जरूर पढें जनता की अभिव्यक्ति – (आपकी अभिव्यक्ति)
चिराग पासवान राष्ट्रपति शासन की मांग राष्ट्रपति से करेंगे ?
पूंछ्ता है भारत – एक सवाल जनता के मन में यही गूंज रहा है कि क्या सरकार ने कोरोना काल में उसे राहत दी या उसके लिये मुसीबत तैयार की ? कोरोना से निपटने की जिम्मेदारी सरकार की थी या जनता की ? सही समय पर सही फैसला लेना सरकार का काम या जनता का ? और यदि समय रहते सही निर्णय लिये गये तो हालात बद से बद्तर क्यों ? ICMR की रिपोर्ट के मुताबिक मई में ही खस्ताहाल हो गये थे हालात और 64 लाख के करीब आ चुके थे मामले तो उसने / सरकार ने जनता से छिपाया क्यों ?
जब प्रवासी मजदूरों को वापस भेजने का सुझाव लॉकडाऊन लगने के 5 दिनों के भीतर 29 मार्च को मिल गया था तो 1 मई तक देर की गयी क्यों ? 16/17 मई को जब लॉकडाऊन के चलते संगठित व असंगठित रोजगार, व्यापार, व्यवसाय व बाजार जारी रखे जा सकते हैं का सुझाव प्रेषित किया गया था तो उस पर विचार नहीं किया गया क्यों ?
अनलॉक कर देश की जनता को मौंत के मुंह में आत्मनिर्भर कर झोका गया क्यों ? क्योंकि बिहार चुनाव की चिंता सता रही थी यूं ? या पडोसी को भिखारी कहने वाले खुद उसी दिशा में बढ रहे थे यूं ? सरकार ने जनता को पांच किलो राशन लेने के लिये लाईन में लगने पर मजबूर किया क्यों ? जब कोरोना से पहले ही आर्थिक हालात खराब थे तो मुम्बई जो देश की आर्थिक राजधानी है उस पर ध्यान नहीं दिया गया क्यों ? जिस तरह देश की राजधानी दिल्ली के बिगडते हुए हालात पर गृहमंत्रालय सक्रीय हुआ था तो मुम्बई व मुम्बई वासियों के मदद के लिये उतनी तत्पर्ता से गृह मंत्रालय ने राहत और सुरक्षा प्रदान करने के लिये अपनी इच्छा शक्ति दिखाई नहीं क्यों ?
वहीं देश वासियों को कोरोनाकाल में लॉकडाऊन लगा कर झूठे अश्वासन या राहत की घोषणा की गयी क्यों ? पहले ये कि हर किसी को घर से बाहर नहीं निकलना है उनकी न तो नौकरी ही खतरे में पडेगी और ना ही उनकी सेलरी ही कटेगी, जब सेलरी को लेकर मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया वहाँ सरकार पलट गयी क्यों ? अब शिक्षा माफियाओं का ऑन-लाईन पढाई शुरू करके वसूली अभियान जारी है क्यों ? जब बच्चे स्कूल गये ही नहीं तो उनसे फीस की उगाही क्यों ? और ऑन-लाईन पढाई शुरू करने से पहले अभिभावकों से सलाह नहीं ली गयी क्यो ? जब जबरन स्कूल ऑन-लाईन पढाई करा रहा है तो ये पता किया है कि क्या छात्र / छात्राओं के अभिभावक उस प्रक्रिया (पाठ्यक्रम) से अवगत हैं कि नहीं या उसके ऑपरेट करने का तरीका उन्हे आता है क्या ?
अभिभावकों को इस पाठ्यक्रम को शुरू करने से पहले सरकार द्वारा उन्हे प्रशिक्षित करने व उसकी सुविधा या असुविधा का आंकलन व व्यवस्था की उपलब्धिता का इंतजामात या उनके (अभिभावकों) शिक्षा स्तर का तथा नौकरी पेशा, काम-धंधे आदि का आंकलन किया गया क्या वो अपने बच्चों को इस पाठ्यक्रम में मदद कर सकेंगे या वक्त दे सकेंगे का आंकलन करना उचित नहीं समझा गया क्यों ? या ऐसी कोई गाईड लाईन जारी नहीं की गयी क्यों ? आज जो आभिभावकों के ऊपर अतिरिक्त भार डाला गया है उसका जिम्मेदार कौन ? इस पाठ्यक्रम के लिये जो कोरोना काल से बदहाल आर्थिक स्थिति से गुजर रहे अभिभावकों के ऊपर अतिरिक्त खर्च का बोझ बढा दिया गया है उसका जिम्मेदार आखिर कौन ?
