पिछले हफ्ते हुए जी-20 और उसके बाद एपेक (एशिया प्रशांत इकोनॉमिक को-ऑपरेशन) शिखर सम्मेलनों में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की धुआंधार कूटनीति ने सबका ध्यान खींचा। विश्लेषकों के मुताबिक शी ने जितनी संख्या में अलग-अलग देशों के नेताओं से द्विपक्षीय वार्ताएं कीं, उससे यह साफ संकेत मिला कि वे अंतरराष्ट्रीय मामलों में अमेरिका पर चीन को बढ़त दिलाने का इरादा रखते हैं।
जी-20 शिखर सम्मेलन इंडोनेशिया के बाली और एपेक शिखर सम्मेलन थाईलैंड के बैंकॉक में हुआ। दोनों जगहों पर शी की कोशिश अपने को एक खुले दिमाग का नेता के रूप में पेश करने की रही। बाली में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन से अपनी द्विपक्षीय वार्ता के दौरान उन्होंने कहा कि नेताओं को यह अवश्य सोचना और समझना चाहिए कि वे दूसरे देशों को साथ लेकर कैसे चल सकते हैं। एपेक सम्मेलन में उन्होंने कहा- ‘कोई देश किसी का बैकयार्ड (आंगन) नहीं है। कोई इलाका बड़ी ताकतों के प्रभाव क्षेत्र बढ़ाने का स्थल नहीं होना चाहिए।’
अमेरिकी विश्लेषकों ने ध्यान दिलाया है कि शी जिनपिंग ने द्विपक्षीय मुलाकातों में खास कर अमेरिका के सहयोगी देशों पर ध्यान केंद्रित किया। कुछ टीकाकारों ने कहा कि इसके पीछे उनका इरादा अमेरिकी खेमे में फूट डालना था। इस लिहाज से उन्हें कुछ कामयाबी भी मिलती दिखी। ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी में राजनीति-शास्त्री वेन ती सुंग ने अमेरिकी टीवी चैनल सीएनएन से कहा- ‘जिस पैमाने पर अन्य देशों के प्रमुख शी से सीधी मुलाकात के लिए उत्सुक नजर आए, उसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि शी की यात्राएं सफल रहीं।’
शी ने इस दौरान अमेरिका के करीबी समझे जाने वाले जिन देशों के नेताओं से सीधी बातचीत की, उनमें ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, दक्षिण कोरिया, जापान, और सिंगापुर शामिल हैं। इनके अलावा उन्होंने फिलीपींस, पापुआ न्यू गिनी और इंडोनेशिया के नेताओं से भी द्विपक्षीय वार्ता की। उनकी इन गतिविधियों के संदर्भ में विश्लेषकों ने ये बात याद दिलाई है कि इस वर्ष के आरंभ में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ मिल कर शी ने ‘नई विश्व व्यवस्था’ कायम करने का इरादा घोषित किया था। बाली और बैंकॉक में 20 देशों के नेताओं से द्विपक्षीय वार्ता कर उन्होंने अपने इस प्रयास को आगे बढ़ाने की कोशिश की है।
हांगकांग बैपटिस्ट यूनिवर्सिटी के राजनीति-शास्त्री ज्यं पियरे केबेस्तान ने सीएनएन से कहा- ‘ऐसा लगा सभी नेता चीन के ‘सम्राट’ से मिलने के लिए कतार में खड़े हैं।’ शी ने कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो को जिस तरह सबके सामने फटकार लगाई। इसका जिक्र करते हुए केबेस्तान ने कहा- ‘इससे साफ हुआ कि शी की मुस्कान के साथ कूटनीति की एक सीमा है। अगर आप चीन के हितों को चोट पहुंचाएंगे, तो मुश्किल में पड़ जाएंगे।’
वेन ते सुंग ने कहा- ‘बाइडन चीन के खिलाफ तथाकथित उसूल आधारित समूह बनाने की कोशिश कर रहे हैं। जबकि शी उच्चस्तरीय कूटनीति के जरिए उस समूह को कमजोर करने की कोशिश में हैं। तमाम प्रतिकूल बातों के बावजूद शी ने साबित किया है कि चीन मे विभिन्न देशों को आकर्षित करने की क्षमता बनी हुई है। इस लिहाज से शी की कूटनीति सफल रही।’