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Saturday, May 4, 2024

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आरामको हमले का इंतेक़ाम लेने के लिए ईरान के तेल प्रतिष्ठान पर हमला करेगा अमरीका ?

रिपोर्ट – सज्जाद अली नायाणी

क्या वाक़ई आरामको हमले का इंतेक़ाम लेने के लिए ईरान के तेल प्रतिष्ठान पर हमला करेगा अमरीका? यह हुआ तो ईरान की जवाबी कार्यवाही क्या होगी? पुतीन ने मौक़ा देखकर सऊदी अरब के सामने पेश कर दिया एस-400 सिस्टम ।

विदेश – अरब जगत के विख्यात टीकाकार अब्दुल बारी अतवान का जायज़ा। सऊदी अरब के रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता तुर्की अलमालेकी आकर प्रेस कान्फ़्रेन्स करते हैं जिसमें वह ड्रोन विमानों और बैलिस्टिक मिसाइलों के टुकड़े दिखाते हुए यह साबित करने की कोशिश करते हैं कि बक़ैक़ और ख़रैस में स्थित दुनिया सके सबसे बड़े तेल प्रतिष्ठानों पर होने वाले हमले में इस्लामी गणतंत्र ईरान का हाथ है।

इसका मतलब यह है कि इस हमले पर अमरीका की ओर से जवाबी हमला करवाने की कोशिश कर रहे हैं जबकि अमरीका फिलहाल तो ईरान पर किसी भी हमले के लिए तैयार नज़र नहीं आता।

जनरल मालेकी ने तसवीरों और मानचित्रों से से यह साबित करने की कोशिश की कि यह मिसाइल और ड्रोन विमान ईरान निर्मित हैं लेकिन उन्होंने उस स्थान का नाम नहीं लिया जहां से इन्हें फ़ायर किया गया। प्रवक्ता ने बस इतना कहा कि यह मिसाइल और ड्रोन दक्षिण से नहीं उत्तरी दिशा से आए हैं यानी इन्हें यमन से फ़ायर नहीं किया गया। उत्तरी दिशा का नाम लेकर प्रवक्ता ने यह कहना चाहा है कि इन्हें या तो ईरान से फ़ायर किया गया या इराक़ से फ़ायर किया गया है। तो क्या इतनी ही जानकारी इलाक़े में युद्ध की आग भड़का देने के लिए काफ़ी है?

एक महत्वपूर्ण बिंदु जो प्रेस कान्फ़्रेन्स में ग़ायब रहा यह है कि मिसाइल और ड्रोन कैसे तेल प्रतिष्ठानों तक पहुंच गए और आधुनिकतम राडार भी उनका पता नहीं लगा सके और महंगे पैट्रियट सिस्टम उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाए। यही नहीं जिस जगह हमला हुआ है उससे कुछ ही किलोमीटर दूर बहरैन और क़तर में अमरीका के सैनिक ठिकाने मौजूद हैं उनको भी इस हमले की कोई भनक क्यों नही लगी।

ईरानी अधिकारियों ने तो सऊदी अरब की ओर से और उससे पहले अमरीका की ओर से लगाए गए इन आरोपों का खंडन किया है साथ ही यह धमकी भी दे द है कि यदि ईरान के किसी भी प्रतिष्ठान पर हमला हुआ तो जवाबी कार्यवाही तत्काल और विध्वंसक होगी। ईरान ने कहा है कि जवाबी हमला केवल उस स्थान तक सीमित नहीं रहेगा जहां से ईरान पर हमला होगा।

अगर अमरीका ईरान पर हमला करने का फ़ैसला करता है तो उसके सामने चार विकल्प होंगे।

पहला विकल्प यह कि ईरान के भीतर तेल प्रतिष्ठानों पर हमला करके ईरानी तेल उद्योग को ठप्प कर दे।

दूसरा विकल्प यह है कि इराक़ में स्वयंसेवी फ़ोर्स हश्दुश्शअबी के ठिकानों पर हमला करे क्योंकि सऊदी सैनिक प्रवक्ता ने इशारों में कहा कि ड्रोन और मिसाइलों के फ़ायर होने की जग इराक़ हो सकती है।

तीसरा विकल्प यह है कि ईरान के महत्वपूर्ण प्रतिष्ठानों जैसे पानी और गैस प्रतिष्ठानों पर परमाणु ठिकानों पर साइबर अटैक करे।

चौथा विकल्प यह है कि ईरान पर कुछ और प्रतिबंध भी लगा दे।

हमारे लिए यह बताना कठिन है कि कौन से विकल्प को प्राथमिकता दी जाएगी और कौन सा विकल्प कठिन है क्योंकि अमरीका के भीतर इनमें से हर विकल्प के लिए एक लाबी मौजूद है जो उसके लिए दबाव बना रही है।

हमें यह याद रखना होगा कि जब ईरान ने अमरीका का ड्रोन मार गिराया था तो उस समय ट्रम्प ने कोई कार्यवाही नहीं की थी और जब ईरान ने फ़ार्स खाड़ी में ब्रिटेन का तेल टैंकर पकड़ा तो उस सयम भी कुछ ही मीटर की दूरी पर मौजूद अमरीकी युद्धक नौकाओं ने ब्रिटेन की कोई मदद नहीं की।

