-रवि जी. निगम
आखिरकार क्योंकर इतना डर और किसको डर ? किसके इशारे पर देश की आवाज उठाने वालों की आवाज दवाई जा रही है और आखिर क्यों ? क्या ये सोशल मीडिया का मंच है या सरकार का निजी प्लेटफॉर्म, या आज सोशल मीडिया सरकारी तंत्र का हिस्सा बनता जा रहा है, हम जैसे एक आम अदना पत्रकार / सामाजिक कार्यकर्ता क्या सरकार की नज़र में देश द्रोह कर रहा है ? क्या देश के मज़लूमों और पीडितों की आवाज़ बुलंद करना देश द्रोह ? क्या 2014 से पूर्व का वक्त याद है ? ये वही सोशल मीडिया है अब क्योंकर डर लग रहा है प्रभू ?
क्या ट्वीटर पर किसी प्रकार का सरकार का कोई दबाव है जिजके चलते, पहले फेशबुक पर ‘मानवाधिकार अभिव्यक्ति’ की बेवसाईट पर प्रतिबंध और अब ट्वीटर पर इमेज के साथ न्यूज पब्लिश क्यों नहीं ? आखिर ऐसा करके सरकार क्या दिखाना चाहती है ? इससे कलम को शांत करने में कामयाब होगी तो सायद नहीं, इससे कलम की धार और तेज होगी, शांत करना है तो खुलकर सामने आना चाहिये और हमें ही शांत करा देना चाहिये तब तो कलम शांत हो सकती है…
क्या सरकार इस बात से खिन्न है कि हम अपने प्रधानमंत्री , गृहमंत्री , राष्ट्रपति , सुप्रीमकोर्ट , विपक्ष के नेता व जवाबदेह व्यक्ति विशेष को इसके माध्यम से जानकारी से अवगत कराते हैं या कराना जुर्म है क्या ये मेरा अधिकार नहीं है ? क्या ये किसी द्रोह के अंतर्गत आता है ? यदि ऐसा सरकार के द्वारा नहीं किया गया है, तो फिर सरकार इस पर फेशबुक व ट्वीटर से जानकारी जुटा कर हमारी समस्या का समाधान करवाने में मेरी मदद करेंगे ? क्या ये साइबर अटैक है ?