साथ ही कोरोना काल में आर्थिक तंगी से जूझ रही जनता को लोन मोरेटोरियम की राहत का झुनझुना थमाया गया, जो आज धूल चांटता नजर आ रहा है और बेचारी लाचार जनता ये तक नहीं समझ पा रही है कि वो अब करे तो क्या करे ? क्योंकि जब ये आश्वसन दिया गया था तो जनता को अपनी चुनी हुई सरकार पर थोडा भरोसा बना रहा लेकिन जब एक-एक कर सारे दावे काफूर होने लगे तो अब उसके सब्र का भी बांध भी कमजोर होता दिखाई दे रहा है, कई राज्यों में विरोध के स्वर भी उठने लगे है जिसे दिखाने या सुनाने को कोई भी तैयार नहीं है !
पूंछता है भारत वो जोर-जोर से हाँथ फैला-फैला कर दहाडने वाले उनकी आवाज को सरकार तक क्यों नहीं पहुंचा रहे क्यों कर देश का नंबर वन बेहाल और बदहाल जनता की आवाज जनार्दन के कानों तक पहुंचाते, कब तक इडियट बॉक्स के सामने बिठा कर इडियट बनाते रहेंगे, क्योंकि कोई नही है दूर तक……. लेकिन अफवाहों के लिये…..तक !
सरकार के लिये एक अहम सुझाव –
सरकार को क्या नहीं चाहिये कि वो जनता के दु:ख को समझे और उसे राहत प्रदान करे ? स्कूल फीस पर वो नियम क्योंकर लागू करती जब स्कूल खुल नहीं रहे और टीचर तथा स्टॉफ आ नहीं रहे, ऑन-लाईन पढाई घर से ही जारी है चाहे टीचर हो या स्टूडेण्ट, तो क्या बंद विध्यालय के लाईट, पानी और टैक्स बिल जनता से ही वसूलेंगे ? यदि राहत के तौर पर स्कूलों की मदद सरकार करना चाहती है तो सरकार को चाहिये कि सिर्फ उन सभी मन्यता प्राप्त अनएडेड स्कूलों के टैक्स, लाईट, पानी इत्यादि करों को मॉफ करे, तथा 30% स्टॉफ का या 30% के अनुसार जो उनके टीचर तथा स्टॉफ का भुगतान बनता हो वो उन्हे प्रदान करे, जिससे स्कूल को भी राहत मिल सकेगी और जनता को भी और सरकार को भी, क्योंकि इससे सरकार पर इतना बडा बोझ नहीं आने वाला कि सरकार वहन न कर सके।
इसे जनहित में अपने दस मिलने वालों तक अवश्य पहुंचाये ताकि आपकी आवाज सरकार के कानों तक पहुंच सके, क्योंकि जो आपके बुरे वक्त में न साथ दे उसे साथ देने से क्या फायदा…. मनवाधिकार अभिव्यक्ति, आपकी आभिव्यक्ति
अब सुप्रीम कोर्ट से ही बंधी आश –
लोन मोरेटोरियम की सुविधा लेने वाले ग्राहकों को ब्याज पर ब्याज देने से राहत मिलने के आसार दिख रहे हैं. इस मामले पर कम से कम सुप्रीम कोर्ट में अब तक चल रही सुनवाई देखकर तो ऐसा ही लग रहा है. कोर्ट ने मोरेटोरिमय अवधि के लिए ब्याज पर ब्याज न लेने पर विचार करने के लिये सरकार को भी कहा है. अब इस मामले में सरकार ने ठोस योजना के साथ आने को कहा है. वहीं, लोन मोरेटोरियम का ग्राहकों पर असर जानने के लिए सरकार ने अब इस मामले में समिति का गठन किया है. यह समिति अब ये देखेगी कि 6 महीने का ब्याज माफ करने का असर क्या होगा. वहीं, यह समिति कर्जदारों को ब्याज पर ब्याज से राहत सहित कई अन्य मुद्दों का भी आकलन करेगी।
सुविधा लेने वालों को क्यों दोहरा झटका
