आगामी लोकसभा चुनावी वर्ष को देखते हुये इधर सत्ता एवं विपक्षी दलों की हमदर्दी मतदाता रूपी देशवासियों से बढ़ गई और सभी को उनकी विभिन्न समस्याओं की चिंता सताने लगी है। कोई अपने को हिन्दुओं का तो कोई अपने को मुसलमानों का सच्चा हमदर्द साबित करने में जुट गया है।इस समय सत्ता एवं विपक्ष दोनों को राम रहीम अल्लामिंया सभी याद आने लगे है और दोनों में जनता का सच्चा हितैषी साबित करने की होड़ लगी है। विपक्ष समस्याओं को कुरेद कर जनभावनाओं को भड़काने में तो सत्तादल डैमेज कंट्रोल करने में जुटा है और तरह की जुगत कर रहा है।इस समय डीजल पेट्रोल एवं गैस के मूल्यों में हो रही लगातार वृद्धि से जनमानस आक्रोशित है और उसकी नाराजगी का फायदा विपक्ष उठा रहा था।देश व्यापी आक्रोश एवं उग्र आंदोलन के बावजूद सरकार अबतक इनके मूल्य कम करने या जीएसटी के दायरे में लाने पर राजी नहीं थी और अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ रही थी। आखिरकार दो दिन पहले सरकार का दिल पसीज ही गया और देशवासियों पर तरस खाकर सरकार ने 63 रूपये से 83-84 रूपये प्रति लीटर पहुंच गये पेट्रोल एवं 35 से 50-55 पहुंच गये डीजल के मूल्यों में पहली बार 5 रूपये घटाकर आम नागरिकों पर अहसान किया है। सरकार के इस फैसले को आमजनता आगामी लोकसभा चुनाव तक जरूर याद रखेगी क्योंकि सरकार ने पहली बार उसे दुखते घाव पर मरहम का एक फाहा रखने की कोशिश की है। डीजल पेट्रोल के मूल्यों में की गई कमी ऊँट के मुँह में जीरे के समान है क्योंकि मूल्यों में रोजाना होने वाली वृद्धि पर रोक नही लगाई गयी है।अगर मूल्य वृद्धि का यही क्रम रहा तो नये साल की शुरुआत एवं आगामी लोकसभा चुनाव तक पेट्रोल सौ रूपये प्रति लीटर पहुंच जायेगा। असलियत तो यह है कि इधर डीजल पेट्रोल की आड़ में सरकार अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में जुटी है अन्यथा अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में इतनी मंहगाई नहीं है। इसीलिए सरकार इसे जीएसटी के दायरे में नहीं लाना चाहती है और आमजनता का खून चूसकर सरकारी खजाना भरा जा रहा है।सरकार द्वारा घोषित पाँच रूपये की कमी उन राज्यों में लागू होगी जहाँ पर भाजपा सरकारें हैं क्योंकि इसमें दो रूपये केन्द्र सरकार ने एक रूपया तेल कम्पनियों ने और दो रूपये राज्य सरकारों ने कम किये हैं।डीजल पेट्रोल एवं गैस के मूल्यों में हो रही इस बेतहाशा वृद्धि का सबसे ज्यादा बुरा प्रभाव गाँव देहात में रहने वाले छोटे एवं मध्यम वर्ग पर पड़ा है। सभी जानते हैं कि मोटर साइकिल और मोबाइल आजकल के जमाने मे घर घर पहुंच गया है और बमुश्किल सिर्फ दस पन्द्रह फीसदी लोग ऐसे होगें जो इन सुविधाओं से दूर हैं। अब गरीब साइकिल की जगह बाइक से चलने लगा है और मोटरसाइकिल पर चलने वाले अधिकांश टाटा की लखटकिया या अन्य सस्ती कारों से चलने लगे हैं।इस समय साठ फीसदी किसानों के पास डीजल नलकूप हैं तथा चालीस फीसदी दो हेक्टेयर से बड़े किसानों के पास टैक्टर है। इसी तरह सरकार की उज्जवला गैस योजना से घरेलू गैस के सिलेंडर पहुंच गये हैं। कहने का मतलब डीजल पेट्रोल गैस अब आमलोगों की जिन्दगी से जुड़ गयी है और आदमी खाना भले ही न खाय लेकिन डीजल पेट्रोल या गैस समाप्त होने पर उसकी व्यवस्था चाहे जैसे हो तत्काल करता है। सरकार का मूल्यों में कमी का फैसला डूबते को तिनके के सहारे जैसा है क्योंकि इससे आम लोगों को राहत जरूर मिलेगी।सरकार का यह फैसला एक स्वागत एवं सराहनीय कदम है किन्तु ओस चाटने से प्यास नहीं बुझती है।
– वरिष्ठ पत्रकार / समाज सेवक