लखनऊ। खेत में खड़ी फसल के प्राकृतिक आपदा से नुकसान होने पर किसानों को राहत देने के मकसद से फसल बीमा योजना लागू की गई लेकिन आंकड़े बताते हैं कि यह योजना किसानों के लिए कम बीमा कंपनियों के लिए अधिक फायदेमंद साबित हो रही हैं। उत्तर प्रदेश में बीमा कंपनियों पर किसान लगातार आरोप लगाते रहे हैं कि उनकी फसलों की बर्बादी का ठीक तरीके से मूल्यांकन नहीं किया जाता। दूसरी ओर कृषि विभाग यह कहकर बीमा कंपनियों का बचाव करता है कि फसलों की बर्बादी का आंकलन कराकर सभी किसानों को भुगतान किया जाता है।
करोड़ का प्रीमियम वसूलकर किया 89 करोड़ का भुगतान
बात रबी फसल 2016-17 की करें तो आंकड़ें चौकाने वाले हैं। कृषि विभाग के आंकड़े बताते हैं कि प्रदेश में 29 लाख 11 हज़ार किसानों से प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के नाम पर प्रीमियम के रूप में 412 करोड़ रूपये की धनराशि वसूली गई। इन किसानों में से 1 लाख 72 हज़ार किसानों की फसलों के खराब होने की बात बीमा कंपनियों ने स्वीकार की और इन्हें भुगतान के रूप में 89 करोड़ रूपये भुगतान दिए गए। इन्हीं आंकड़ों के सहारे किसान दावा करते हैं कि बीमा कंपनियां और कृषि विभाग किसानों की फसलों के नुकसान के आंकलन में भेदभाव करते हैं जिसके कारण किसान लाभ से वंचित रह जाता है।
नुकसान के आंकलन के तरीके पर सवाल
बुंदेलखंड किसान पंचायत के अध्यक्ष गौरी शंकर विदुआ कहते हैं कि बीमा कंपनियों ने किसानों के साथ पहली बार ऐसा नहीं किया है। साल 2014-15 में झांसी जनपद में बीमा कम्पनी ने किसानों से 28 करोड़ रूपये का प्रीमियम वसूला और भुगतान 11 करोड़ 71 लाख रूपये का दिया। विदुआ आरोप लगाते हैं कि बुंदेलखंड फसल की बर्बादी सबसे अधिक झेलता है। इसके बावजूद बीमा कंपनियों का यह रुख साबित करता है कि किसानों की फसलों के नुकसान में भेदभाव किया जाता है। किसान नेता फसल के नुकसान के आंकलन के तरीके को ही किसान विरोधी करार देते हैं। दूसरी ओर कृषि विभाग सभी आरोपों को सिरे से नकारता है। कृषि विभाग में उप निदेशक फसल बीमा उमा शंकर कहते हैं कि फसल की कटाई के समय क्रॉप कटिंग के माध्यम से फसल के नुकसान का आंकलन होता है। नुकसान की रिपोर्ट के आधार पर किसानों को भुगतान किया जाता है।