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‘मानवाधिकार अभिव्यक्ति’ प्राधानमंत्री जी का बहुत-2 आभार व्यक्त करता है, कि देश की जनता की असमंजस की स्थिति पर उठाये गये सवाल पर उन्होने संबोधित किया…

-रवि जी. निगम

मोदी जी व उनकी सरकार भारत की जनसंख्या को लेकर तो सफाई देते हैं, वहीं अमेरिका और ब्राजील का जिक्र करते हैं पर चाइना की जनसंख्या को नहीं बताते और उसके प्रतिदिन नये मामले और मौंत के आकडे अभी तक कुल कितने संक्रमित हैं या हुये इस पर जनता को क्यों नहीं बताते ? 138 करोड जनसंख्या वाला भारत कोरोना मामले में दुयिनां के दूसरे नंबर पर है और 144 करोड की जनसंख्या वाला चाइना 54वें नंबर पर क्यों है ?(शेष अगले अंक में)

सामाजिक कार्यकर्ता – संपादक

‘मानवाधिकार अभिव्यक्ति’ ने देश के विषेश गणमान्यों से जनता के बीच उत्पन्न असमंजस की स्थिति को समाप्त करने की आपील की थी कि प्रधानमंत्री जी को ये साफ करना चाहिये कि ‘जब तक दबाई नहीं, तब तक ढिलाई नहीं’ या आत्मनिर्भर भारत के एजेंडे पर चले ? या फिर स्वास्थमंत्री के बातों पर भरोसा करे ? या स्वास्थ मंत्रालय की कि कोरोना अब कमजोर पड गया है, आखिर लोग उनकी बात पर यकीन करें या फिर भारत सरकार के वैज्ञानिकों के समिति के दावों पर भरोसा करे कि फरवरी में कोरोना खत्म हो जायेगा ? जिसको लेेेेकर बडे-बडे मीडिया विश्लेशक पुरे दिन वो इस पर बोल सकतेे हैं …

जिस पर फिलहाल वो खुलकर तो नहीं बोले जिसके लिये वो प्रख्यात हैं, परन्तु इतना जरूर समझाने पर जोर दिया कि कोरोना अभी गया नहीं है, उन्होने मास्क और दो गज दूरी है बहुत ही जरूरी इसका जिक्र वो करते नज़र आये, इतना ही नहीं मीडिया और सोशल मीडिया से देश के हित में जन-जागृति करने में सहयोग देने और सरकार की मदद करने की आपील की…

लेकिन जो सरकार को जागृत करने का कार्य कर रहा है और सुझाव देकर सरकार के बोझ को कम करने, इतना ही नहीं लॉकडाऊन में ‘मनरेगा’ जैसे योजना के माध्यम से प्रवासी मजदूरों को लाभ दिये जाने के सुझाव और उन्हे सही सलामत घर पहुंचाने के साथ-साथ कोरोना के भयावह स्थिति से बच निकलने के सुझाव देने वाले को दो शब्द तक बोलने या धन्यवाद तक देने की हिम्मत तक न जुटा पाये उस पर आज भी अफ़शोस है जिसने देश के अंदर उत्पन्न पलायन की स्थिति जैसी गंभीर हालात को काबू में लाने का कार्य किया, प्रवासी मजदूर या देश के अन्य हिस्सों में फसे लोगो को समय पर न हटाया जाता तो वो कोरोना बम के रूप में विस्फोटक स्थिति को निर्माण कर देते और देश भयावह स्थिति से गुजर रहा होता या नहीं उससे बचाया उसे भूल जाते हैं क्यों ? ये तो आंकलन / गणना बुद्धजीवीजनों या विषेश गणमान्यजनों को करना चाहिये कि नहीं ये सवाल उन पर उठता है ?

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