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Friday, May 17, 2024

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प्रधानमंत्री कृषि व सिचाई योजना में बजट की कटौती,किसानों को होना पड़ेगा निराश

कन्नौज (यूपी) प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के बजट में कटौती हो गई है। जिला उद्यान महकमे ने योजना के तहत 5.11 करोड़ रुपये मांग थे। 1.57 करोड़ ही मिले हैं। इससे लाभ का इंतजार करने वाले तमाम किसानों को निराश होना पड़ेगा। यह योजना लघु, सीमांत और बड़े किसानों के लिए है। 
जिला उद्यान अधिकारी मनोज कुमार चतुर्वेदी ने बताया कि इस योजना के तहत किसान पंजीकृत कंपनी या डीलर से ड्रिप (टपक)व स्प्रिंकलर(फव्वारा) सिंचाई के लिए उपकरणों की खरीद कर सकते हैं। इस योजना के तहत लघु व सीमांत किसानों को 90 और बड़े किसानों को 80 प्रतिशत अनुदान मिलेगा। किसानों को उपकरण खरीदने के बाद बिल वाउचर लगाने होंगे। डीएम से गठित कमेटी जांच करेगी। इसके बाद किसानों के खाते में ऑनलाइन धनराशि भेजी जाएगी। किसानों को योजना का लाभ लेने के लिए कृषि विभाग की वेबसाइट पर ऑनलाइन आवेदन करना होगा। कार्यालय आकर भी प्रपत्र जमा कर सकते हैं। किसानों को खतौनी, बैंक खाता और आधार कार्ड की छायाप्रति और फोटो लगानी होगी।

पीएम कृषि सिंचाई योजना में 1.57 करोड़ का बजट मिला है। योजना के तहत क्षेत्रफल के हिसाब से किसानों को लाभ मिलता है। इस बजट से उद्यान विभाग को करीब 500 किसानों को लाभान्वित कर पाने का अनुमान है। अगर उद्यान विभाग को मांगा गया बजट मिल जाता तो करीब 1700 किसान लाभान्वित हो सकते थे। 
1,41,957 हेक्टेयर भूमि सिंचित क्षेत्र में 
जिले में कुल 2,08,973 हेक्टेयर भूमि है। इसमें गंगा नदी, काली नदी, ईशन नदी, पांडु नदी, अरिंद नदी, 45 नहरों समेत रजबहा, सरकारी व निजी ट्यूबवेल से 1,41,957 हेक्टेयर भूमि सिंचित क्षेत्र में है। 13,462 हजार हेक्टेयर असिंचित क्षेत्र के अलावा बची जमीन बंजर व ऊसर क्षेत्र में आती है। 
ड्रिप सिंचाई: किट की कीमत 21000 से 55 हजार है। इस पद्धति से जड़ों तक पानी पहुंचाया जाता है। यह सभी फसलों के लिए लाभदायक है। बागवानी के लिए ज्यादा बेहतर है। 
स्प्रिंकलर सिंचाई: किट की कीमत 53000 से 70 हजार है। पौधों पर बारिश की बूंदों की तरह पानी पड़ता है। यह पद्धति चना, सरसों और दलहनी फसलों के लिए खासी लाभदायक है। 
किसानों को ये मिलेगा फायदा 
-ड्रिप व स्प्रिंकलर पद्धति से सिंचाई करने से पानी की खपत कम होगी। 
-सिंचाई के साथ खाद भी दी जा सकती है। 
-खेत में नाली बनाने की जरूरत नहीं होगी। 
-सभी पौधों में समान रूप से पानी मिलेगा। 
-डीजल व श्रम की बचत होगी। 
-खरपतवार कम होगा। 
-फसल की गुणवत्ता में वृद्धि और अधिक पैदावार होगी

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