूर्व सासंद और क्षेत्र के कद्दावर जाट नेता रहे हुकुम सिंह की बेटी मृगांका को टिकट देकर भाजपा ने सहानुभूति कार्ड खेला है। हुकुम सिंह कैराना से 7 बार विधायक रहे और 2014 में लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं। हालांकि मृगांका ने पिता की छोड़ी कैराना विधानसभा सीट 2017 में तबस्सुम के बेटे नाहिद हसन से हार गई थीं।क्षेत्र के गूजरों और राजपूतों को भाजपा अपने पक्ष में लाने के लिए प्रदेश के गन्ना मंत्री सुरेश राणा और संगीत सोम को ज़िम्मेदारी दी गई थी। ये दोनों खुद ही राजपूत समुदाय से आते हैं. इस सीट पर इन दो जातियों के वोटों की संख्या भी डेढ़ लाख के आस-पास मानी जाती है।ब्राह्मण और वैश्य जिन्हें भाजपा के परंपरागत मतदाता माना जाता है उनसे पार्टी के नेता काफी आश्वस्त नज़र आ रहे हैं। मुख्यमंत्री की एनकाउंटर अभियान के चलते इस इलाके के कुख्यात मुकीम काला गैंग की भी कमर टूटी है जिससे व्यापारी वर्ग ने राहत की सांस ली है।इसका लाभ भाजपा को मिलने संभावनाएं जताई जा रही हैं। मुसलमान वोटों से बीजेपी को कोई ख़ास उम्मीद नहीं है लेकिन इसमें सेंध लगाने के लिए आरएलडी उम्मीदवार तबस्सुम हसन के देवर कंवर हसन के निर्दलीय खड़े होने के पीछे भाजपा की साजिश माना जा रहा है। कंवर हसन वही हैं जिनके चलते 2014 लोकसभा चुनाव में तबस्सुम के बेटे नाहिद हसन को हुकुम सिंह के हाथों हार का सामना करना पड़ा था। उस चुनाव में नाहिद दूसरे जबकि बसपा के टिकट पर कंवर तीसरे नंबर पर आए थे। हालांकि नाहिद ने 2017 के विधानसभा चुनावों में मृगांका को कैराना की सीट पर हराकर बदला पूरा कर लिया था।

बीजेपी इस सीट पर जिस वोट बैंक में सेंध नहीं लगा पा रही है वह हैं गैर जाट ओबीसी और दलित वोटर. सैनी, प्रजापति और कश्यप हैं जिनकी संख्या करीब ढाई लाख से ज्यादा हैं। इनमे एक हिस्सा बीजेपी जबकि एक सपा का वोट बैंक माना जाता है। इसके अलावा बीएसपी का परंपरागत वोट सहारनपुर और मेरठ में गत महीनों हुए दलितों एवं राजपूतों के संघर्ष के बाद दलित बिचुक गया है।भीम आर्मी के नेता भी रालोद के साझा प्रत्याशी तब्बसुम को अपना समर्थन दे चुके हैं। मुख्य विपक्षी दलों की एकजुटता कैराना चुनाव परिणाम के परिदृश्य को बदल सकती है।अगर सपा बसपा कांग्रेस और रालोद अपने परम्परागत मतदाताओं का ध्रुवीकरण करने में सफल हो गये तब भाजपा के सामने समस्या आ सकती है।मतदाताओं का ध्रुवीकरण कौन कितना कर पाया इसका अंदाजा मतगणना के बाद ही लगाया जा रहा है।

वरिष्ठ पत्रकार/समाजसेवी

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