कुछ भी कहो काफी अपमान काफी अभद्र टिप्पणी काफी तेज धारदार आलोचनाओं के बाद राहुल ने साबित कर ही दिया की बीजेपी द्वारा सम्बोंधित पप्पू पास हो ही गया कहते हैं कि “घूर के दिन भी बहुरते हैं”।
लेकिन बीजेपी के गप्पू को उसने ऐसी वैसी पटखनी नही दी है , उसने “सौ सुनार की और एक लोहार की” कथनी को चरिर्थात कर दिया , और गप्पू चारों खाने चित हो गया।
और रही बात टप्पू की तो चुनाव परिणाम के एक दिन पूर्व तक टप्पू एण्ड टीम राहुल को पप्पू ही मानते रहे, जो राहुल को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार तो दूर महागठबन्धन का नेता तक मानने को तैयार नहीं थे, यही नहीं एक दिन पूर्व विपक्षी दलों की बैठक तक में भी शामिल नहीं हुये, वो परिणामों देखते – देखते इतने परिवर्तित हो गये कि वो एक और एक ग्यारह के मेल के लिये आतुर दिखे।
लेकिन इस बार ईवीएम बाबा भी चमत्कार नहीं कर पाये। बस कांटे की टक्कर तक ही साथ देते दिखाई पड़े , लेकिन उसे परिणामों में तप्दील नही कर पाये। “राह बड़ी कठिन पनघट की” ।