33 C
Mumbai
Tuesday, May 21, 2024

आपका भरोसा ही, हमारी विश्वसनीयता !

आपकी अभिव्यक्ति – क्या हुआ तेरा वादा…..2019 भी आया निकट, अमल नहीं हुआ आधा ? —- सज्जाद अली नयाणी

“न खाऊंगा और न खाने दूंगा” वर्ष 2014 में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस देश की जनता से यही वादा किया था और देश की जनता ने उनपर पूरा विश्वास करते हुए उन्हें दिल्ली की सत्ता सौंपी थी।

जैसा कि आप सबको याद होगा कि भारत के वर्तामान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2014 के आम चुनाव में अपनी अधिकतर रैलियों और चुनाव प्रचार में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सरकार पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया करते थे और बार-बार भारत की जनता से यही वादा करते थे कि भ्रष्टाचार उनका सबसे मुख्य मुद्दा होगा और अगर वह देश के प्रधानमंत्री बनते हैं तो, ना केवल यह कि वह देश से भ्रष्टाचार को जड़ से मिटा देंगे बल्कि भ्रष्टाचारियों को ऐसी कठोर सज़ा देंगे कि कोई भ्रष्टाचार करने से पहले भी 100 बार सोचेगा।

वैसे तो नरेंद्र मोदी के द्वारा 2014 के चुनाव में जो-जो वादे किए गए थे उनमें से ज़्यादातर पूरे नहीं हो सके हैं, चाहे मंहगाई का मामला हो या रोज़गार का, अधिकतर वादे केवल वादे ही बनकर रह गए हैं, लेकिन हम बात कर रहे हैं मोदी के उस वादे की जिसपर वह बहुत अधिक बल देते थे कि “न खाऊंगा और न खाने दूंगा”मान लेते हैं कि देश के सरकारी कार्यालयों और कर्मचारियों को मोदी सरकार भ्रष्टाचार से नहीं रोक सकती है और न ही चार वर्षों का समय इतना अधिक होता है कि एक अरब से अधिक जनसंख्या वाले देश को इतनी आसानी से पूर्ण रूप से भ्रष्टाचार मुक्त बनाया जा सके।

लेकिन कहते हैं कि हमेशा किसी भी काम की शुरुआत अपने घर अपने आस-पास से करना चाहिए तभी उस काम को सही ढंग से आगे बढ़ाया जा सकता है और उसका असर भी होता है। भारत के प्रधानमंत्री ने नारा तो दिया था कि न खाऊंगा और न खाने दूंगा लेकिन इससे पहले कि वह देश की जनता तक अपने इस संदेश को पंहुचा पाते उनके ही मंत्रीमंडल के मंत्रियों और उनकी ही पार्टी के नेताओं एवं उनकी पार्टी के मुख्यमंत्रियों पर ही भ्रष्टाचार का आरोप लगने लगा। कई मामले तो ऐसे हुए की उसके सभी साक्ष्य भी सामने आ गए। ऐसे समय देश की जनता इस आशा के साथ मोदी को देख रही थी कि शायद अब भारत के प्रधानमंत्री कुछ ऐसा करें कि जो आज़ाद भारत में कभी नहीं हुआ, शायद वह भ्रष्टाचार के मामले में अपने ही मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों और पार्टी के नेताओं के ख़िलाफ़ कोई ऐसा कठोर क़दम उठाएं जो देश के लिए मिसाल बन जाए।

