इस्लामाबाद उच्च न्यायालय (आईएचसी) ने पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की उस याचिका पर सोमवार को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया, जिसमें उन्होंने तोशाखाना भ्रष्टाचार मामले में अपनी तीन साल की जेल की सजा को निलंबित करने की मांग की थी। आईएचसी के मुख्य न्यायाधीश आमिर फारूक और न्यायमूर्ति तारिक महमूद जहांगीरी की खंडपीठ ने दोनों पक्षों के वकीलों को सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रखा। पीठ ने बाद में कहा कि फैसला मंगलवार सुबह 11.00 बजे सुनाया जाएगा।
एक प्रमुख स्थानीय समाचार पत्र की खबर के मुताबिक, अपनी दलीलों के दौरान पाकिस्तान चुनाव आयोग (ईसीपी) के वकील अमजद परवेज ने उच्च न्यायालय से अनुरोध किया कि वह राज्य को इस मामले में प्रतिवादी बनाने के लिए नोटिस जारी करे, क्योंकि कानून ने इसे जरूरी बना दिया है। परवेज ने जब अपनी दलीलें पूरी कीं तो खान के वकील लतीफ खोसा ने कहा कि उन्हें राज्य को नोटिस जारी करने की ईसीपी के वकील की याचिका पर कोई आपत्ति नहीं है।
इसके बाद अदालत ने मामले पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। एक निचली अदालत ने इस मामले में पांच अगस्त को पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के प्रमुख खान को दोषी ठहराते हुए तीन साल कैद की सजा सुनाई थी। खान पर आरोप था कि उन्होंने 2018-2022 तक के कार्यकाल के दौरान उन्हें और उनके परिवार को मिले राज्य के उपहारों को गैरकानूनी रूप से बेचा। एक सत्र अदालत ने उन्हें इस मामले में दोषी ठहराया था। उन्हें पांच साल के लिए राजनीति से प्रतिबंधित किया गया है। इससे वह अब आगाी आम चुनाव में भी हिस्सा नहीं ले पाएंगे।
पाकिस्तान चुनाव आयोग (ईसीपी) का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील अमजद परवेज के बीमार होने के कारण अदालत में पेश नहीं हुए थे। इस कारण उच्च न्यायालय की पीठ ने शुक्रवार को सुनवाई स्थगित कर दी थी। खान के वकील लतीफ खोसा ने गुरुवार को दोषसिद्धि के खिलाफ अपनी दलील पूरी करते हुए कहा कि फैसला जल्दबाजी में और कमियों से भरा है। उन्होंने अदालत से सजा रद्द करने का आग्रह किया लेकिन बचाव पक्ष ने अपनी दलीलें पूरी करने के लिए और समय की मांग की।
कई लोगों का मानना है कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा खान को दोषी ठहराने वाले फैसले में खामियों को उजागर करने के बाद खान के लिए एक अनुकूल फैसला आ सकता है। पिछले हफ्ते उच्चतम न्यायालय ने खान की दोषसिद्धि में प्रक्रियात्मक खामियों को माना था, लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री की याचिका पर इस्लामाबाद उच्च न्यायालय के फैसले का इंतजार करने का विकल्प चुना था।