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Saturday, May 4, 2024

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उन्नाव कांडः ईएमओ ने पीड़िता के पिता के इलाज में बरती थी लापरवाही

न्यूज डेस्क(उत्तर प्रदेश): विधायक कुलदीप सेंगर प्रकरण में पीड़िता के पिता के इलाज में ईएमओ (आकस्मिक चिकित्साधिकारी) ने लापरवाही बरती थी। हालत गंभीर होने पर भी उसे हायर सेंटर के लिए रेफर नहीं किया गया था। यही नहीं सर्जन की जरूरत पर भी उसे नहीं बुलाया गया था। निदेशक प्रशासन ने अपनी जांच में ईएमओ को दोषी पाते हुए स्वास्थ्य विभाग को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है।

विधायक प्रकरण में दुष्कर्म पीड़िता के पिता को आर्म्स एक्ट के एक मुकदमे में जेल भेजा गया था। 8 अप्रैल की रात जिला कारागार में उसकी हालत बिगड़ गई थी। रात 9:05 बजे जिला कारागार से उसे जिला अस्पताल लाया गया था। इमरजेंसी वार्ड में आकस्मिक चिकित्साधिकारी डॉ. गौरव अग्रवाल ने पीड़िता के पिता का इलाज किया था। भर्ती करने के छह घंटे बाद पिता की मौत हो गई थी।

इस मामले में मरीज की हालत गंभीर होने के बाद भी उसे जिला अस्पताल से रेफर न करने व ऑन काल पर तैनात विशेषज्ञ डॉक्टरों को न बुलाने के आरोप डॉ. गौरव पर लगे थे। मामले के तूल पकड़ने पर जिला प्रशासन व शासन ने डॉ. गौरव के खिलाफ जांच बैठा दी थी। निदेशक प्रशासन डॉ. पूजा पांडेय की ओर से की गई जांच में डॉ. गौरव पर लगाए गए आरोप सही पाए गए। बुधवार को निदेशक प्रशासन ने अपनी जांच रिपोर्ट स्वास्थ्य विभाग को सौंप दी। उन्होंने डॉ. गौरव को इलाज में उदासीनता का आरोपी पाया है।
सर्जन डॉ. जीपी सचान को क्लीन चिट

पीड़िता के पिता की मौत के मामले में सर्जन डॉ. जीपी सचान को भी जांच के दायरे में लाया गया था। डॉ. जीपी सचान पर पिता की हालत गंभीर होने के बाद भी इलाज में लापरवाही बरतने का आरोप था। हालांकि जांच में पाया गया कि जब पिता को जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया था, उनकी ऑन काल ड्यूटी नहीं थी। मौत से एक दिन पहले डॉ. जीपी सचान जिला जेल में मरीजों की जांच करने गए थे। वहां भी पीड़िता के पिता को जांच के लिए नहीं लाया गया था। ऐसे में डॉ. जीपी सचान को निदेशक प्रशासन ने क्लीन चिट दे दी है।
जिला जेल के डॉक्टरों की लापरवाही आई सामने

पीड़िता के पिता की मौत के मामले में जिला जेल के चिकित्सकों को भी दोषी ठहराया गया है। जांच रिपोर्ट में इस बात की पुष्टि की गई है कि जब पीड़िता के पिता को जिला अस्पताल लाया गया था, तब पूर्व में किए गए इलाज से संबंधित प्रपत्र नहीं भेजे गए थे, जिससे जिला अस्पताल के डॉक्टरों को मरीज की वास्तविक स्थिति का पता नहीं चल सका था। भविष्य में ऐसे मामलों की पुनरावृत्ति न हो सके इसके लिए चिकित्सकों को मरीज को रेफर करते वक्त संबंधित प्रपत्र हर हाल में भेजने के निर्देश दिए हैं।

बीएचटी में की गई थी काटछांट
स्वास्थ्य कर्मियों पर इलाज में लापरवाही बरतने के आरोप लगने पर डॉक्टर व इमरजेंसी वार्ड में तैनात स्टाफ के बयान लिए गए थे। साथ ही मरीज की बीएचटी की भी जांच की गई। जांच में बीएचटी में काटछांट की पुष्टि हुई।

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