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Thursday, May 2, 2024

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आपकी अभिव्यक्ति : जम्मू कश्मीर के बिगड़ते हालात और वहाँ की बेमेल सरकार के अंत पर विशेष – भोलानाथ मिश्र

आजादी के समय हुयी जरा सी चूक जम्मू कश्मीर ही नहीं बल्कि देश के लिये समस्या बन गयी है और जो भी वहाँ पर मुख्यमंत्री बनता है उसे भारत के इशारे पर नही बल्कि अलगाव वादियों आतंकी गतिविधियों में लिप्त देश द्रोहियों के इशारे पर काम करना पड़ता है। उनसे रोटी बेटी के सम्बंध रखना पड़ता है और जरूरत पड़ने पर जेल में बंद आतंंकियों को भी छुड़वाना पड़ता था है। मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की बहन रुबिया खातून ऐसी ही एक घटना की शिकार दशकों पहले हो चुकी है और उनकी रिहाई के बदले आतंकी छोड़ना पड़ चुका है। यही कारण है कि आजादी के छः दशक बीत जाने के बाद भी जम्मू कश्मीर से अपमानित करके जान लेकर भगाये गये काश्मीरी ब्राह्मणों की वापसी नहीं हो सकी है और अधिकांश वही लोग वहाँ पर बचे हैं जो अलगाववादी हैं या जो उनकी गतिविधियों का विरोध नहीं करते हैं। आजादी के बाद सत्ता में आयी विभिन्न क्षेत्रीय दलों की सरकारों के रहते हुए काश्मीरी ब्राह्मणों का पलायन उनका अपमान तथा अलगाववादी राजनीति इतनी प्रखर होकर पाकिस्तानी सरकार और वहाँ के आतंंकियों का घाटी में विस्तार शायद न हो पाता। यह दुर्भाग्य है कि आजादी के बाद से बनने वाली जम्मू कश्मीर की सरकारें अलगाववादियों एवं आतंकवादियों के चंगुल से मुक्त नहीं हो सकी और समय समय पर उनके पक्ष में कार्य भी करती रही। मोहम्मद उमर के जमाने में तो विधानसभा प्रस्ताव तक पारित करके केन्द्र के पास भेज चुकी है। इधर जम्मू कश्मीर में भाजपा के सहयोग से चल रही पीडीपी की महबूबा मुफ्ती की अगुवाई वाली सरकार काम कर रही थी। भाजपा पीडीपी गठबंधन के समय से ही लोग इसके भविष्य एवं औचित्य को लेकर तरह तरह की अटकलें लगा रहे थे क्योंकि दोनों दल के दूसरे के धुर विरोधी रहे हैं। यह बेमेल गठबंधन क्यों और किन परिस्थितियों में हुआ उसका खुलासा दो दिन पहले भाजपा के समर्थन वापसी के साथ इस्तीफा देने के बाद खुद वहाँ की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने किया है। उनकी सरकार के इस्तीफा देने के बाद जम्मू कश्मीर में 1977 के बाद संभवतः आठवीं तथा पिछले10 वर्षों में चौथी बार राष्ट्रपति शासन लगने के आसार बढ़ गये हैं क्योंकि कोई दल सरकार बनाने के लिए तैयार नहीं है। पीडीपी एवं भाजपा की बेमेल जोड़ी बनने के बाद से ही डगमग हो रही थी और कई ऐसे अवसर आये जबकि भाजपा को न चाहते हुए भी गठबंधन धर्म निभाने के नाते अलगाववादियों के प्रति नरम रुख अख्तियार करना पड़ा। इसका दुष्परिणाम हमारे बहादुर सैनिकों को झेलना पड़ा और वह महात्मा गांधी जी के तीन बंदर बनकर लात घूंसा पत्थर खाने को विवश हो गये। मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने साफ कह दिया कि इस बेमेल गठबंधन से अलगाववादियों को सरंक्षण , जेल से मुक्ति दिलाना, युद्ध विराम, धारा 370 बचाना आदि उनका लक्ष्य था। अगर देखा जाय तो मुफ्ती महबूबा अपने मकसद में करीब करीब सफल रही और उनके ऐजेंडे को काफी बल मिला। हमारी सेना पर पत्थर मारने वाले और आतंकियों के गम में सड़कों पर नंगा नाच करने वाले भूले भटके गुमराह युवक हो गये। शायद यह पहला मौका होगा जब कि दुनिया में अपनी अलग पहचान रखने वाली हमारी सेना सुरक्षा के बहादुर जवान बेचारे हो गये और घाटी में देशद्रोहियों के हाथ पीटते रह़े। सरकार बनने के बाद घाटी की हालात दिनोदिन बिगड़ते जा रहे थे और सरकार हालात सुधारने की जगह उन्हें बिगाड़ने वालों के हित में कार्य करने लगी थी।यह तय है कि राष्ट्रपति शासन लगने के बाद हमारी सेना और सुरक्षा बलों को बिना किसी दबाव आतंंकियों के सफाये का अवसर मिलेगा।

– वरिष्ठ पत्रकार / समाजसेवी

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