रिपोर्ट – सज्जाद अली नयाने
ब्रिटेन के राजनैतिक हालात और इसी तरह अमरीका के साथ उसके संबंधों की समीक्षा से स्पष्ट हो जाता है कि मेडिट्रेनियन सागर में ईरान के तेल टैंकर को रोके जाने और उसके बाद हुर्मुज़ स्ट्रेट में ब्रिटिश तेल टैंकर को रोके जाने की घटना लंदन के लिए सबसे बुरे समय में घटी है।
विदेश – शुक्रवार की शाम इस्लामी क्रांति संरक्षक बल (आईआरजीसी) ने घोषणा की कि “स्टेना इम्पेरो” नामक ब्रिटेन के एक तेल टैंकर को अंतर्राष्ट्रीय क़ानूनों के उल्लंघन के कारण रोक लिया गया है। इसके तुरंत बाद संचार माध्यमों ने इस प्रकार की समीक्षाएं देना शुरू कर दीं कि ईरान ने, जिब्राल्टर में अपने ग्रेस-1 तेल टैंकर को ब्रिटेन द्वारा रोके जाने का बदला लिया है। जबकि ईरान के उच्चाधिकारी इससे पहले स्पष्ट रूप से सचेत कर चुके थे कि वे ब्रिटेन की समुद्री डकैती का जवाब ज़रूर देंगे। जनमत को इस बात की प्रतीक्षा थी कि अमरीका व ब्रिटेन ने अपने आपको ईरान के संभावित जवाब के लिए तैयार कर रखा होगा लेकिन दूसरी घटना के आरंभ से ही इन दोनों देशों ने अत्यंत सतर्कतापूर्ण प्रतिक्रिया दिखाई।
ब्रिटेन के विदेश मंत्री जेरेमी हंट ने कहा कि उनका देश इस बात की कोशिश करेगा कि कूटनैतिक मार्ग से फ़ार्स की खाड़ी में रोके गए अपने तेल टैंकर को मुक्त कराए। उन्होंने जिब्राल्टर में ईरान के तेल टैंकर को रोकने के घटना में अपने देश के दायित्व की ओर कोई भी इशारा किए बिना ईरान से निवेदन किया कि जहाज़ पर सवार लोगों को रिहा किया जाए। अमरीका के राष्ट्रपति ट्रम्प ने भी अपनी आरंभिक प्रतिक्रिया में इस बात की भरपूर कोशिश की कि अमरीका को इस मामले में सीधे रूप से शामिल न किया जाए। उन्होंने केवल इतना कहा कि इल मामले में लंदन से बात की जाएगी। अब संयम से काम लेना चाहिए और देखना चाहिए कि क्या होता है। सवाल यह है कि पिछले हफ़्ते ईरान के हर प्रकार के संभावित जवाब पर प्रचारिक हो हल्ले के विपरीत अमरीका व ब्रिटेन क्यों कुछ भी नहीं कर सके? ब्रिटेन के वर्तमान राजनैतिक हालात और इसी तरह लंदन व ब्रिटेन के संबंधों की मौजूदा परिस्थितियों की समीक्षा से इस अक्षमता के कारण स्पष्ट हो जाते हैं। इस मामले में ब्रिटेन के हाथ बंधे होने के पांच अहम कारण इस प्रकार हैं।
प्रतिक्रिया के लिए सबसे बुरी स्थिति
“स्टेना इम्पेरो” तेल टैंकर को उस समय रोका गया है जब ब्रिटेन में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवारों के चयन से पहले राजनैतिक हालात बुरी तरह ख़राब हैं और नया प्रधानमंत्री 24 जुलाई को सत्ता अपने हाथ में लेगा। इस तेल टैंकर को रोके जाने पर किसी भी तरह की कड़ी प्रतिक्रिया, प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशियों में से किसी को भी मैदान से बाहर कर सकती है। ईरान की ओर से संभावित प्रतिक्रिया, जेरेमी हंट और बोरिस जाॅन्सन में से किसी भी एक के लिए हालात को पूरी तरह बिगाड़ कर रख देगी।
अगर उचित प्रतिक्रिया नहीं दिखाई गई तो यह भी दोनों के लिए हानिकारक सिद्ध हो सकती है। यही कारण है कि हंट ने कूटनीति पर बल दिया और राजनितिज्ञों के अनुसार अपने आपको सेफ़ ज़ोन में डाल दिया और इस मामले में प्रतिक्रिया दिखाने के बावजूद अपने आपको राजनैतिक क्षति से बचाने की कोशिश की।
