-रवि जी. निगम
दरसल कुछ दिनों से NCB एक मर्डर मिस्ट्री पर अपना कार्य कर रही थी, और लगभग सही दिशा की ओर जांच को आगे भी ले जा रही थी, लेकिन जांच का एंगल बॉलीवुड के बडे सितारों की तरफ हल्का सा घूमा क्या की देश भक्तों की एंट्री हो गयी और देश का मेंनस्ट्रीम मीडिया इस मुद्दे को अपनी ‘टीआरपी’ का श्रोत बढाने के चक्कर में ले उडा, जिससे जांच अधिकारी कम मीडिया संस्थानों के स्टूडियोज में तहक़ीकात ज्यादा तेजी से शुरू हो गयी और वहीं पर मुकदमा चालू बहस और दलीलें कैमरे पर ही ऑनलाईन अदालत की तरह चलने लगी, इतना ही नहीं फैसले भी ऑनलाईन ही होने शुरू हो गये, एक से लेकर दस साल की सजा और दो लाख रूपये तक का जुर्माना भी लगाया जाने लगा था।
इतना भी खयाल नहीं रखा गया कि काश! किन्ही कारणोंवस वो उसके आदी हो गये या उन्हे आदी बना दिया गया है तो उन्हे किस तरह से उससे बाहर निकाला जाये, उसके समाधान या उपाय के लिये नहीं, पर उन्हे कैमरे में कैद कर कैसे देश का सबसे बडा विलेन घोषित किया जाये, इसकी होड सी लग गयी, जबकि देश में ‘कर’ (टैक्स) के रूप में सबसे बडा योगदान इन्ही की इंडस्ट्री का ही है, लेकिन उनकी इज्जत को तार-तार कैसे किया जाये इसकी भूमिका इन्होने बाखूबी से निभाई, ये आज की तथाकथित मीडिया भूल जाती है कि ये आजादी पूर्व से ही अपनी देश भक्ती की भूमिका निभाते आ रहे हैं देश के नागरिकों के भीतर देश भक्ती का जज्बा इन्हीने ही कूट-कूट कर भरने और जागृत करने में निभाई है, जिसे आज का तथाकथित मीडिया धूमिल करने की कोशिस में लगा था, जबकि देश के संविधान में भी कानून है कि ऐसे लोगों को इस नशे की लत से मुक्त कराने के पूरे प्रयास किये जाने चाहिये और सुधरने का मौका भी दिया जाना चाहिये, न कि इनका प्रचार-प्रसार करके इन्हे हीन भावना की दृष्टि का पात्र बनाया जाना चहिये।
वो तो देश के शीर्षस्थ लोगों के समक्ष कुछ सवाल विशेष ‘मानवाधिकार अभिव्यक्ति’ की ओर से भी रखे गये थे जिसका संज्ञान लिया गया ऐसा लगता है जिसके लिये ‘मानवाधिकार अभिव्यक्ति’ उक्त शीर्षस्थ महानुभावों का बहुत-बहुत आभारी है, जिन्होने भटक गयी मीडिया को उसका कर्तव्य निभाने के लिये वापस विराम दे दिया, और अपने जिम्मेदार अधिकारियों को उस केस को तूल न देने की बात कही जिसे ये तूल देने पर अमादा थे, उम्मीद है अब जांच को पब्लिस करने से बचाया जायेगा और सही दिशा में जांच आगे बढेगी !
आज देश भक्त कैमरों के मुंह जनता के मुद्दों की तरफ वापस लौटते दिखे, देश की जनता ने राहत की सांस ली, आज जनता ने महशूस किया कि देश में पत्रकारिता की दखल है जो जनता की आवाज उठाने का एक बडा माध्यम है, बशर्ते ये यूं ही अपना दायित्व निभाता रहे, इसको जनार्दन की नज़र न लगे ?
क्योंकि काश ! इसने हाथरश मुद्दे को समय पर उठाया होता तो और 15 दिन पूर्व ही नींद में सो रहे शासन-प्रशासन को समय रहते जगा दिया होता तो आज ये जिस बच्ची पर घडियाली आंशू बहा रही है, आज वो जिंदा होती कि नहीं ? क्या शासन-प्रशासन के बाद इस तथाकथित मीडिया ( नोट-पत्रकारिता नहीं) की जिम्मेदारी नहीं ? जो कुछ दिनों पूर्व बॉलीवुड को ज्ञान बांटते नज़र आ रही थी, कि बॉलीवुड के नायक/नायिका जब ऐसे कार्यों में लिप्त होंगे तो देश के नौजवानों पर उसका क्या असर पडेगा ? जिन्हे वो आपना रोल मॉडल मानते हैं ?
तो क्या ? तथाकथित मीडिया जिसे आज हर नौजवान अपनी पहली पसंद मानता है और एक मुकाम हाँशिल करने की चाहत रखता हो और वो अपने आपको वैसा बनाना चाहता हो तो बताइये उसके दिल पर क्या बीतती होगी कि चन्द भौतिक सुख-सुबिधा और स्वार्थ के चाहत में लोग कैसे-कैसे समझौते कर लेते हैं ? धिक्कार है ऐसे लोगों पर कि नहीं जो जनता की भावनाओं के साथ खिलवाड करते हैं ? जो जनता उन्हे प्रबुध्दजीवियों की संज्ञा देती हो ?