सितम्बर की शुरूआत से ही चीन ने ताइवान द्वीप के इर्द-गिर्द घेरा तंग करना शुरू कर दिया था, जिसके बाद से ही इस तरह का अनुमान लगाया जा रहा था कि चीन ने ताइवान पर हमला करने का इरादा कर लिया है।
अब चीन के सैन्य गश्ती दल, जिनमें 30 से अधिक लड़ाकू विमान और आधा दर्जन युद्धपोत शामिल हैं, हर दूसरे दिन ताइवान और चीन के बीच की मध्य रेखा को लांघ रहे हैं, जिसका पिछले कई दशकों से दोनों पक्ष सम्मान करते आ रहे थे।
जैसे जैसे तनाव बढ़ रहा है, अमरीका के दक्षिणपंथी राजनीतिज्ञ और नीति निर्माता वाशिंगटन पर ताइवान की सुरक्षा की गारंटी देने का दबाव बना रहे हैं। एक ऐसा ठोस आश्वासन, जिससे अमरीका पिछले 4 दशकों से बचता रहा है।
लेकिन यहां सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या अमरीका का समर्थन, ताइवान को हार से बचा सकता है?
ज़ाहिर में तो ताइवान की हार को टालना संभव नहीं है। चीनी सेना ताइवान की सेना से 10 गुना बड़ी है। चीन के पास एशिया की सबसे बड़ी वायु सेना और दुनिया की सबसे बड़ी सेना है। इसी तरह से उसके पास पारंपरिक मिसाइल बल और शक्तिशाली नौसेना भी है। चीन की लंबी दूरी की वायु-रक्षा प्रणालियां, ताइवान के ऊपर उड़ने वाले विमानों को गिरा सकती हैं, और चीन की भूमिगत मिसाइलें और लड़ाकू विमान ताइवान की वायु सेना और नौसेना का सफ़ाया कर सकते हैं और पूर्वी एशिया में अमरीकी सैन्य ठिकानों को तबाह कर सकते हैं।
चीन ने 2015 के बाद से अमरीका से कई गुना अधिक युद्पोतों का निर्माण किया है, और ताइवान की तुलना में रक्षा पर उसका प्रतिवर्ष ख़र्च, एक के मुक़बाले में 25 है। सैन्य संतुलन स्पष्ट रूप से चीन के पक्ष में जाता दिखाई दे रहा है।
चीन स्व-शासित द्वीप पर संप्रभुता का दावा करता है, जो 1949 में गृह युद्ध के बाद चीन से अलग हो गया था।
बीजिंग का कहना है कि 1971 में संयुक्त राष्ट्र ने उसकी वन चाइना पॉलिसी को मान्यता प्रदान की थी, इसका मतलब है कि पूरे देश के लिए केवल एक क़ानूनी सरकार होनी चाहए। उसका कहना है कि ताइवान को चीन में शामिल होना ही होगा, इसीलिए उसने अन्य देशों से अपनी इस नीति का सम्मान करने का आग्रह किया है।
फिर भी ताइवान स्थानीय परिस्थितियों और भौगोलिक सथिति का लाभ उठाते हुए, द्वीप को सुरक्षित बना सकता है, बशर्ते कि ताइपे और वाशिंगटन इन परिस्थितियों का सही रूप में प्रयोग कर सकें।
हालांकि, मौजूदा परिस्थितियों में अमरीका के लिए यह मिशन आसान नहीं होगा। ताइवान से 500 मील की दूरी के भीतर अमरीकी सेना के पास केवल दो ठिकाने हैं, और दोनों ही चीन की मिसाइलों के लिए आसान लक्ष्य साबित हो सकते हैं। अगर चीन उन ठिकानों को निष्क्रिय कर देगा, तो अमरीकी वायु सेना को कमज़ोर विमान वाहक युद्धपोतों और ताइवान से 1,800 मील की दूरी पर स्थित गुआम से लड़ाकू विमानों को उड़ाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।
कुल मिलाकर अमरीका और ताइवान के लिए युद्ध का परिणाम, दुखद होगा। ताइवान की भौगोलिक स्थिति जो उसकी शक्ति है, वह चीन के मुक़ाबले में उसकी सबसे बड़ी कमज़ोरी भी साबित हो सकती है।
(साभार पी.टी)