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Sunday, May 5, 2024

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ईरान क्यों हमास का समर्थक है, जबकि सऊदी अरब उसका कट्टर दुश्मन क्यों है?

रिपोर्ट – सज्जाद अली नायाणी

इस्लामी प्रतिरोधी आंदोलन या हमास की स्थापना 1987 में इस्राईल के ख़िलाफ़ पहले इंतेफ़ाज़ा (फ़िलिस्तीनियों का जनांदोलन) के बाद हुई।

विदेश – इमाम शेख़ अहमद यासीन और अब्दुल अज़ीज़ अल-रनतिसी ने फ़िलिस्तीन पर ज़ायोनी क़ब्ज़े के ख़िलाफ़ संघर्ष के उद्देश्य से हमास की स्थापना की।

हमास ने ऐतिहासिक फ़िलिस्तीन की आज़ादी के लिए इस्राईल के ख़िलाफ़ सशस्त्र संघर्ष के लिए एक सैन्य शाख़ा इज्ज़ुद्दीन अल-क़स्साम ब्रिगेड का गठन किया है।

यह गुट फ़िलिस्तीनी पीड़ितों के लिए सामाजिक और कल्याणकारी कार्यक्रम भी चलाता है।

इसे मिस्र के मुस्लिम ब्रदरहुड की एक शाख़ा के रूप में देखा जाता था, लेकिन 2017 में इसने एक राजनीतिक दस्तावेज़ जारी करके मुस्लिम ब्रदरहुड़ से रिश्ते तोड़ने का एलान कर दिया और कहा कि वह फ़िलिस्तीनी शरणार्थियों की वापसी की शर्त पर 1967 की सीमाओं में स्वाधीन फ़िलिस्तीनी देश के गठन को स्वीकार कर लेगा।

हालांकि इससे पहले तक हमास के एजेंडे में ज़ायोनी शासन को उकाड़ फेंकना और 1948 में क़ब्ज़ा किए गए समस्त फ़िलिस्तीनी इलाक़ों को आज़ाद कराना था।

हालांकि हमास ने अपने राजनीतिक दस्तावेज़ में यह भी स्पष्ट कर दिया कि वह पूर्ण और समस्त फ़िलिस्तीन की आज़ादी से कम पर किसी तरह तैयार नहीं है और इस आंदोलन का मानना है कि इस्राईल का गठन पूर्ण रूप से अवैध है।

हमास का यह पक्ष उसे फ़िलिस्तीन के एक दूसरे बड़े गुट फ़तह या पीएलओ से अलग करता है।

फ़तह की स्थापना 1948 में ज़ायोनी आंदोलन द्वारा फ़िलिस्तीनियों के नस्लीय सफ़ाए और उनके इलाक़ों पर क़ब्ज़ा करने के दो साल बाद 1950 में हुई थी। इसके संस्थापकों में यासिर अरफ़ात, ख़लील अल-वज़ीर, सलाह ख़लफ़ और महमूद अब्बास का नाम उल्लेखनीय है।

शुरू में फ़तह का भी वही उद्देश्य था जो हमास का है, लेकिन 1980 और 1990 के दशकों में फ़तह की नीतियों में बड़ा बदलाव आया और उसने इस्राईल को मान्यता देने के साथ ही अमरीका की मध्यस्थता में इस्राईल के साथ तथाकथित शांति समझौतों के लिए प्रयास शुरू कर दिए।

इस्राईल को लेकर दोनों गुटों की रणनीति में एक बुनियादी अंतर है। हमास आंदोलन इस्राईल के ख़िलाफ़ सशस्त्र प्रतिरोध पर बल देता है, जबकि फ़तह का मानना है कि इस्राईल के साथ वार्ता द्वारा अपने उद्देश्य को प्राप्त किया जा सकता है।

1979 में ईरान में इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद से ही फ़िलिस्तीन की आज़ादी और फ़िलिस्तीनियों के अधिकारों को विदेश नीति में अहम स्थान दिया गया।

ईरान फ़िलिस्तीन पर ज़ायोनी क़ब्ज़े का विरोध करता है और फ़िलिस्तीनियों के सशस्त्र संघर्ष का समर्थक है। इसी कारण वह हमास का भरपूर समर्थन करता रहा है।

हालांकि सऊदी अरब ने हमास को आतंकवादी गुटों की सूची में डाल रखा है और वह इसका कट्टर विरोधी है।

आईआरजीसी की क़ुद्स ब्रिगेड के कमांडर जनरल क़ासिम सुलेमानी फ़िलिस्तीनियों के समर्थन का कारण बताते हुए कहते हैं, हम किसी एक विचारधारा के कारण फ़िलिस्तीन का समर्थन नहीं करते हैं, बल्कि फ़िलिस्तीनियों का समर्थन हमारी धार्मिक और क्रांतिकारी ज़िम्मेदारी है, इसी तरह से ज़ायोनी शासन का मुक़ाबले को हम अपना कर्तव्य समझते हैं।

हमास और ईरान के रिश्ते हमेशा से एक से ही नहीं रहे हैं। 2011 में सीरिया में सशस्त्र विद्रोह शुरू के बाद हमास ने सीरियाई सरकार के विरोधी सशस्त्र गुटों का समर्थन किया था, जबकि ईरान आतंकवादी गुटों के ख़िलाफ़ सीरियाई सरकार के साथ खड़ा रहा। लेकिन यह मतभेद जल्दी ही ख़त्म हो गया और आज फिर से हमास को इस्लामी गणतंत्र का भरपूर समर्थन हासिल है।

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