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Saturday, April 27, 2024

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आपकी अभिव्यक्ति – बोफोर्स नहीं बल्कि राफेल पर काँग्रेस के नेताओं और राहुल गाँधी के पूरे खानदान को चैलेंज करना चाहिये ? – रवि जी. निगम

सौ. फाईल चित्र

क्या हम सत्ता लोलुप्ता में इतना नीचे गिर गये हैं कि हमें सत्ता के सिवाय अब कुछ भी नहीं सूझता , हम ये तक भूलते जा रहे हैं कि हम जो पृष्ठभूमि तैयार कर रहे हैं जो आने वाले वक्त में दोहराई भी जा सकती है , तब जब यही मानसिकता का परिचय दूसरों के द्वारा अपनाई जायेगी तो क्या उस वक्त आज इसको अपनाने वाले बर्दास्त करने को तैयार रहेगें ? क्या उस वक्त इसे नज़ीर के तौर पे पेश नहीं किया जायेगा ?

क्या हम अपने समाज को ऐसे ही संस्कारों से पोषित करना चाहते हैं , जो हमारे हजारों वर्षों की संस्कृति को मात्र सत्ता की खातिर तहस -नहस करने पर आमादा हो ? क्या हमारे ग्रथं हमें यही ज्ञान देते हैं ? क्या रामायण में मर्यादा पुरुषोतम्म राम ने इसी नीति का पालन करने का हमें ज्ञान दिया है ? क्या राम ने भी लंका पर विजय प्राप्ति के लिये ऐसे घृणित भाषा से रावण का अपमान कर विजय प्राप्त की थी ?

हम किस मुँह से श्री राम का नाम लेते हैं और खुद को उनका अनुयाई बताते हैं ? क्या हमें ये भी ज्ञात नहीं कि राम ने लंका पे चढ़ाई करने के लिये जब सेतु निर्माण करने हेतु पूजा की थी तो श्रेष्ठ ब्राम्हण के रूप में उसकी पूजा सम्पन्न करने हेतु रावण को ही बुलाया था । अर्थात हम अपने दुश्मन को दुश्मन उसकी विचारधारा और कर्मों के लिये ही मानते है , और जिसे हमें मानना भी चहिये , लेकिन हमें स्मरण रहे कि राम ने जब रावण का वघ कर दिया तो भगवान श्री राम ने भी लक्षण को रावण से ज्ञान और अशिर्वाद लेने को कहा था। क्योंकि उनका बैर उसकी विचारधारा और कर्मों से था और जो उसके वघ के पश्चात उसका अंत हो चुका था।

अर्थात हमें ये नही भूलना चाहिये कि राजनीति की भी एक मर्यादा होती है , जो विचारों की भिन्नता पर आधारित होती है न कि व्यक्तिगत होती है, जिसके कारण हमें सत्ता हासिल होती है जो हमें कुछ वर्षों के लिये ही प्राप्त होती है न कि अनंतकाल के लिये। इस राजनीति को हम किस दिशा की ओर ले जाना चाहते हैं , आखिर हमारी क्या मंशा है ये स्पष्ट होनी चाहिये की नहीं ? हम अहंकारी रावण की कथा से भी अवगत हैं और जर्मनी के हिटलर के इतिहास से भी वाकिफ़ हैं , दोनों का अंत कैसा था वो भी सब जानते हैं , लेकिन इसकी मियाद सीमित होती है ।

तो क्या देश के लिये शहीद और बलिदान हुये पूर्व प्रधानमंत्री श्री राजीव गाँधी को उस बोफोर्स मामले के लिये मरणोंउपरान्त वर्तमान प्रधानमंत्री द्वारा अपमान करना उचित है ? जिस पर अटल जी के समय में ही कोर्ट ने बरी कर दिया हो, जिस पर एक भी सबूत प्रस्तुत नही किये जा सके हों ? यदि इस पर कोई तथ्य या सबूत वर्तमान सरकार के पास थे तो उसे कोर्ट में पांच वर्षों के दौरान चैलेंज किया जाना चाहिये था कि नहीं ? इसे पांच चरण के चुनाव समाप्त हो जाने के पक्षात उठाना कहाँ की बुद्धमानी है ?

हाँ यदि राफेल मामले में विपक्षियों द्वारा घिरे प्रधानमंत्री मोदी उससे यदि क्षुब्ध होकर ऐसी प्रतिक्रिया दे रहे हैं तो जायज है और उन्हे ऐसी प्रतिक्रिया देना भी चहिये , लेकिन उसका समय और स्थान सायद अनुकूल नहीं चुना गया , ये मुद्दा उसी समय उपर्युक्त स्थान जेपीसी में भेज कर खत्म किया जा सकता था जब विपक्षी इसकी माँग कर रहे थे या फिर अब जब सुप्रीम कोर्ट पहुँच गया है तो अब उस अर्जी को खारिज न करने की अपील की जगह स्वतंत्र रूप से जांच करने का आग्रह करके समाप्त किया जा सकता था , लेकिन ऐसा क्यों नहीं किया गया ये तो संबन्धित लोग ही भलीभांति समझा सकते हैं ?

और अब जब दो चरणों के चुनाव शेष बचे हैं तो प्रधानमंत्री महोदय को तो बोफोर्स नहीं बल्कि राफेल पर काँग्रेस के नेताओं और राहुल गाँधी के पूरे खानदान को चुनाव लड़ने के लिये चैलेंज करना चाहिये था की नही ? यही नहीं गुजरात के दंगे पर भी काँग्रेस को घेर सकते हैं कि नहीं ? तो उस पर भी अवश्य घेरा जाना चहिये नहीं तो वहाँ की जनता के साथ नाइन्साफी होगी कि नहीं ? इतना ही नहीं राम मंदिर पर भी घेरना चहिये जिसमें अनगिनत लोग मरे और मंदिर पूर्ण बहुमत होने के बावजूद आज तक नहीं बना , राहुल और उसके खानदान को तो नोटबंन्दी पर भी घेरना चहिये , क्योंकि जिसमें कितनों के घर उजड़ गये , कितने लोग बर्वाद हो गये , लाखों युवा बेरोजगार हो गये । चैलेंज तो जीएसटी पर भी करना चहिये जिसने छोटे व मंझोले व्यवसायियों की कमर तोड़ दी । क्या ये मुद्दे कम थे जो मोदी जी को पूर्व प्रधानमंत्री को इस चुनाव में घसीटना पड़ा ?

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