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Monday, May 6, 2024

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कोरोना संक्रमण से बचाव कर सकता है कौन सा काढ़ा ? जो मघुमेय के रोगी भी पी सकते हैं उसमें भी लाभकारी !!

इस रामबांण दवा का नाम है कडुवा चिरायता

यदि हम कडुवा चिरायता का सेवन कुछ इस प्रकार से करें – जैसे – दो से चार ग्राम कडुवा चिरायता , लगभग दस ग्राम अदरख , दो लौंग , चार काली मिर्च , पांच / सात तुलसी की पत्ती , दो ग्राम हल्दी आदि को १०० ग्राम पानी में पकायें जब पानी लगभग एक चौथाई (1/4) रह जाये तो इसे छान लें और इसके बाद गरम – गरम पियें ये देशी नुस्खा बुजुगों / वैद्य द्वारा उपचार में लायी जाती थीं। इसके सेवन करने से कोरोना संक्रमण से बचा जा सकता है ऐसा मानना है इसके सेवन से फिलहाल कोई अन्य शारीरिक हानि की संभावना कतई नहीं है। नीचे इसके विषय में अन्य जानकारियां उपलब्ध हैं और ये जड़ी सहजता से हर जगह उपलब्ध है यही नहीं इसे ‘एमजॉन’ से भी मंगावाया जा सकता है।

नोट – ये देसी नुस्खा है ये कतई किसी प्रकार का ये दावा नहीं करती की ये कोरोना के इलाज में कारगर साबित हुई है। न ही इसकी पुष्टी ही करती है। ये आपके / हमारे विश्वास पर आधारित है। (इसे गूगल पर भी सर्च कर सकते हैंं) ये जानकारी बिना किसी हित, लाभ वा निस्वर्थ भाव से उपलब्ध करायी गयी है, आप इसका सेवन किसी जानकार की सलाह के बाद ही करें। इससे किसी का कोई लेना-देना नहीं है ये आपके विवेक पर निर्भर है इस्तेमाल या न करें।

पहले कोरोना को समझें और जानें –

वैज्ञानिकों ने पाया है कि कोरोना वायरस सबसे पहले गले में जाता है और वहां वायरस को बढ़ाता है। वायरस की संख्या बढ़ने से गले और छाती में मोटा कफ जमने लगता है जिसकी वजह से सांस के जितने भी रास्ते हैं वो बंद होने लगते हैं जिस वजह से ऑक्सीजन अंदर नहीं पहुंच पाती है। यह मोटा कफ तीन दिनों तक गले में रहता है और इसके फेफड़ों में पहुंचने से परेशानियां शुरू होती हैं। बाद में शरीर के अंगों खासकर फेफड़ों पर अटैक करता है। यह किडनी, लीवर और फेफड़ों को डैमेज कर सकता है। जैसे ही वायरस के यह कण बढ़ने लगते हैं, तो वे बाहर निकलते हैं और वो गले के आसपास की कोशिकाओं को संक्रमित करते हैं।

ऐसा होने से अक्सर गले में खराश और गले में सूखी खांसी शुरू होने लगती है। यह कण गले में ब्रोन्कियल ट्यूब यानी सांस के नालियों को धीमा करने लगते हैं। जब वायरस फेफड़ों में पहुंचता है, तो उनके श्लेष्म झिल्ली में सूजन हो जाती है। इससे एल्वियोली या फेफड़ों की थैली डैमेज हो सकती है। इतना ही नहीं इससे फेफड़ों को पूरे शरीर में घूमने वाले रक्त में ऑक्सीजन की आपूर्ति करने और रक्त से कार्बन डाइऑक्साइड को हटाने में बाधा पैदा होती है। अगर यहां सूजन आती है, तो यह ऑक्सीजन को श्लेष्म झिल्ली में तैरने के लिए और अधिक कठिन बना देता है। फेफड़ों की सूजन और ऑक्सीजन का प्रवाह बिगड़ने से फेफड़ों में द्रव, मवाद और मृत कोशिकाएं भर सकते हैं। इससे फेफड़ों की बीमारी निमोनिया हो जाती है। कुछ लोगों को सांस लेने में इतनी परेशानी होती है कि उन्हें वेंटिलेटर पर रखने की जरूरत होती है। सबसे खराब मामलों में, एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम के रूप में जाना जाता है। इसमें फेफड़ों में इतने अधिक तरल पदार्थ से भर जाते हैं कि सांस ही नहीं आती है और रोगी की मृत्यु हो जाती है।

अगर इस कफ को गले में ही बेअसर कर दिया जाए, तो इसे फेफड़ों में जाने से रोका जा सकता है। इसके लिए आपको गर्म पेय पदार्थों का सेवन बढ़ा देना चाहिए। इसके लिए आप गर्म चाय, कॉफ़ी, गर्म पानी, हल्दी के साथ गर्म पानी आदि का भरपूर सेवन कर सकते हैं। इससे गले में जमा कफ पिघलकर पेट में चला जाएगा। पेट में गैस्ट्रिक जूस होता है, जो उस कफ को बेअसर कर सकते हैं। गले में जमा कफ को खत्म करने के लिए आप रोजाना नमक के पानी या हल्दी के पानी के गरारे कर सकते हैं। इन चीजों में एंटीसेप्टिक गुण होते हैं, जो कफ को खत्म करने में मदद कर सकते हैं। इसके अलावा आप बीटाडीन के भी गरारे कर सकते हैं।

कडुवा चिरायता को इन नामों से भी जाना जाता है –

Kadu Chiraita/Swertia Chirata/Kalmegh/Bitterstick/Chiretta/Kiraita/Nilavembu/Charatin/Charaita/Kariyatum/Nilabevu/Kiratatikta/Nilavippa/Nilavemu / कडू चिरायत –

कडुवा चिरायता का कड़वा स्वाद रक्त शर्करा के विकारो में बहुत लाभकारी है ! मधुमेह में चिरायता जड़ी बूटी का व्यापक रूप से रक्त शर्करा को कम करने के लिए प्रयोग किया जाता है!चिरायता अग्नाशयी कोशिकाओं में इन्सुलिन उत्पादन को उत्तेजित करता है जिस से रक्त शर्करा को कम कर दिया जाता है! यह बुखार, जलन और कृमिनाशक होता है। इसका उपयोग मलेरिया, दमे की बीमारी, बुखार, खासी, कफ, टायफाइड, संक्रमणरोधक, कमजोरी, जीवाणु कृमिनाशक, कालाजार (जिसमें प्लीहा और यकृत दोनों बढ़ जाते हैं) आदि रोगों को नष्ट करने के लिए किया जाता है। यह खून को साफ करता है तथा कितना भी पुराना बुखार क्यों न हो चिरायता उस बुखार को नष्ट कर देता है।

चिरायते का सर्वाग कड़वा होता है; इसी से यह ज्वर में बहुत दिया जाता है । वैद्यक में यह दस्तावर, शीतल तथा ज्वर, कफ, पित्त, सूजन, सन्निपात, खुजली, कोढ़ आदि को दूर करनेवाला माना जाता है । इसकी गणना रक्तशोधक औषधियों में है । डाक्टरी में भी इसका व्यवहार होता है । चिरायते की बहुत सी जातियाँ होती है । एक प्रकार का छोटा चिरायता दक्षिण में बहुत है । एक चिरायता कल्पनाथ के नाम से प्रसिद्ध है जो सबसे अधिक कड़ुआ होता है ।

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