टकराव में ब्रिटेन की कमज़ोर स्थिति
कहा जा सकता है कि जिब्राल्टर में ईरान के सुपर तेल टैंकर को रोकने की घटना भी ब्रिटेन के लिए बहुत बुरे समय में घटी क्योंकि इस घटना ने हुर्मुज़ स्ट्रेट की हालिया घटना पर प्रतिक्रिया के लिए लंदन के हाथ बांध दिए हैं। लंदन की प्रतिक्रिया पर ग्रीस-1 को रोकने की घटना के प्रभाव को दो आयामों से देखा जा सकता हैः
जनमत का साथः ग्रेस-1 को रोके जाने के बाद ईरान व लंदन के बीच शाब्दिक झड़पों के बाद जनमत को ईरान की ओर से प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा थी और वह इस घटना को, ब्रिटेन के पिछले आक्रामक क़दम पर प्रतिक्रिया के रूप में देख रहा है और उसे दोषी नहीं मानता। ब्रिटेन भी चूंकि जानता है कि तनाव उसी ने शुरू किया है इस लिए वह ईरान के ख़िलाफ़ प्रतिक्रिया में जनमत को अपने साथ नहीं देखता।
कूटनीति का साथः देशों व अंतर्राष्ट्रीय हल्क़ों की आरंभिक प्रतिक्रिया से भी स्पष्ट हो जाता है कि ब्रिटेन को ईरानी तेल टैंकर के ख़िलाफ़, कार्यवाही के कारण अन्य देशों का कूटनैतिक साथ हासिल नहीं है और कुछ देशों ने केवल इस मामले पर चिंता जताने को ही पर्याप्त समझा है।
क्षेत्र के जल क्षेत्र में सुरक्षा स्थापित करने में अक्षमता
ब्रिटेन का विचार था कि वह जिब्रालटर स्ट्रेट में ईरान के तेल टैंकर को रोक कर तेहरान को अपनी शक्ति दिखाएगा लेकिन ईरान की प्रतिक्रिया ने यह दिखा दिया कि लंदन अपने समुद्री जहाज़ों की रक्षा की भी ताक़त नहीं रखता। इमारात की फ़ुजैरा बंदरगाह में तेल टैंकरों परहोने वाले हमलों और ओमान सागर में दो तेल टैंकरों के साथ घटने वाली घटना को अगर इससे जोड़ कर देखा जाए तो ब्रिटेन की स्थिति बहुत दयनीय नज़र आएगी।
कहा जाता है कि फ़ुजैरा बंदरगाह की सुरक्षा अमरीका व ब्रिटेन के हाथ में है। दूसरी ओर ईरान ने अमरीका का ड्रोन मार कर और ब्रिटेन के तेल टैंकर को रोक कर अपनी ताक़त दिखा दी है।
साथ देने में अमरीका की कठिनाई
ब्रिटेन पारंपरिक रूप से इस बात की कोशिश कर रहा है कि इस प्रकार के मामलों में उसे अपने पुराने घटक यानी अमरीका का साथ मिले। ट्रम्प के सत्ता में होने के कारण कई मामलों में दोनों देशों के बीच मतभेद हैं। इस समय वाॅशिंग्टन को अपने साथ खड़ा करना लंदन के लिए बहुत कठिन प्रतीत होता है। ट्रम्प पहले ही कई बार कह चुके हैं कि उन्हें फ़ार्स की खाड़ी में समुद्री जहाज़ों की आवाजाही की सुरक्षा में भूमिका निभाने में रुचि नहीं है। ब्रिटेन के तेल टैंकर को रोके जाने के बाद भी उन्होंने कहा कि वहां अमरीका के अधिक तेल टैंकर नहीं हैं।
अमरीका व ब्रिटेन के मतभेद
इन सारी समस्याओं के साथ ही, जिन्होंने प्रतिक्रिया के लिए ब्रिटेन के हाथ बांध रखे हैं, ब्रिटन और अमरीका के मतभेद, हालात को अधिक बिगाड़ रहे हैं। इन दोनों देशों के मतभेद के दो उदाहरण परमाणु समझौते से अमरीका के एकपक्षीय रूप से निकलने और वाॅशिंग्टन में ब्रिटेन के राजदूत के लीक हुए ईमेलों पर मचने वाले हंगामे में देखे जा सकते हैं।
इन सब बातों के साथ ही, यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के निकलने के मामले ने भी, हालांकि इसका तेल टैंकरों की समस्या से कोई लेना-देना नहीं है, ब्रिटेन के यूरोपीय घटकों को थोड़ा अधिक सतर्क कर दिया है।