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Monday, May 6, 2024

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जम्मू-कश्मीर में नये राजनीतिक दल “अपनी पार्टी” का क्या है उद्देश्य और किसके इशारे पर बनी है पार्टी ?

इधर काफ़ी दिनों से लगातार यह ख़बरें आ रही थीं कि भारत प्रशासित कश्मीर में एक नई पार्टी का गठन होने जा रहा है, नई पार्टी इस राज्य के छीने गए विशेष दर्जे को वापस दिलाएगी और कश्मीर में जारी राजनीतिक संकट को भी दूर करेगी। ख़ैर वह दिन भी आ गया कि कश्मीर में “अपनी पार्टी” के नाम से एक नए दल का एलान हो गया।

जम्मू-कश्मीर – जम्मू-कश्मीर के पूर्व वित्त मंत्री अल्ताफ़ बुख़ारी ने क़रीब 30 नेताओं के साथ नई पार्टी के गठन का एलान किया है। महबूबा मुफ़्ती की पार्टी पीडीपी में रह चुके और इस राज्य का वित्त मंत्री पद संभाल चुके अल्ताफ़ बुख़ारी ने नया राजनीति संगठन बनाने का एलान किया है। इस संगठन का नाम “जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी”(जेकेएपी) रखा गया है। इस पार्टी में राज्य और राष्ट्रीय स्तर के 30 अन्य नेता भी शामिल हुए हैं। बुख़ारी “जेकेएपी”  के अध्यक्ष चुने गए हैं उनका कहना है कि पार्टी का एजेंडा जम्मू-कश्मीर के लिए राज्य का दर्जा बहाल करवाना है। पार्टी के एलान के बाद बुख़ारी ने पत्रकारों से कहा कि,  हम पर बहुत सारी ज़िम्मेदारियां हैं क्योंकि यहां उम्मीदें और चुनौतियां बहुत अधिक हैं। उन्होंने कहा कि, मैं जम्मू और कश्मीर के लोगों को विश्वास दिलाता हूं कि मेरी इच्छाशक्ति मज़बूत है। हालांकि बुख़ारी ने कहा कि राज्य में जल्द चुनाव को लेकर उन्हें कम उम्मीद नज़र आती है। इस नई पार्टी में नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी, कांग्रेस, बीजेपी समेत अन्य दलों के नेता भी शामिल हुए हैं।

वैसे जहां जम्मू-कश्मीर के पूर्व तीन मुख्यमंत्रियों सहित इस राज्य के कई प्रमुख नेता फिलहाल 5 अगस्त 2019 से हिरासत में हैं वहीं ऐसी स्थिति में इस राज्य में नई पार्टी के गठन होने पर कई सवाल खड़े हो रहे हैं। कश्मीर टाइम्स की एडिटर अनुराधा भसीन कहती हैं, “कश्मीर में लोकप्रिय नेतृत्व को ख़त्म करके और कठपुतली नेताओं का आगे करना का इतिहास पुराना है और यह उसी श्रृंखला की एक कड़ी है। जहां इस राज्य के विशेष दर्जा देने वाली धारा 370 को समाप्त करने के बाद मोदी सरकार ने कश्मीर के प्रमुख नेताओं को महीनों से अपनी हिरासत में रख रखा हो वहीं एक नई पार्टी के गठन की इजाज़त देना यह एक तरह का दिल्ली सरकार का दिखावटी हथकंडा है। जिससे वह दुनिया को यह दिखाने का प्रयास कर रही है कि कश्मीर में सबकुछ ठीक है। क्योंकि कश्मीर में राजनीति गतिविधियां बंद होने से मोदी सरकार की चौतरफ़ा तौर पर काफ़ी आलोचना हो रही है और कश्मीर में नई पार्टी का गठन कराकर वह दुनिया को दिखाने के लिए कॉस्मेटिक सर्जरी कर रही है।

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चित्र – पूर्व सी. एम. जे. एण्ड के. – फारुख अब्दुल्ला , महबूबा मुफ्ती , उमर अब्दुल्ला

अल्ताफ़ बुख़ारी से जब पत्रकारों ने पार्टी के गठन के वक़्त पर सवाल किया और पूछा कि कश्मीर के बड़े नेता हिरासत में हैं तो उन्होंने इस सवाल को टालते हुए कहा, “मैं इस तरह की बहस में नहीं पड़ना चाहता हूं।” जबकि जेकेएपी के एक अन्य नेता ग़ुलाम हसन मीर ने कहा है, “हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने की तैयारी कर रहे हैं।” इस पर एक टीकाकार का कहना है कि, “ऐसे समय में जब कुछ भी कहने के लिए मामला दर्ज किया जाता है, गिरफ़्तारी की जाती है और तो ऐसे में सरकार की सुविधा के बिना कोई भी दल अस्तित्व में नहीं आ सकता है।” कश्मीर में वामपंथी नेता यूसुफ़ तारिगामी भी टीकाकार के रुख का समर्थन करते हुए कहते हैं कि यह स्पष्ट है कि भारत सरकार के इशारे पर नई पार्टी की स्थापना की गई है हालांकि इससे कुछ हासिल नहीं होने वाला है। वह कहते हैं, “इसमें केंद्र का समर्थन शामिल है, लेकिन जब सभी राजनीतिक नेता हिरासत में हैं, तो यह पार्टी या केंद्र सरकार क्या करना चाहती है? क्या इससे राजनीतिक प्रक्रिया शुरू करने में मदद मिलेगी? क्या यह पिछले कई महीनों से कश्मीर में राजनीतिक खालीपन भरने में मदद करेगा? मुझे लगता है कि यह उपाय बेकार हैं।”

इस बीच ऐसी ख़बरें भी आ रही हैं कि भारत सरकार ने कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फ़ारूक़ अब्दुल्लाह की रिहाई का आदेश जारी कर दिया है। इस ख़बर के बाद कश्मीर में नेश्नल कांफ्रेंस के कार्यकर्ताओं में ख़ुशी की लहर दौड़ गई है। वहीं हाल ही में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और सांसद कपिल सिब्बल ने भी संसद में बहस के दौरान भारतीय गृह मंत्री से पूछा था कि जब एक ओर आपकी सरकार कश्मीर के प्रमुख नेताओं, कि जिसमें तीन-तीन इस राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री भी हैं, उनको केवल इसलिए महीनों से हिरासत में रखा जाता है क्योंकि उनके बाहर रहने से और उनके बयानों से कश्मीर के हालात ख़राब होने की आशंका है, तो फिर मोदी सरकार ऐसे लोगों के ख़िलाफ़ क्यों कार्यवाही नहीं करती जो उनकी पार्टी के हैं और जिनकी वजह से दिल्ली में हुई संप्रदायिक हिंसा में दर्जनों लोगों की हत्या हो गई और सैकड़ों लोग घायल हो गए हैं। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि भारत में जो राजनीतिक स्थिति है वह अब किसी से छिपी नहीं है और यह देश जो दुनाया के महान लोकतांत्रिक देश के तौर पर जाना जाता है वह मोदी सरकार के आने के बाद से दुनिया के सबसे बड़े राज शाही शासन की ओर जा रहा है। 

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