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Wednesday, May 8, 2024

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ईरान के राष्ट्रपति से क्यों हाथ मिलाना चाहते हैं ट्रम्प ? जॉन बोल्टन को हटाने के पीछे क्या है कारण ?

रिपोर्ट – सज्जाद अली नयाने

सैन फ्रांसिस्को विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ने कहा है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प को आगामी 2020 के राष्ट्रपति चुनाव में इस्लामी गणतंत्र ईरान के राष्ट्रपति के साथ फ़ोटो खिंचवाने की ज़रूरत है और वह इसके लिए बहुत प्रयास कर रहे हैं।

विदेश – सैन फ्रांसिस्को विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रॉबर्ट स्मिथ का कहना है कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन हमेशा से इस बात के प्रयास में थे कि अमेरिका, ईरान और तालेबान के ख़िलाफ़ सैन्य कार्यवाही करे, लेकिन अब जब वह खुद ट्रम्प द्वारा अपमानजनक तरीक़े से हटा दिए गए हैं तो सैन्य टकराव की बात भी लगभग समाप्त हो गई है।

रॉबर्ट स्मिथ के मुताबिक़, अमेरिका में 2020 के राष्ट्रपति चुनाव की तैयारी एक बार फिर शुरू हो गई है और ट्रम्प किसी भी स्थिति में व्हाइट हाउस से जाना नहीं चाहते हैं। प्रोफेसर स्मिथ के अनुसार ट्रम्प द्वारा बोल्टन को हटाया जाना उसी तैयारी का एक भाग है, क्योंकि ट्रम्प अपने देश की जनता को यह दिखाना चाहते हैं कि वह युद्धोन्मादी नीतियो को पसंद नहीं करते हैं बल्कि वह कूटनयिक तरीक़े को अधिक पसंद करते हैं और यही कारण है कि ट्रम्प 2020 के चुनाव से पहले-पहले ईरान के राष्ट्रपति के साथ एक फ़ोटो खिंचवाना चाहते हैं।

बहुत से राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन को हटाने के पीछे डोनल्ड ट्रम्प के कई उद्देश्य हो सकते हैं। बोल्टन के जाने से अमेरिका की विदेश नीति में भी काफ़ी बदलाव देखने को मिल सकते हैं। इस संबंध में अमेरिका के प्रसिद्ध समाचार पत्र वॉशिंग्टन पोस्ट ने लिखा है कि अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के पद पर बोल्टन के रहते तेहरान और वॉशिंग्टन के बीच व्यावहारिक रूप से वार्ता हो इसकी संभवना कभी देखने को नहीं मिलती, इसलिए उनके हटाए जाने के बाद ईरान के मुक़ाबले में व्हाइट हाउस की बुनियादी विदेश नीति में बदलाव देखने को मिल सकता है।

वॉशिंग्टन पोस्ट के अनुसार संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा के अधिवेशन से पहले बोल्टन को हटाया जाना रूहानी से ट्रम्प की मुलाक़ात के लिए एक संकेत हो सकता है और अमेरिका और ईरान वार्ता के लिए भी एक सकारात्मक संदेश।

जॉन बोल्टन

अलजज़ीरा चैनल इस संबंध में कहता है कि, ऐसा लगता है कि डोनल्ड ट्रम्प और जॉन बोल्टन के बीच गहरे मतभेद और तनाव पैदा हो गए थे। आरंभ से ही बोल्टन, ट्रम्प से असहमत थे और ट्रम्प के लिए बोल्टन अनुपयुक्त। बोल्टन कट्टरपंथी विचारधारा रखते थे और हमेशा युद्धोन्मादी नीति को आगे बढ़ाने का प्रयास किया करते थे। जॉन बोल्टन ने ईरान और उत्तरी कोरिया में शासन परिवर्तन की बात की थी और सीरिया से अमेरिकी सेना की वापसी का भी विरोध किया था जबकि ट्रम्प सीरिया से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के समर्थन में थे।

द डिफेन्स वॉन विश्लेषणात्मक साइट ने “थॉमस व्हाइट” द्वारा लिखा गया एक लेख भी प्रकाशित किया है जिसमें उन्होंने बोल्टन के अचानक निकाले जाने पर कहा कि उनका निकाला जाना कोई अचंभे की बात नहीं थी। थॉमस व्हाइट ने लिखा है कि बोल्टन के जाने के बाद अमेरिका की विदेश नीति में एक अच्छा और सकारात्मक बदलाव देखने को मिलेगा। उन्होंने लिखा है कि ट्रम्प चाहते हैं कि अमेरिकी विदेश नीति का एक नया अध्याय लिखें।

थॉमस के अनुसार ट्रम्प चाहते हैं कि वह सैन्य कार्यवाही और अधिकतर दबाव वाली नीति को कम करके वार्ता की नीति को अपनाएं और रूस, ईरान, उत्तरी कोरिया और तालेबान से बातचीत के माध्यम से आपसी समस्याओं का समाधान निकालें और साथ ही अपने लिए नोबेल शांति पुरस्कार का भी रास्ता खोल सकें।

अब यहां यह प्रश्न उठता है कि जॉन बोल्टन को हटाए जाने के क्या कारण हैं? क्या उनका हटाया जाना अमेरिका की विदेश नीति में बदलाव के संकेत हैं? इन सवालों के जवाब सैन फ्रांसिस्को विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रॉबर्ट स्मिथ कहते हैं कि जॉन बोल्टन को व्यक्तिगत और राजनीतिक कारणों से निकाला गया है।

स्मिथ कहते हैं कि बोल्टन का व्यक्तित्व सम्मानजनक नहीं है। उनका रवैया अपने सहकर्मियों के साथ भी अच्छा नहीं था और अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ऐसे लोगों को चाहते हैं जिनका व्यक्तित्व सम्मानजनक हो। इसी तरह बोल्टन ईरान और तालेबान से टकराव चाहते थे लेकिन ट्रम्प 2020 के चुनाव को मद्देनज़र कूटनीतिक तरीक़ों को प्राथमिकता दे रहे हैं। स्मिथ के अनुसार यही कारण है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प इस प्रयास में हैं कि वह चुनाव से पहेल ईरान के राष्ट्रपति के साथ एक फ़ोटो खिंचवा लें।

सैन फ्रांसिस्को विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रॉबर्ट स्मिथ का कहना है कि ट्रम्प का यह सारा खेल केवल चुनाव के लिए है क्योंकि अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो भी बोल्टन से कम नहीं हैं। स्मिथ का कहना है कि बोल्टन और पोम्पियो की सोच एक जैसी ही है लेकिन पोम्पियो में कट्टरता थोड़ी कम है। इन सबके बावजूद पोम्पियो कभी भी ट्रम्प को ईरान पर आर्थिक दबाव कम करने का सुझाव नहीं देंगे।

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