बीएमसी ने शिवसेना के दोनों गुटों को शिवाजी पार्क में दशहरा रैली आयोजित करने कि इजाज़त नहीं दी है। रैली को लेकर उद्धव और एकनाथ शिंदे गुट में खींचतान चल रही थी। 50 सालों में पहली बार ऐसा हुआ है कि शिवसेना को यहां रैली करने से रोक दिया गया है। 56 साल से यहां दशहरा रैली होती आई है। हालांकि बीएमसी के इस फैसले के बाद उद्धव और एकनाथ शिंदे गुट के बीच तनातनी और बढ़ सकती है। बता दें कि शिवाजी पार्क और दशहरा रैली दोनों ही ठाकरे परिवार के लिए बेहद अहम है। दो पीढ़ियों से यह परिवार दशहरा रैली का आयोजन कर रहा है।
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शिवसेना का शिवाजी पार्क से बेहद पुराना और भावनात्मक रिश्ता है। पार्टी सुप्रीमो बाल ठाकरे ने जब शिवसेना की स्थापना की थी तो पहली बार अक्टूबर 1966 में दशहरा रैली का आयोजन किया था। यह एक तरह से शिवसेना का आरंभिक सम्मेलन था जिससे जनता और पार्टी के बीच एक संबंध स्थापित हुआ। बाल ठाकरे के पिता जी, सामाजिक कार्यकर्ता प्रबोधनकर केशव सीताराम ठाकरे भी दशहरे पर उत्सव का आयोजन किया करते थे। इसके बाद इसी ग्राउंड में बाल ठाकरे और फिर उद्धव ठाकरे भी रैली का आयोजन करने लगे। पहली बार जब शिवसेना-भाजपा की सरकार बनी थी तब भी इसी मैदान में शपथ ग्रहण हुआ था। इसके बाद महाविकास अघाड़ी सरकार का भी शपथ ग्रहण यहीं कराया गया। बाल ठाकरे का अंतिम संस्कार भी 2012 में इसी मैदान में किया गया था।
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बुधवार को उद्धव ठाकरे ने इस बात पर जोर दिया था कि जनसभा शिवाजी पार्क में ही होगी। पार्टी शिंदे को अपनी ताकत दिखाना चाहती थी। हालांकि शिवसेना नेता ने यह भी स्वीकार किया कि वे किसी वैकल्पिक जगह की तलाश कर रहे हैं। पूर्व मंत्री और शिवसेना नेता अनिल परब ने कहा कि अभी वे हाई कोर्ट के फैसले का इंतजार कर रहे हैं। इसके बाद ही कोई फैसला किया जाएगा। उन्होंने कहा, मुझे पूरी उम्मीद है कि हाई कोर्ट हमें शिवाजी पार्क में रैली करने की इजाज़त देगा
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एक अन्य नेता ने कहा कि 99.9 प्रतिशत पक्का है कि हाई कोर्ट उद्धव ठाकरे के पक्ष में फैसला सुनाएगा क्योंकि इसपर उनका प्राकृतिक हक है। उन्होंने कहा, हमने परमिशन के लिए भी पहले आवेदन किया था। एक नेता ने यह भी कहा कि अगर हाई कोर्ट हमें परमिशन नहीं देता है तो हमें संवेदना भी मिलेगी। बता दें कि करोना काल के दौरान वैसे भी दशहरा रैली नहीं हो रही थी। 2019 के बाद पहली बार यहां बड़ी जनसभा की योजना बनाई गई थी।