अमरीका में जिस लाबी में लिंडसे ग्राहम शामिल हैं वह ईरान पर हमला करने के लिए उकसा रहा है और माइक पेन्स भी उसका समर्थन कर रहे हैं। ग्राहम ने आरामको हमले के बाद बहुत ज़ोर दिया कि अब ईरान पर हमला कर दिया जाना चाहिए ताकि हुरमुज़ स्ट्रेट में ड्रोन विमान गिराए जाने के बाद अमरीका की सैनिक ताक़त पर जो सवालिया निशान लग गया है उसे दूर किया जा सके। इस पर ट्रम्प ने बहुत नाराज़ होकर ट्वीट किया था कि हमने जवाबी हमला न करके अपनी ताक़त की मिसाल पेश की है। इस पर ट्रम्प का बहुत मज़ाक़ उड़ाया गया। मज़ाक़ उड़ाने वालों में हम भी शामिल थे।

ब्रिटेन के पूर्व विदेश मंत्री विलियम फ़ाक्स को भी लगा कि अब ईरान के ख़िलाफ़ सैनिक कार्यवाही हो सकती है लेकिन ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जान्सन ने ज़ोर दिया कि हमला अकेले नहीं बल्कि कई देशों की साझेदारी से किया जाना चाहिए।

कई चीज़ें हैं जिनसे यह इशारा मिलता है कि ट्रम्प कम से कम इस समय तो ईरान से हरगिज़ नहीं टकराव चाहते। वर्ष 2017 में सीरिया के ख़ान शैख़ून इलाक़े में हुए हमले के बाद सीरियाई सरकार और सेना पर आरोप लगाया गया था कि उसने रासायनिक हमला किया है और तत्काल ट्रम्प ने सीरियाई के शईरात सैनिक एयरपोर्ट पर हमला करने के लिए क्रूज़ मिसाइल भेज दिए थे। बक़ैक़ पर हमले को पांच दिन बीत गए हैं और अब तक कोई इंतेक़ामी हमला नहीं किया गया है। अगर ट्रम्प को ईरान से मुक़ाबला करना होता तो वह बोल्टन को बर्खास्त न करते।

ट्रम्प इस हमले को सऊदी अरब और इमारात से दसियों नहीं बल्कि सैकड़ों अरब डालर वसूलने के बहाने के रूप में प्रयोग करना चाहते हैं। यही वजह है कि उन्होंने सऊदी अरब और इमारात के दौरे पर युद्ध मंत्री नहीं बल्कि विदेश मंत्री माइक पोम्पेयो को भेजा है। अगर ट्रम्प को कोई भी हमला करना होगा तो उससे पहले पोम्पेयो इसकी क़ीमत और इसे वसूलने का तरीक़े पर सऊदी अरब और इमारात के अधिकारियों से बातर करेंगे।

शायद सबसे ज़्यादा फ़ायदा रूसी राष्ट्रपति व्लादमीर पुतीन को पहुंचने वाला है। उन्होंने तत्काल सऊदी क्राउन प्रिंस मुहम्मद बिन सलमान को फ़ोन किया और उनके सामने एस-400 की पेशकश कर दी। उन्होंने इशारों में यह भी कह दिया कि अमरीका का पैट्रियट सिस्टम तो नाकारा साबित हुआ है अब आप हमारें हथियारों को आज़माइए।

अगर फ़ार्स खाड़ी की अरब सरकारों ने ईरान के ख़िलाफ़ अमरीका के जवाबी हमलों की उम्मीद लगा रखी है तो उन्हें तीन साल पहले के ट्रम्प के बयानों को एक बार फिर देख लेना चाहिए।

ट्रम्प ने चुनावी अभियान में कहा था कि उन्हें केवल अमरीका पर ध्यान देना है। इराक़ और अफ़ग़ानिस्तान में अमरीकियों की जानों और अरबों डालर की रक़म क़ुरबान करने का सिलसिला बंद करना है। उन्होंने दक्षिणी कोरिया और जर्मनी से कहा था कि मुफ़्त में हम आपकी रक्षा नहीं करेंगे आपको इसकी क़ीमत चुकानी पड़ेगी।

अगर अमरीका और सऊदी अरब का यह आरोप सही मान लिया जाए कि हमले के पीछे ईरान का हाथ है तो यह भी समझ लेना चाहिए कि ईरानियों ने यह हमला करने से पहले ही हर संभावित स्थिति के बारे में पहले से ही सोच लिया होगा अतः यदि अमरीका की ओर से कोई हमला हुआ तो इस पर ईरान की इंतेक़ामी कार्यवाही बेहद भयानक होगी। इस कार्यवाही के दायरे में अमरीकी सैनिक ठिकाने आएंगे, इस्राईल आएगा और तेल व गैस के बहु से प्रतिष्ठान आ जाएंगे।

आख़िर में हम यह कहना चाहेंगे कि ईरानियों ने यदि कोई धमकी दी है तो उसे पूरा ज़रूर किया है। अगर उन्होंने कहा है कि यदि हमारा तेल निर्यात बंद किया गया तो हुरमुज़ स्ट्रेट से एक बैरल तेल भी गुज़र नहीं सकेगा तो यह धमकी पूरी गंभीरता से ली जानी चाहिए।

बक़ैक़ पर होने वाले हमले का जवाब ईरान के तेल प्रतिष्ठानों पर हमला नहीं बल्कि परमाणु समझौते में अमरीका की वापसी, यमन में युद्ध पर विराम और सैनिकों को पूरी तरह बाहर निकालना है। यदि कोई भी इसके अलावा कुछ कहता है तो इसका मतलब यह है कि वह यमनियों को नहीं पहचानता और न ईरानियों को पहचानता है बल्कि अमरीकियों को भी सही से नहीं पहचानता।

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