रिपोर्ट – सज्जाद अली नायाणी
पिछले ही हफ़्ते ईरानी अधिकारियों ने आईआरजीसी की कुद्स ब्रिगेड के कमांडर मेजर जनरल क़ासिम सुलेमानी की हत्या की इस्राईल-अरब संयुक्त साज़िश से पर्दा उठाया था, जिसके बाद इस्राईल की ख़ुफ़िया एजेंसी मोसाद के प्रमुख ने कहा है कि जनरल सुलेमानी की हत्या करना असंभव नहीं है।
विदेश – ईरान की सुरक्षा एजेंसियों ने इस साज़िश का पर्दाफ़ाश करते हुए कहा था कि एक इमामबाड़े में मजलिस के दौरान 400 से 500 किलोग्राम विस्फ़ोटक पदार्थ लगाकर जनरल सुलेमानी की हत्या की साज़िश रची जा रही थी, लेकिन ईरानी अधिकारियों की इस साज़िश पर शुरू से ही नज़र थी।
इस्राईली मेगज़ीन मिशपाचा को इंटरव्यू देते हुए मोसाद प्रमुख योसी कोहेन ने दावा किया है कि ईरान की क़ुद्स ब्रिगेड के कमांडर यह जानते हैं कि उनकी हत्या करना असंभव नहीं है। लेकिन सुलेमानी ने आज तक कोई ऐसी चूक नहीं की है, जिसका मोसाद फ़ायदा उठा सकती थी।
कोहेन से जब जनरल सुलेमानी के एक हालिया बयान के बारे में पूछा गया कि जिसमें उन्होंने उल्लेख किया था कि 2006 में हिज़्बुल्लाह-लेबनान युद्ध के दौरान वे और हिज़्बुल्लाह के नेता हसन नसरुल्लाह इस्राईली बमबारी की ज़द में आने से बच गए थे, तो मोसाद प्रमुख ने उसके जवाब में यह टिप्पणी की।
इस्राईल की जासूसी एजेंसी के चीफ़ ने स्वीकार किया कि सुलेमानी की कार्यवाहियों को हर जगह पहचाना और महसूस किया जा सकता है और इसमें कोई शक नहीं है कि उन्होंने क्षेत्र में एक ऐसा ढांचा (इस्लामी प्रतिरोध) तैयार कर दिया है, जिससे इस्राईल के अस्तित्व को गंभीर ख़तरा हो गया है।
मोसाद प्रमुख कोहेन ने यह भी दावा किया कि उनकी एजेंसी हिज़्बुल्लाह प्रमुख सैय्यद हसन नसरुल्लाह की हत्या कर सकती थी और वे ख़ुद यह बात जानते हैं कि हमारे पास उनकी हत्या का मौक़ा था।
कोहेन से जब यह पूछा गया कि फिर मोसाद ने ऐसा क्यों नहीं किया तो उन्होंने इसका कोई जवाब नहीं दिया।
कोहेन ने कहा, “उनके (सुलेमानी) भरपूर सम्मान के साथ मैं कहना चाहता हूं कि उन्होंने कोई ऐसी ग़लती नहीं की है, जिससे वह मोसाद के शिकारों की सूची में जगह पा सकें।”
इसी के साथ मोसाद प्रमुख का यह भी कहना था कि इस्राईल, ईरान से टकराने में कोई दिलचस्पी नहीं रखता है।
ग़ौरतलब है कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान, इस्राईल ने क्षेत्र में ईरान के बढ़ते हुए प्रभाव को रोकने और उसे कमज़ोर करने के लिए अपनी पूरी ताक़त झोंक दी, लेकिन इस्राईली अपने इस मिशन में नाकाम हो गए, जिसे वे स्वीकार करने के बजाए उल्टे सीधे दावे कर रहे हैं और अपनी खोई हुई साख को बहाल करने की असफल कोशिश कर रहे हैं।
हालांकि कुछ ज़ायोनी इस सच्चाई को स्वीकार कर रहे हैं कि इस्राईल को सीधे ईरान से दुश्मनी मोल नहीं लेनी चाहिए थी, क्योंकि ईरान की बढ़ती हुई शक्ति का मुक़ाबला करने की इस्राईल में क्षमता नहीं है।