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Sunday, May 5, 2024

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किसे अपनी नीतियां बदलना चाहिए… सऊदी अरब को या ईरान को ? कैसे फंसाया अमरीका ने सऊदी अरब को ? क्या होगा नया युद्ध? प्रसिद्ध पत्रकार महमूद अलब़ाज़ी ने दिये इन सवालों के जवाब

रिपोर्ट – सज्जाद अली नायाणी

अरब जगत के प्रतिष्ठित पत्रकार और यूनिस्को के सदस्य प्रोफेर महमूद अलबाज़ी ने सऊदी अरब और ईरान के संबंधों में आने वाले उतार- चढ़ाव का गहराई से जायज़ा लिया है।

सऊदी अरब की नीतियों  को दलदल में फंसे वाले आदिल अलजुबैर कहते हैं कि उनके देश को यक़ीन है कि आरामको कंपनी पर हमले में ईरान का हाथ था।

यह बात आदिल अलजुबैर ने लंदन में एक पत्रकार सम्मेलन के दौरान कही। जिस तरह से लेबनान और कई अरब देशों की सड़कों पर प्रदर्शन हो रहे हैं उनके दौरान उनके इस बयान ने इलाक़े के लिए आगामी खतरों को किसी सीमा तक स्पष्ट कर दिया है। सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस, ईरान के साथ वार्ता के सिलसिले में परस्पर विरोधी सिगनल दे रहे हैं। एक तरफ तो यह अक्लमंदी करते हुए यह कहते हैं कि ईरान के साथ समस्याओं का समाधान राजनीतिक होना चाहिए और फिर इराक और पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों जैसे कुछ मध्यस्थ भी सामने आते हैं चाहे स्वंय से या फिर बिन सलमान की मांग पर, लेकिन दूसरी तरफ क्राउन प्रिंस बिन सलमान अमरीकी सैनिकों को सऊदी अरब बुलाते हैं जिसके बाद सऊदी अरब की मदद के लिए 3000 अमरीकी सैनिक भेज दिये जाते हैं।

इस तरह की डांवाडोल नीति से सऊदी हितों को बहुत अधिक नुक़सान पहुंच सकता है। अस्ल में सऊदी अरब और उसके नेताओं की अब तक यह समझ में नहीं आया है कि सभी समस्याओं का समाधान राजनीतिक है जो वार्ता द्वारा ही संभव है और बस। जहां तक उनका यह मानना है कि अमरीका उनकी मदद करेगा तो यह बिल्कुल गलत सोच है और इसकी बहुत सी वजहें हैः

अमरीका यह दावा करता है कि वह इलाक़े में सूचनाओं का सब से पहला और बड़ा स्रोत है क्योंकि उसके ने फार्स की खाड़ी के बहुत से तटवर्ती देशों में सैनिक तैनात कर रखे हैं और राडार आदि लगा रखे हैं इसी प्रकार क़तर, इराक़ और बहरैन में उसकी छावनियां हैं। इन सब के मद्देनज़र यह हो ही नहीं सकता कि अमरीका को सऊदी अरब की तेल कंपनी आरामको पर हमले का पता न चला हो। खास तौर पर इस लिए भी कि अमरीका ने एलान किया था कि फार्स की खाड़ी में तेल टैंकरों पर हमले के बाद उसने पूरे इलाक़े में निगरानी बढ़ा दी है।

सऊदी अरब की आरामको कंपनी पर हमले का अमरीका ने जम कर फायदा उठाया और वह दुनिया में तेल पैदा करने वाला सब से बड़ा देश बन गया। अमरीका चीन के साथ ” ट्रेड वॉर ” में फंसा हुआ है और चीन सऊदी अरब के तेल पर बहुत अधिक निर्भर है जिसका सीधा अर्थ यह है कि सऊदी अरब में तेल की समस्या, चीन को परेशान करेगी और अमरीका का फायदा कराएगी। दर अस्ल अमरीका इस नतीजे पर पहुंच गया था कि तेल के बाज़ार में उथल-  पुथल से उसकी अर्थ – व्यवस्था बिल्कुल प्रभावित नहीं होगी।