लॉकडाउन के चलते आरबीआई ने उन ग्राहकों को लोन मोरेटोरियम की सुविधा दी थी, जो आमदनी घटने की वजह से समय से ईएमआई चुकाने में असमर्थ थे. यह सुविधा मार्च से अगस्त तक यानी 6 महीने तक रही. हालांकि यह सिर्फ फौरी तौर पर ही राहत था, क्योंकि यह सिर्फ ईएमआई को टालने का विकल्प था. लेकिन ग्राहकों को झटके वाली बात यह रही कि जितने दिन के लिए उन्होंने मोरेटोरियम लिया है, उस दौरान ईएमआई के बनने वाले ब्याज पर आगे बैंक ब्याज लेंगे. यानी सीधी सी बात है कि उनकी या तो मंथली ईएमआई बढ़ेगी या ईएमआई भरने की अवधि।
ग्राहकों के पक्ष में क्या है दलील
इस मामले में कोर्ट में याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया है कि अगर सरकार ने लॉकडाउन को देखते हुए यह सुविधा दी है तो फिर ग्राहकों को ब्याज पर ब्याज क्यों देना पउ़ रहा है. जिन ग्रोहकों ने ईएमआई को टाला था, अब उनकी ईएमआई बढ़कर आ रही है. उनसे चक्रवृद्धि ब्याज यानी कंपाउंडिंग इंट्रेस्ट लिया जा रहा है. फिर इस सुविधा का क्या फायदा है. यह योजना तो ग्राहकों पर दोगुनी मार है क्योंकि हमसे चक्रवृद्धि ब्याज वसूल किया जा रहा है. ब्याज पर ब्याज वसूलने के लिए बैंक इसे डिफॉल्ट मान रहे हैं।
बैंकों ने सरकार पर मढ़ा आरोप
बैंकों की संस्था IBA की ओर से पेश वकील हरीश साल्वे ने कहा कि सरकार ने कोई ठोस फैसला नहीं लिया, बल्कि एक और रिजॉल्यूशन के साथ जरूर आ गई. कर्जदारों को लेकर चिंता जताई जा रही है, यहां पर रिजर्व बैंको को नहीं बल्कि वित्त मंत्रालय को कुछ कदम उठाने की जरूरत है. जहां तक डाउनग्रेडिंग और ब्याज पर ब्याज वसूलने की बात है, हमें इस पर चर्चा करनी चाहिए. कोरोना महामारी की वजह से पूरी इंडस्ट्री मुश्किल दौर से गुजर रही है।
CREDAI की सुप्रीम कोर्ट में दलील
रियल एस्टेट कंपनियों की संस्था CREDAI तरफ से कपिल सिब्बल ने कहा कि मौजूदा लोन रीस्ट्रक्चरिंग से 95 फीसदी कर्जदारों को कोई फायदा नहीं होगा. कर्जदारों को डाउनग्रेड किया जा रहा है, उसे रोकना चाहिए और जो ब्याज पर ब्याज वसूला जा रहा है, उस पर रोक लगनी चाहिए. साथ ही लोन मोरेटोरियम स्कीम को आगे बढ़ाया जाना चाहिए।
समिति में ये हैं शामिल
भारत के पूर्व नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक राजीव महर्षि की अध्यक्षता में गठित समिति में दो अन्य सदस्य आईआईएम अहमदाबाद के पूर्व प्रोफेसर और रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति के पूर्व सदस्य डॉ. रवींद्र ढोलकिया, भारतीय स्टेट बैंक और आईडीबीआई बैंक के पूर्व प्रबंध निदेशक बी. श्रीराम शामिल हैं. समिति कोविड-19 अवधि के दौरान कर्ज किस्त पर दी गई छूट अवधि में ब्याज और ब्याज पर ब्याज से राहत दिए जाने का राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था और वित्तीय स्थिरता पर पड़ने वाले प्रभाव का आकलन करेगी. समिति समाज के विभिन्न वर्गों पर पड़ने वाले वित्तीय संकट को कम करने और उपायों के बारे में भी सुझाव देगी।