सौ. फाईल चित्र
क्या कांग्रेस ने बनारस से बीजेपी को वाक -ओवर दे दिया , क्या जनता के साथ-साथ अपने कार्यकर्ताओं का मनोबल नहीं गिरा दिया गया इस फैसले से ? क्या शीर्ष नेताओं को इस पर विचार नहीं करना चाहिये ? क्या इसका असर रायबरेली और अमेठी के साथ – साथ आगामी २४० सीटों पर इसका बुरा परिणाम नहीं पड़ेगा ? तो क्यों कर ऐसे भावनात्मक चुनावी जुमले को तूल दिया गया , जब वो सक्षम नहीं थी ? क्या कांग्रेस ने बीजेपी को एक और मुद्दा बैठे बिठाये नहीं दे दिया कि उसमें आगे बढ़कर लड़ने का साहस या फैसला लेने की शक्ति नहीं है। जैसा कि बीजेपी आतंकवाद और पाक को लेकर नरेटिव सेट करती रही है , क्या जीती हुई बाजी कांग्रेस ने हार में परिवर्तित नहीं दी ? क्या प्रियंका गांधी का औरा कमजोर नहीं पड़ेगा ? प्रियंका अब जब पीएम मोदी को लेकर कोई वक्तव्य या टीका, टिप्पणी करेगीं तो क्या जनता उस पर विश्वास कर सकेगी ? जो मोदी को टक्कर देने वाली छवि जनता के बीच बन चुकी थी, जिसे लेकर बीजेपी के आम नेताओं में ही नहीं अपितु एक मुख्य व्यक्ति द्वारा भी ये आवाज मीडिया तक पहुँचाई गयी कि मोदी जी को लेकर बेस्ट बंगाल से चुनाव लड़ने की मांग उठाई जा रही है, क्या इससे अच्छा भी कोई और संदेश हो सकता था ? यदि इस पर पुनः विचार नहीं किया गया तो कांग्रेस के २०१९ में सरकार बनाने के सपने – सपने ही रह सकते हैं । और प्रियंका गाँधी के औरे पर भी वट्टा लगने के पूरे आसार बन गये हैं, क्या लड़कर मरना ठीक होता या बिना लड़े ही मरना ठीक है ? या कांग्रेस ने चुनावी युद्ध में अपने हथियार डाल दिये ? क्या ये मंथन करने योग्य नहीं है , कि घर में बैठा कोई लंका ढाने का काम कर रहा है क्या ? ये एक गंभीर विषय है, जिस पर यदि समय रहते विचार नहीं किया गया तो कांग्रेस की नइया डूबने के पूरे आसार हैं ।