सऊदी अरब को आरामको कंपनी के शेयर बेच कर कमाई का बहुत अधिक भरोसा था ताकि उसकी आमदनी से क्राउन प्रिंस बिन सलमान की महत्वकांक्षी योजना ” वीजन 2030″ के लिए बजट जुटाया जाए लेकिन आरामको पर हमले से उसके शेयरों के दाम घट गये और सऊदी अरब को शेयर बेचने  का कार्यक्रम टालना पड़ा।

जॉन बोल्टन जैसे युद्धप्रेमियों को अपने आसपास जमा करने की वजह से डेमोक्रेट्स की आलोचनाओं का शिकार ट्रम्प स्वंय को शांतिप्रेमी साबित करने की कोशिश करते नज़र आ रहे हैं। उन्होंने बोल्टन को हटा दिया और सऊदी अरब की हालत पर ध्यान नहीं दे रहे हैं बल्कि यहां तक संदेश दे रहे हैं कि ईरान द्वारा आरामको पर हमले में भाग लेने के बावजूद वह ईरान के खिलाफ युदध् को तरजीह नहीं देते।

आदिल अलजुबैर

इन हालात में सब से महत्वपूर्ण सवाल यह है कि सऊदी अरब की बेपनाह दौलत किसी युद्ध में उसके काम आएगी? इस का सीधा सा सवाब है कि नहीं! ट्रम्प तो हर दिन ट्वीट करते हैं कि सऊदी राजा महाराजाओं को  अगर अमरीका की मदद न मिले तो वह दो हफ्तों से सिंहासन से उतार दिये जाएंगे। पहले तो हम समझते थे कि ट्रम्प, अमरीकी चुनावी राजनीति की वजह से इस तरह के बयान दे रहे हैं लेकिन आरामको पर हमले के बाद यह साबित हो गया कि वह सच में यह बयान दे रहे थे क्योंकि अमरीका किनारे हट गया और सारा बोझ  सऊदी अरब पर डाल दिया। बस उसने ईरान के केन्द्रीय बैंक पर प्रतिबंध ही लगाया। अमरीकी विदेशमंत्री ने खुल कर ईरान पर आरोप लगाए और अमरीका ने एक जांच टीम भेजने का एलान कर दिया। इस तरह के क़दमों से साबित हो गया कि अमरीका, सऊदी अरब की वजह से किसी युद्ध में नहीं कूदेगा अलबत्ता वह सऊदी अरब को लूट ज़रूर लेगा।

तो इन हालात में यह आदिल जुबैर क्या बयान दे रहे हैं? सऊदी अरब को चाहे जितना खतरा हो, वह खतरे अमरीका को ईरान के खिलाफ मैदान में नहीं उतार सकते। खुद सऊदी अरब की तो यह हालत है कि वह यमन के दलदल से निकलने के लिए छटपटा रहा है और उसके अहम ठिकाने, यमनियों  के निशाने पर हैं और स्वंय सऊदी हौसियों पर भी बड़ा व प्रभावशाली हमला करने की ताक़त नहीं रखता इस लिए आदिल जुबैर की ज़बान को लगाम लाने की ज़रूरत है क्योंकि वह सऊदी को फिर से फंसा देंगे। क्राउन प्रिंस बिन सलमान को चाहिए ईरान के साथ बात चीत का रास्ता तलाश करें क्योंकि यह महसूस हो रहा है कि ईरानी, वार्ता के लिए तैयार हैं जिसका एक प्रमाण ईरान के विदेशमंत्री जवाद ज़रीफ का वह बयान है जिसमें उन्होंने कहा है कि  अगर हालात उचित हों  तो वह रियाज़ की यात्रा करने पर तैयार हैं।

और आखिर में सऊदी नेताओं को एक सलाह, जुबैर का मुंह बंद कर दो बेचारे का दिमाग चल गया है।

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