बाराबंकी । —————-सात समंदर पार जाकर गरीबी के तले दबे परिवार को उभारने और बच्चो को आला मार्डन तालीम दिलाने का सपना संजोये रफीउल्ला खान अचानक विदेश में एक चराग की तरह बुझ गए। उनकी मौत की खबर जब फोन से मिली तो कोहराम मच गया। पल भर में सैकड़ो का मजमा लग गया ।
■ ओके बेटी दो लाख भेज रहा ■
थाना मसौली के कस्बा त्रिलोकपुर निवासी रफीउल्ला खान एक बेहद गरीब जिंदगी पाकर होश संभाला लंबे संघर्ष के बाद विदेश जाने का रास्ता निकाल कर वहां 10 साल बिताए इस दौरान सऊदी अरब के जेद्दा शहर की सबसे बड़ी सुपर मार्किट में कपड़ा सिलाई की कंपनी डाल कर अपना व्यवसाय शुरू किया इसी के साथ परिवार में खुशियों ने पैर पसारे गुरबत के दिन दूर हुए बच्चे मार्डन शिक्षा में तेजी से आगे बढ़ रहे थे बेटा आजम खान उर्फ सीबू एमएससी तो बेटी जिया खान डीएमएलटी में एडमिशन के लिए मौत से 2 घंटे पहले बेटी ने फोन पर दो लाख रुपया मांगा जिस पर बच्चो के प्यारे पापा ने कहा था ओके बेटी मैं दो लाख रुपया भेज रहा हु दोनों लोग एडमिशन जरूर कराना। अपने पिता की यही बात बता कर बिलख रही जिया खान कहती है कि अब हमें डॉक्टर कौन बनवायेगा। पापा आपको जाना ही था तो इतना प्यार न करते आपकी बहुत याद आ रही है…….
■ अटैक से हुई मौत ■
मौत से दो घण्टे पूर्व जब फोन पर बेटी जिया खान की पढ़ाई के लिए दो लाख रुपया भेजने की बात कही थी तब कस्बा त्रिलोकपुर एव सात समुंदर पार दोनों जगह खुशियाँ थी। लेकिन अचानक पड़े अटैक से हुई मौत से दोनों ओर कोहराम मच गया और घर मे मातम बना हुआ है।
■ आठ माह पूर्व गए थे सऊदी ■
10 सालो से विदेश कमा रहे रफीउल्ला कई साल बाद आकर 8 माह पूर्व विदेश गए थे। 2 बेटे 4 बेटियां और पत्नी नसरीन बानो को अब कोई सहारा नही बचा घर को सजाने सवारने किं जिम्मेदारी सिर्फ मृतक पर थी बेहद नरम स्वभाव और कस्बे के गरीबो की गोपनीय मदद करने वाले रफीउल्ला काफी लोकप्रिय थे मौत की खबर ने हर शख्स की आंखे नम कर दी ।
■ अंतिम दर्शन भी नसीब नही हुए ■
विदेश में मौत के बाद परिवार चाहता था कि किसी भी कीमत पर मिट्टी अपने वतन लायी जाए लेकिन कानूनी पेंच और जानकारियों के अभाव में कामयाबी नही मिली जिलाधिकारी से फरियाद करने आई पत्नी बच्चो को कामयाबी नही मिल पाई आखिरकर मिट्टी दफनाने का इजाजतनामा लिख कर जेद्दा भेज दिया । परिवार के मुताबिक 15 दिन लग जाते शव लाने में इतने दिन तक मिट्टी रोकवाना अच्छा नही समझा गया ।