रिपोर्ट – सज्जाद अली नायने
दिल्ली – द हिंदू” प्रकाशन समूह के चेयरमैन एन. राम ने कहा है कि रफाल सौदे से जुड़े दस्तावेज जनहित में प्रकाशित किए गए हैं। उन्होंने कहा कि इस दस्तावेज को मुहैया करने वाले गुप्त सूत्रों के बारे में ‘द हिंदू’ समाचारपत्र से कोई भी व्यक्ति कोई भी सूचना नहीं पाएगा।
द वायर के अनुसार वरिष्ठ पत्रकार एन. राम ने कहा कि जानकारी को दबाकर या छिपाकर रखे जाने के कारण ही यह दस्तावेज प्रकाशित किए गए। एन. राम ने कहा, ‘आप इसे चोरी हो गए दस्तावेज कह सकते हैं। हम इसको लेकर चिंतित नहीं हैं। हमें यह गुप्त सूत्रों से मिला और हम इन सूत्रों की रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। कोई भी इन सूत्रों के बारे में हमसे कोई भी सूचना नहीं पाने जा रहा है। लेकिन दस्तावेज खुद ही बोलते हैं और खबरें खुद ब खुद बोलती हैं।
ज्ञात रहे कि एन राम ने रफाल सौदे पर सिलसिलेवार ढंग से रिपोर्ट लिखी है जिसकी एक ताजा रिपोर्ट बुधवार को प्रकाशित हुई। राम ने कहा, ‘मैं उच्चतम न्यायालय की कार्यवाही पर टिप्पणी नहीं करूंगा, लेकिन हमने जो कुछ प्रकाशित किया वह प्रकाशित हो चुका है। वे प्रामाणिक दस्तावेज हैं और वे जनहित में प्रकाशित किए गए क्योंकि यह सब ब्योरा दबा कर या छिपा कर रखा गया था। उन्होंने कहा, ‘यह प्रेस का कर्तव्य है कि खोजी पत्रकारिता के जरिए जनहित के लिए काफी अहमियत रखने वाली प्रासंगिक सूचना या मुद्दे सामने लाएं जाएं।
उल्लेखनीय है कि एन राम ने आठ फरवरी को ‘द हिंदू’ में लिखा था कि भारत और फ्रांस के बीच 59,000 करोड़ रुपये के रफाल सौदे को लेकर चली वार्ता के दौरान प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) द्वारा ‘समानांतर बातचीत’ किए जाने पर रक्षा मंत्रालय ने आपत्ति दर्ज कराई थी। यह रफाल सौदे से जुड़े सरकारी दस्तावेज पर कथित तौर पर आधारित था।
राम ने कहा, ‘‘हमने जो कुछ किया वह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (1)(ए) वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तहत और सूचना का अधिकार अधिनियम, विशेष रूप से इसकी धारा आठ (1)(आई) और धारा 8(2) के तहत पूरी तरह से संरक्षित है। द हिंदू के अनुसार उन्होंने कहा, ‘इसमें किसी राष्ट्रीय सुरक्षा हित से समझौता होने का कोई सवाल ही नहीं है।
भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में सरकारी गोपनीयता कानून, 1923 को खत्म किए जाने की वकालत करते हुए एन. राम ने कहा, ‘सरकारी गोपनीयता कानून औपनिवेशिक कानून का एक आपत्तिजनक हिस्सा है जो लोकतंत्र विरोधी है और स्वतंत्र भारत में प्रकाशनों के खिलाफ शायद ही कभी इस्तेमाल किया गया है। उन्होंने कहा, ‘अगर जासूसी या कुछ और होता है तो वह अलग मामला है। यहां ऐसी सामग्री है जिसे सार्वजनिक किया जाना चाहिए और ऐसी सूचना है जो स्वतंत्र होनी चाहिए। यह सभी पाठकों के लिए स्वतंत्र रूप से उपलब्ध होनी चाहिए।
अटॉर्नी जनरल ने अदालत में जो टिप्पणी की है उसका खोजी पत्रकारिता पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर राम ने कहा, ‘यदि यह सरकार की नीति का प्रतिनिधित्व करता है, तो स्पष्ट रूप से इसका पत्रकारिता और विशेष रूप से खोजी पत्रकारिता पर प्रभाव पड़ेगा। हालांकि उन्होंने कहा, ‘ऐसे किसी भी प्रयास के सफल होने की संभावना नहीं थी। उन्होंने कहा, ‘केवल द हिंदू ही नहीं बल्कि कुछ अन्य स्वतंत्र मीडिया संस्थानों ने भी रफाल पर जानकारी सार्वजनिक की है। 1980 के दशक में हुए बोफोर्स घोटाले की जांच में भी हमने अग्रणी भूमिका निभाई थी।
उन्होंने कहा, ‘इस सरकार के कार्यकाल में मीडिया संस्थानों में भय का माहौल पैदा हुआ है लेकिन अब भारतीय मीडिया ने और भी बहुत कुछ करने का फैसला कर लिया है। सबसे बड़ी बात है कि इस मुद्दे को बड़े पैमाने पर छुपाने की कोशिश की गई। इस मुद्दे पर कुछ लोग जो चुप्पी का माहौल बनाए रखना चाहते थे वह टूटा है। एन. राम ने आगे कहा कि अपनी इस जांच में द हिंदू ने पूरी जिम्मेदारी के साथ काम किया है। हालांकि इसका यह मतलब नहीं था कि जो कुछ भी हमारे हाथ में आया उसे खोजी पत्रकारिता के नाम पर हमने सार्वजनिक कर दिया।
उन्होंने कहा, ‘उदाहरण के तौर पर रफाल मामले में स्वतंत्र जांच के दौरान भारत से जुड़ी हुई 13 प्रक्रियाओं की जानकारी हमारे हाथ लगी लेकिन अखबार ने यह फैसला किया कि उन्हें प्रकाशित करने की कोई आवश्यकता नहीं है। उन्होंने कहा, सरकार ने कहा था कि इस तरह की तकनीकी जानकारियां बहुत ही संवेदनशील हैं और वे दुश्मन देश के लिए सहायक हो सकती हैं और नुकसान पहुंचा सकती हैं।
द हिंदू प्रकाशन समूह के चेयरमैन एन. राम ने कहा हालांकि मैं इस बात से सहमत नहीं था लेकिन फिर भी हमने उन तकनीकी जानकारियों को प्रकाशित नहीं करने का फैसला किया। ज्ञात रहे कि भारत की केन्द्र सरकार ने बुधवार को इस देश के उच्चतम न्यायालय से कहा था कि रफाल लड़ाकू विमान सौदे से जुड़े दस्तावेज रक्षा मंत्रालय से चोरी हो गए और इस चोरी की जाचं जारी है।