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Saturday, April 27, 2024

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ईरान के ख़िलाफ़ ट्रम्प का हर दांव हुआ नाकाम तो उन्होंने उठाया यह नया क़दम

रिपोर्ट – सज्जाद अली नायाणी

ज़ाहिर में अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प मध्यपूर्व में किसी नए युद्ध की शुरूआत का कड़ा विरोध करके अक़लमंदी भरा क़दम उठा रहे हैं, लेकिन ईरान के ख़िलाफ़ उनके अधिकतम दबाव की नीति की नाकामी की बदमानी से बचने के लिए वह कुछ नया करने के लिए झटपटा रहे हैं।

विदेश – इसी दौरान सीरिया से अमरीकी सैनिकों को बाहर निकालने के ट्रम्प के फ़ैसले की जहां अमरीका और यूरोप में कड़ी आलोचना हो रही है, वहीं उनके इस क़दम को दमिश्क़ और तेहरान के लिए एक बड़ी सफलता क़रार दिया जा रहा है, जिसके बाद ट्रम्प पर ईरान के ख़िलाफ़ कुछ करने के लिए अधिक दबाव बढ़ गया है।

इस स्थिति में ट्रम्प के पास केवल दो विकल्प बचे हैः पहला विकल्प वही प्रतिबंधों वाला है। लेकिन इसकी नाकामी पहले ही सिद्ध हो चुकी है, क्योंकि ईरानी अर्थव्यवस्था की कोई ऐसी चीज़ बाक़ी नहीं रह गई है, जिस पर अमरीका प्रतिबंध नहीं लगा चुका हो। बल्कि इस संदर्भ में अमरीका ने तमाम सीमाएं पार करते हुए ईरान के केन्द्रीय बैंक को भी आतंकवादी संस्था बताते हुए उस पर प्रतिबंध लगा दिया है, ताकि खाद्य पदार्थों, दवाईयों और मेडिकल उपकरणों के भुगतान के लिए बाक़ी अंतिम चैनल को भी बंद किया जा सके। हालांकि ट्रम्प प्रशासन का यह क़दम उसके अपने उस फ़ैसले से विरोधाभास रखता है, जिसमें उसने आश्वासन दिया था कि इंसान की बुनियादी ज़रूरत की वस्तुओं को ईरान पहुंचने से नहीं रोका जाएगा।  

हाल ही में कराए गए एक सर्वेक्षण से पता चलता है कि अधिकांश ईरानियों को अमरीका के किसी आश्वासन पर कोई विश्वास नहीं है।

इस नए प्रतिबंध का मतलब यह है कि ट्रम्प प्रशासन का आश्वासन न केवल झूठा है, बल्कि प्रतिबंधों के ज़रिए ईरानी जनता को निशाना बनाने की हर संभव कोशिश की गई है और यह हमेशा अमरीका की रणनीति के केन्द्र में रहा है। आम नागरिकों को परेशान करने का असली मक़सद उन्हें शासन के ख़िलाफ़ विद्रोह के लिए भड़काना है, ताकि ईरान में गृह युद्ध छिज़ जाए और अमरीका अपने शिकार पर आसानी से झपट सके, जिसका सपना वह पिछले 4 दशकों से देख रहा है।

कुल मिलाकर यहां यह कहा जा सकता है कि प्रतिबंधों के संबंध में ट्रम्प प्रशासन की अधिकतम दबाव की नीति दम तोड़ चुकी है और वह इस तरह से ईरान को घुटनों पर लाने में बुरी तरह से नाकाम हो गए हैं।

शुक्रवार को जब एक पत्रकार ने ट्रम्प से पुछा कि क्या यह एलान उनके उस बयान से विरोधाभास नहीं रखता है, जिसमें उन्होंने कहा था, मध्यपूर्व के झगड़ों में पड़कर अमरीका ने इतिहास की सबसे बड़ी ग़लती की है, तो उन्होंने जवाब दियाः सऊदी अरब एक अच्छा दोस्त है और हम जो कुछ भी कर रहे हैं वह उसका भुगतान करने के लिए तैयार है।

अमरीकी रक्षा मंत्री मार्क एसपर ने सऊदी अरब में अमरीकी सैनिकों की तैनाती की औपचारिक घोषणा करते हुए कहाः यह क़दम स्पष्ट संदेश देने के लिए उठाया जा रहा है कि अमरीका अपने सहयोगियों को अकेला नहीं छोड़ता है। अमरीकी रक्षा मंत्री जब यह दावा कर रहे थे तो उसी समय अमरीकी सैनिक उत्तरी सीरिया में अपने सबसे पुराने सहयोगियों में से एक कुर्दों को अकेला छोड़कर जा रहे थे।

एसपर ने पेंगाटन के इस फ़ैसले की दूसरी वजह बताते हुए कहाः विश्व अर्थव्यवस्था में सहायक ज़रूरी संसाधनों की आपूर्ति को जारी रखने के लिए सऊदी अरब में अतिरिक्त अमरीकी सैनिकों की तैनाती की जा रही है। हालांकि यह एलान करते हुए अमरीकी रक्षा मंत्री यह भूल गए कि ईरानी तेल निर्यात को शून्य तक पहुंचाने का प्रयास ख़ुद अमरीका ही कर रहा है, जो विश्व अर्थव्यवस्था की एक ज़रूरत है।

एसपर ने तीसरा तर्क देते हुए कहाः इस तरह से हम यह साबित करना चाहते हैं कि हम अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों का भरपूर सम्मान करते हैं, जिसकी हम लम्बे समय से ईरान से मांग करते आ रहे हैं। अमरीकी अधिकारी इस तरह का बयान देते समय यह भूल जाते हैं कि इस तरह की हरकतों से वे जग हंसाई का पात्र बन रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय परमाणु समझौते से निकलकर अमरीका ने अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों का उल्लंघन किया है, न कि ईरान ने।

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