सौ. चित्र स. ज्ञा.
‘मानवाधिकार अभिव्यक्ति’ परिवार की ओर से सभी देश वासियों को हिंदी दिवस की बहुत – बहुत बधाई व हार्दिक शुभकामनाएं। —- संपादक – रवि जी. निगम
‘बड़े बावरे हिन्दी के मुहावरे’
हिंदी के मुहावरे, बड़े ही बावरे है,खाने पीने की चीजों से भरे है…
कहीं पर फल है तो कहीं आटा-दालें है,कहीं पर मिठाई है, कहीं पर मसाले है ,फलों की ही बात ले लो…
आम के आम और गुठलियों के भी दाम मिलते हैं, कभी अंगूर खट्टे हैं,कभी खरबूजे, खरबूजे को देख कर रंग बदलते हैं,कहीं दाल में काला है,तो कहीं किसी की दाल ही नहीं गलती,कोई डेड़ चावल की खिचड़ी पकाता है,
तो कोई लोहे के चने चबाता है,कोई घर बैठा रोटियां तोड़ता है,कोई दाल भात में मूसरचंद बन जाता है,मुफलिसी में जब आटा गीला होता है,तो आटे दाल का भाव मालूम पड़ जाता है,
सफलता के लिए बेलने पड़ते है कई पापड़,आटे में नमक तो जाता है चल,पर गेंहू के साथ, घुन भी पिस जाता है,अपना हाल तो बेहाल है, ये मुंह और मसूर की दाल है,गुड़ खाते हैं और गुलगुले से परहेज करते हैं,और कभी गुड़ का गोबर कर बैठते हैं,कभी तिल का ताड़, कभी राई का पहाड़ बनता है,कभी ऊँट के मुंह में जीरा है,कभी कोई जले पर नमक छिड़कता है,किसी के दांत दूध के हैं,तो कई दूध के धुले हैं,कोई जामुन के रंग सी चमड़ी पा के रोई है, तो किसी की चमड़ी जैसे मैदे की लोई है, किसी को छटी का दूध याद आ जाता है, दूध का जला छाछ को भी फूंक फूंक पीता है, और दूध का दूध और पानी का पानी हो जाता है,
शादी बूरे के लड्डू हैं, जिसने खाए वो भी पछताए,और जिसने नहीं खाए, वो भी पछताते हैं,
पर शादी की बात सुन, मन में लड्डू फूटते है,और शादी के बाद, दोनों हाथों में लड्डू आते हैं,
कोई जलेबी की तरह सीधा है, कोई टेढ़ी खीर है, किसी के मुंह में घी शक्कर है, सबकी अपनी अपनी तकदीर है…कभी कोई चाय-पानी करवाता है, कोई मख्खन लगाता है और जब छप्पर फाड़ कर कुछ मिलता है,तो सभी के मुंह में पानी आता है, अब कुछ भी हो, घी तो खिचड़ी में ही जाता है, जितने मुंह है, उतनी बातें हैं,
सब अपनी-अपनी बीन बजाते है,
पर नक्कारखाने में तूती की आवाज कौन सुनता है, सभी बहरे है, बावरें है ….
ये सब हिंदी के मुहावरें हैं…
ये गज़ब मुहावरे नहीं बुजुर्गों के अनुभवों की खान हैं…
पूछो तो हिन्दी भाषा की जान हैं….
हिंदी एक वैज्ञानिक भाषा है और कोई भी अक्षर वैसा क्यूँ है उसके पीछे कुछ कारण है ,
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क, ख, ग, घ, ङ- कंठव्य कहे गए, क्योंकि इनके उच्चारण के समय ध्वनि कंठ से निकलती है।
एक बार बोल कर देखिये |
च, छ, ज, झ,ञ- तालव्य कहे गए, क्योंकि इनके उच्चारण के समय जीभ तालू से लगती है।
एक बार बोल कर देखिये |
ट, ठ, ड, ढ , ण- मूर्धन्य कहे गए, क्योंकि इनका उच्चारण जीभ के मूर्धा से लगने पर ही सम्भव है। एक बार बोल कर देखिये |
त, थ, द, ध, न- दंतीय कहे गए, क्योंकि इनके उच्चारण के समय जीभ दांतों से लगती है। एक बार बोल कर देखिये |
प, फ, ब, भ, म,- ओष्ठ्य कहे गए, क्योंकि इनका उच्चारण ओठों के मिलने पर ही होता है। एक बार बोल
कर देखिये ।
हम अपनी भाषा पर गर्व करते हैं ये सही है परन्तु लोगो को इसका कारण भी बताईये |इतनी वैज्ञानिकता दुनिया की किसी भाषा मे नही है!!
क,ख,ग क्या कहता है जरा गौर करें….
क – क्लेश मत करो
ख- खराब मत करो
ग- गर्व ना करो
घ- घमण्ड मत करो
च- चिँता मत करो
छ- छल-कपट मत करो
ज- जवाबदारी निभाओ
झ- झूठ मत बोलो
ट- टिप्पणी मत करो
ठ- ठगो मत
ड- डरपोक मत बनो
ढ- ढोंग ना करो
त- तैश मे मत रहो
थ- थको मत
द- दिलदार बनो
ध- धोखा मत करो
न- नम्र बनो
प- पाप मत करो
फ- फालतू काम मत करो
ब- बिगाङ मत करो
भ- भावुक बनो
म- मधुर बनो
य- यशश्वी बनो
र- रोओ मत
ल- लोभ मत करो
व- वैर मत करो
श- शत्रुता मत करो
ष- षटकोण की तरह स्थिर रहो
स- सच बोलो
ह- हँसमुख रहो
क्ष- क्षमा करो
त्र- त्रास मत करो
ज्ञ- ज्ञानी बनो !!
आप सभी को हिंदी दिवस की पुनः बधाई व शुभकामनाएं।