चलिए छोड़ते हैं पुरानी बातों को अब बात करते हैं ताज़ा मामले की जिसमें भारतीय बैंकों में करोड़ों का ग़बन करने वाला भगौड़ा बीजेपी का ही सांसद विजय माल्या स्वयं कह रहा है कि मैंने मोदी के सबसे क़रीबी और भारत के वित्त मंत्री अरूण जेटली को यह बता दिया था कि हम देश छोड़ कर लंदन जा रहे हैं, इसके बावजूद अरूण जेटली ने न तो देश की किसी सुरक्षा एजेंसी को बताया और न ही खुद देश को इतना बड़ा चूना लगाकर भागने वाले भ्रष्टाचारी को रोकने के लिए कोई क़दम उठाया। यहां यह बात बताना आवश्यक है कि पहले अरूण जेटली यह कहते आ रहे थे कि उनकी विजय माल्या से मुलाक़ात ही नहीं हुई थी लेकिन अब वह यह कह रहे हैं कि विजय माल्या ने सांसद होने का फ़ायदा उठाया और हमसे अनौपचारिक बातचीत की थी।

दूसरी ओर भारत की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी ने गुरुवार को एक प्रेसवार्ता करके इस मुद्दे को ज़ोरदार तरीक़े से उठाया और कहा कि “अरुण जेटली का यह कहना कि विजय माल्या ने उन्हें संसद के गलियारे में अनौपचारिक रूप से बात करने के लिए रोका था और दोनों के बीच कभी कोई औपचारिक बातचीत नहीं हुई यह एकदम झूठ है।”उन्होंने कहा, “यह भी झूठ है कि जब दोनों की संसद में मुलाक़ात हुई तो माल्या उनके पीछे से आए और उनसे दो-तीन शब्द बोलकर चले गए।” साथ ही कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अपने साथ एक ऐसे कांग्रेसी नेता को भी लाए थे जो माल्या और जेटली की उस मुलाक़ात का प्रत्यक्षदर्शी गवाह भी है।

पी.एल. पुनिया ने दावा किया कि बजट पेश होने के अगले दिन, 1 मार्च 2016 को विजय माल्या और अरुण जेटली की लंबी मुलाक़ात हुई थी। उन्होंने कहा, “मैं संसद के सेंट्रल हॉल में बैठा था, मैंने देखा कि अरुण जेटली जी और विजय माल्या अकेले में अंतरंग बातचीत कर रहे थे, कोने में खड़े होकर दोनों बात कर रहे थे, फिर पाँच-सात मिनट बाद दोनों बेंच पर बैठकर बात करने लगे, मुझे याद है कि विजय माल्या उस सत्र में पहली बार संसद आये थे, वह भी अरुण जेटली से मिलने के लिए आए थे।” पुनिया ने यह भी दावा किया कि दोनों के बीच क़रीब 20 मिनट चर्चा हुई थी और 3 मार्च 2016 को मीडिया में रिपोर्ट्स छपीं कि विजय माल्या देश छोड़कर लंदन चले गये हैं। पुनिया ने ये भी कहा कि संसद की सीसीटीवी फ़ुटेज निकालकर इस बात की सच्चाई का पता किया जा सकता है।

इस बीच केवल कांग्रेस ही नहीं बल्कि स्वयं भारतीय जनता पार्टी के सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने भी अरूण जेटली और विजय माल्या की मुलाक़ात पर प्रश्न चिन्ह लगाए हैं। सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा है कि विजय माल्या के बयान ने वित्त मंत्री अरुण जेटली पर संदेह पैदा किया है इसलिए मामले की जांच ज़रूरी है।  स्वामी कहते हैं कि संदेह सिर्फ माल्या के वित्त मंत्री से मिलने पर नहीं होता बल्कि वित्त मंत्रालय के उस निर्देश से पैदा होता जिसके तहत माल्या देश छोड़कर लंदन चले गए।

बहरहाल ऐसे बहुत से सवाल हैं जिनका जवाब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को स्वयं सामने आकर देना चाहिए कि क्या हुआ उनका वह वादा जिसमें उन्होंने कहा था कि “न खाऊंगा और न खाने दूंगा” यहां तो उनके ही वित्त मंत्री पर आरोप लग रहे हैं कि वह खा भी रहे हैं और खाने के साथ-साथ भागने भी दे रहे हैं।

– रविश ज़ैदी

Latest news

ना ही पक्ष ना ही विपक्ष, जनता के सवाल सबके समक्ष

spot_img
Related news

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Translate »