अटल सत्य ….
क्या कहूँ , क्या न कहूँ ,
कुछ बूझ नहीं रहा है मन को ।
कैसे दिल को यकीन दिलाऊँ ,
‘अटल’ छोड़ चले हैं वतन को ॥
वो ‘अटल’ अमर अविनासी ,
जो थे रोम – रोम के थे वासी ।
वो ‘आजात शत्रु’ दुनियाँ का ,
मौन कर गया ‘अटल वाणी’ को ॥
वो रत्न खो गया मेरा ,
सदैव ‘अमर अटल’ रहेगा चेहरा ।
वो ‘पत्रकार’ ‘कवि’ साहित्य को ,
खामोश कर गये ‘अटल’ कलम को ॥
वो बढ़ाने आकाश गंग की शोभा ,
चिर निद्रा में लीन हो गये है ।
आजादी से लेकर आज तक ,
सदैव बुलंद करते रहे वतन को ॥
कोई अपना न पराया उनका ,
न कोई शत्रु ही उनका था ।
भले पंच तत्व में विलीन हो जायें ,
पर सदैव याद आते रहेंगे वतन को ॥
भले भाव भंगिमाओं की नकल कोई कर ले ,
लाख उनके जैसा बनने की कोशिस कर ले ।
कोई पूर्ति नही कर सकता ,
उनकी ‘अजर’ ‘अटल’ ‘अमिट छवि’ को ॥