रिपोर्ट – सज्जाद अली नायाणी
यह 2014 की बात है कि ईरान के ख़ातेमुल अंबिया नामक एयर डिफ़ेन्स केन्द्र ने पहली बार घोषणा की कि उसने अमरीकी जासूसी विमान यू-2 को वार्निंग दी।
विदेश – इसके दो साल बाद 24 सितम्बर 2016 को एयर डिफ़ेन्स केन्द्र के कमांडर ने ब्रीफ़िंग दी कि अमरीकी जासूसी विमान को किस तरह वार्निंग दी गई थी। वर्ष 2017 में भी इसी प्रकार की घटना हुई जिसके बारे में जनरल अमीर इसमाईली ने बताया कि ख़ातेमुल अंबिया एयर डिफ़ेन्स केन्द्र ने अमरीकी विमान को वार्निंग देने से दस मिनट पहले से ही उस पर नज़र रखना शुरू कर दिया था यानी ठीक उस समय से जब इस विमान ने उड़ान भरी थी और जैसे ही अंदाज़ा हुआ कि यह विमान जासूसी के मिशन पर है उसे वार्निंग दी। वार्निंग की इस पूरी प्रक्रिया में 30 सेकेंड का समय लगा।
उसी समय से यह चर्चा शुरू हो गई थी कि ईरान किस तरह इन विमानों पर उस समय से नज़र रखने में कामयाब हो जाता है जब वह रनवे से उड़ान भरते हैं और ईरान की सीमा तक पहुंचने से ठीक पहले विमान को वार्निंग दे दी जाती है?
यू-2 जासूसी का आधुनिक विमान है जो बहुत लंबी उड़ान भरता है। अमरीका की लाकहीड मार्टिन कंपनी द्वारा बनाया गया यह विमान लगभग 50 साल से अमरीकी वायु सेना में प्रयोग हो रहा है। यह स्टेल्थ विमान तो नहीं है लेकिन चूंकि 21 किलोमीटर की ऊंचाई पर उड़ान भरने की क्षमता रखता है अतः राडार से उसका पता लगा पाना किसी हद तक कठिन होता है। लेकिन अब तक 27 अकतूबर 1962 को क्यूबा द्वारा, 10 जनवरी 1965 को चीन द्वारा और 1 मई 1960 को पूर्व सोवियत संघ द्वारा इस विमान का पता लगाकर उसे ध्वस्त किया जा चुका है और तीनों ही देशों ने इस विमान को गिराने के लिए एस-75 मिसाइल का प्रयोग किया। यह रूस द्वारा निर्मित ज़मीन से हवा में मार करने वाला मिसाइल सैम-2 है।
हालिया वर्षों में अमरीका ने आरक्यू-4 ग्लोबल हाक ड्रोन विमान डिज़ाइन कर लिया लेकिन यह विमान यू-2 की जगह नहीं ले सका। दूसरी ओर अमरीका का एमक्यू-4सी ट्रायर्टन ड्रोन जो ग्लोबल हाक का समुद्री वर्जन है जून 2019 में इमारात की अज़्ज़फ़रह छावनी से उड़ान भरते ही ईरान के राडार की रेंज में आ गया और हुर्मुज़ स्ट्रेट के पास ईरान ने 3 ख़ुर्दाद नाम मिसाइल फ़ायर करके इसे मार गिराया।
इसी महीने डिप्टी रक्षा मंत्री तक़ीज़ादे ने बताया कि देश के एयर डिफ़ेन्स सिस्टम को इस तरह विकसित किया गया है कि अमरीका के यू-2 विमान अब ईरान की वायु सीमा में कहीं भी प्रवेश करते ही तुरंत स्पाट कर लिए जाएंगे। उन्होंने बताया कि ईरान ने इसके लिए बावर 373 नामक वायु रक्षा सिस्टम डेवलप किया जिसके बाद अमरीकी जासूसी विमानों ने ईरान के आसमान में उड़ान भरने का सिलसिला बंद कर दिया वरना इससे पहले तक अमरीकी विमान हफ़्ते में दो बार साइप्रस से उड़ान भरते थे और ईरान की वायु सीमा में घुस आते थे।
यह विमान साइप्रस में स्थित ब्रिटेन की एकोर्टेरी छावनी से उड़ान भरते थे।
कई साल से अमरीकी यू-2 विमान इस छावनी में मौजूद थे और इराक़ व अफ़ग़ानिस्तान पर हमलों के समय अमरीकी विमान इस छावनी का प्रयोग करते थे। ईरान की पश्चिमी सीमाओं से इस छावनी की दूरी लगभग 1200 किलोमीटर है जबकि ईरान की दक्षिणी सीमाओं से इसकी दूरी लगभग 2000 किलोमीटर है। इसलिए इस छावनी पर नज़र रखने के लिए लंबी रेंज के राडारों की ज़रूरत होती है।
ईरान ने इस छावनी पर नज़र रखने के लिए लंबी रेंज का राडार सिस्टम तैनात कर रखा है।
ईरान के एयर डिफ़ेन्स केन्द्र ने 2014 में 2000 से 3000 किलोमीटर की दूरी तक नज़र रखने वाले लंबी रेंज के राडार सिस्टम सिपेहर का अनावरण किया। यह लगता है कि इसी राडार सिस्टम ने अमरीकी यू-2 विमानों पर साइप्रस में मौजूद छावनी से उड़ान भरने के समय से ही नज़र रखी।
चूंकि ज़मीन की ऊपरी सतह ढलवां है अतः यदि समुद्र तल की ऊंचाई पर कोई राडार रखा जाए तो वह 30 किलोमीटर से अधिक दूरी तक नज़र नहीं रख सकता। इसीलिए राडर को ऊंचाई पर स्थापित किया जाता है। मगर अल्ट्रा सोनिक राडार की ख़ासियत यह है कि वह आसमान में मौजूद टारगेट को भी और ज़मीन पर मौजूद टारगेट को भी चिन्हित कर सकते हैं।
ईरान ने नवम्बर 2014 में सिपेहर नामक राडार सिस्टम टेस्ट किया जिसकी रेंज 2500 किलोमीटर है। यह राडार स्टेल्थ विमानों का भी पता लगा लेने में सक्षम है जो बहुत नीची या बहुत ऊंची उड़ान भर रहे हों। बैलिस्टिक और क्रूज़ दोनों प्रकार के मिसाइलों का पता लगाने में यह सिस्टम पूरी तरह सक्षम है।
इन राडार सिस्टमों को देश के विभन्न भागों में तैनात कर दिया गया है और यह सिस्टम ईरान की सीमा तक पहुंचने से बहुत पहले ही जासूसी विमानों या मिसाइलों का पता लगा लेते हैं।