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Saturday, May 4, 2024

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आपकी अभिव्यक्ति – गोलों पटाखोंसे हो रहे पर्यावरण प्रदूषण और विभिन्न पर्वो पर गोला पटाखों के अंधाधुंध इस्तेमाल पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर विशेष – भोलानाथ मिश्र

भारत को पर्वो त्यौहारों एवं श्रद्धा आस्था का देश माना जाता है और भारतवंशी दुनिया में जहाँ जहाँ पर भी रहते हैं वह भारतीय पर्वो त्यौहारों को आज से नहीं बल्कि आदिकाल से परम्परागत ढंग से मनाते चले आ रहे हैं। मुख्य दो महापर्व होली में रंग खेलने फगवा गाने की परम्परा है तो दीपावली में रोशनी और पटाखे दागे जाते हैं। यह दोनों खुशी के पर्व होते हैं क्योंकि होली में ईश्वर भक्त प्रहलाद बच जाता है और उसे गोदी में लेकर जिंदा जलाने की कोशिश करने वाली होलिका का दहन हो जाता है।इसी तरह दीपावली का पर्व भगवान विष्णु श्रीराम के लंका को निशाचर मुक्त कर सीताजी के साथ वापसी की खुशी में दीपोत्सव करके मनाया गया था इसीलिए इस पर्व का विशेष महत्व है।लोग दीपावली में रोशनी के साथ गोला पटाखा दागकर तरह की पूजा पाठ अनुष्ठान तांत्रिक साधनाओं के साथ महालक्ष्मी की विशेष पूजा करते हैं। लोग दीपावाली पर नये कार्यों का शुभारंभ करते हैं और अधिक से अधिक धनलक्ष्मी अर्जित कर अपने साथ देश की आर्थिक स्थिति को मजबूती प्रदान करते हैं। मान्यता है कि महालक्ष्मी जी दीपावली की रात उन हर स्थानों पर जाती हैं जहाँ जहाँ रोशनी होती है क्योंकि प्रकाश ही उनका मूलस्वरूप माना गया है।इसी तरह नववर्ष एवं क्रिसमस के मौकों पर भी जमकर अत्यधिक प्रदूषित धुआं वाले गोला पटाखों का इस्तेमाल किया जाता है और शाम से सुबह तक नये साल का जश्न मनाया जाता है।। इधर समय के साथ साथ बड़प्पन प्रदर्शित करने की परम्परा शुरू हो गई है और गाँवों शहरों में लोग उच्च कार्बन उत्सर्जित करने एवं तेज शक्ति एवं धमाके वाले गोला पटाखें इस्तेमाल कर खुशी मनाने के नाम पर अपने धन की बर्बादी के साथ प्रदूषण पैदा करने लगे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में भले ही दीपावली के अवसर पर रात दस बजे से तक गोले पटाखे दगने बंद हो जाते हैं लेकिन शहरों में यह दौर आधी रात तक चलता रहता था और सारा वातावरण बारूद के दगने से निकलने वाले कार्बन उत्सर्जन से प्रदूषित रहता है। गोला पटाखे की आवाज लोगों की नींद हराम कर जीना मुहाल कर देती है और दिल के मरीजों की जान खतरे में पड़ जाती है।हर साल दीपावली पर गोले पटाखे के कारण तमाम लोग घायल हो जाते हैं और जगह जगह विस्फोट होने से तमाम लोगों की जान चली जाती है। पटाखों पर पूर्ण पाबंदी लगाने के लिए एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन थी जिसका विरोध सरकार एवं इस कारोबार से जुड़े लोग कर रहे थे क्योंकि इस व्यवसाय के बंद होने से इससे जुड़े लोगों के बेरोजगार होने की भी समस्या सामने थी। सुप्रीम कोर्ट द्वारा दो दिन पहले सुनाये गये अपने महत्वपूर्ण फैसले में पटाखे पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने से इंकार करते हुए पटाखों की बिक्री को नियन्त्रित करने के लिये आनलाइन बिक्री पर रोक लगा दी है।अदालत ने नये साल एवं क्रिसमिस के मौके पर रात ग्यारह पचपन से बारह तीस बजे तक ही अतिशबाजी एवं गोला पटाखा इस्तेमाल करने की अनुमति दी गई है।पर्यावरण को क्षति पहुंचाने वाले एवं अधिक धुआं पैदा करने वाले पटाखों पर रोक लगाते हुए कम धुंआ फैलाने वाले पटाखों के निर्माण एवं उसके इस्तेमाल करने की अनुमति दी गई है।इसके अलावा सर्वोच्च न्यायालय ने तमाम दिशा निर्देश देते हुए पर्यावरण के बिगड़ते स्वरूप पर चिंता व्यक्त की गई है जो स्वागत योग्य एक सराहनीय फैसला है। अब इस फैसले के बाद नववर्ष एवं क्रिसमस को छोड़कर अन्य सभी मौकों पर गोला पटाखा दागने के लिये रात आठ से साढ़े दस बजे का समय निर्धारित कर दिया गया है और इसके तत्काल मौके पर लागू कराने की जिम्मेदारी भी थाना कोतवाली प्रमुखों को सौंप दी गई है। देखना है कि पर्यावरण एवं जनजीवन से जुड़े अदालत के इस महत्वपूर्ण फैसले का क्रियान्वयन मौके पर कितना हो पाता है ?

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