अंतरिक्ष क्षेत्र में विकास के लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की नीति को भारतीय अंतरिक्ष संघ ने जायज ठहराया है। भारतीय अंतरिक्ष संघ के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) एके भट्ट ने कहा कि एफडीआई नीति अंतिम चरण में हैं। साथ ही उन्होंने कहा, ‘आशा है एफडीआई नीति एक बार लागू होने के बाद भारतीय बड़ी कंपनियों के मुनाफे में आने पर निवेश शुरू हो जाएगा। इससे निजी कंपनियों को काम करने में सक्षम होने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन मिलेगा। भारतीय अंतरिक्ष संघ के मुताबिक, अंतरिक्ष क्षेत्र के लिए भारत की आगामी एफडीआई नीति उपग्रह संचालन, लॉन्च वाहन निर्माण और सबसिस्टम उत्पादन में 100 प्रतिशत विदेशी निवेश की अनुमति दे सकती है।
वर्तमान एफडीआई नीति उपग्रह स्थापना और संचालन के क्षेत्र में 100 प्रतिशत तक एफडीआई की अनुमति देती है, लेकिन केवल सरकारी मार्ग के जरिए ही। सरकार की योजना स्वचालित मार्ग से 74 प्रतिशत तक और सरकारी मार्ग से 100 प्रतिशत तक विदेशी स्वामित्व की अनुमति देने की है। नई नीति का लक्ष्य उपग्रह संचार में वैश्विक निवेशकों को आकर्षित करना है। भारतीय अंतरिक्ष स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र में पिछले साल आए 110 मिलियन डॉलर से अधिक निवेश आकर्षित होने की उम्मीद है।
दूरसंचार विधेयक, 2023 होगा मील का पत्थर साबित
बता दें भारत के बढ़ते उपग्रह संचार क्षेत्र के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर चिह्नित करते हुए दूरसंचार विधेयक, 2023 को हाल ही में संसद के दोनों सदनों से पारित होने के साथ विधायी मंजूरी मिल गई है। भारतीय अंतरिक्ष संघ ने विधेयक को एक ‘मील का पत्थर’ करार दिया, जिसमें कहा गया कि यह भारत में उपग्रह स्पेक्ट्रम के प्रशासनिक आवंटन का मार्ग प्रशस्त करेगा। अक्टूबर में अंतरिक्ष विभाग (DOS) के तहत नोडल एजेंसी, भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन और प्राधिकरण केंद्र (IN-SPACe) ने भारतीय अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था के लिए दशकीय दृष्टि और रणनीति का अनावरण किया। यह एक स्वायत्त नोडल एजेंसी है, जिसका गठन जून 2020 में अंतरिक्ष गतिविधियों को करने के लिए गैर-सरकारी संस्थाओं को बढ़ावा देने, सक्षम करने, अधिकृत करने और पर्यवेक्षण करने के लिए किया गया था।