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Wednesday, May 8, 2024

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संपादक की कलम से – क्यों कर चुनाव के इर्द गिर्द ही ‘राम’ और ‘अयोध्या’ याद आते हैं ?

आज के दौर में न किसी को ‘राम’ से काम . न ही किसी को अयोध्या से लेना देना है, सिर्फ बस सिर्फ थोथी राजनीति को राम नाम से चमकाने का काम किया जाता है ?

जिस राम के नाम का उपयोग करके लोग धर्म के रास्ते से राजनीति के गलियारे से गुजरते हुये सरकार तक पहुँचे, सरकार में पहुँच सत्तासुख भोगा, लेकिन राम मन्दिर के निर्माण के लिये सरकार की ओर से कोई सार्थक कदम नहीं उठाया गया आखिर क्यों ?

बस राम के नाम पर और राम मन्दिर निर्माण के नाम से सरकारें तो बनी लेकिन जिस राम मन्दिर निर्माण को शीर्ष पर रख कर चुनाव लड़े गये और राजनीतिक कद बढ़ाया गया, और यही नहीं राम के नाम पर जनता के वोट बटोरे गये पर जिस जनता ने अपना बहुमूल्य समर्थन वोट के माध्यम से दिया, लेकिन उसके बदले उसे आज तक क्या मिला सिर्फ बस सिर्फ धोका, लेकिन राम मन्दिर अभी तक नहीं मिला ।

क्या राम नाम के सहारे भावनात्मक वोटों की राजनीति की जायेगी या कुछ जमीनी स्तर पर भी किया जायेगा ? क्या यही लॉलीपॉप सत्ता की कुंजी पाने का सहज रास्ता है ? हद तो ये है कि जिस उत्तर प्रदेश के लोगों को ‘भैय्या’ नाम से सम्बोधित कर अपमानित करने में कोई कोर कसर बाकी नहीं रखते हैं , वो वहाँ जाकर अपना राजनीतिक कद बढ़ाने में भी पीछे नहीं रहे।

ये कैसी राजनीति है हिन्दी से और हिन्दीभाषी से बैर हिन्दुत्व का मुद्दा शीर्ष पर ? जिस धरती पर राम ने यदि जन्म लिया तो वो भगवान, लेकिन उस घरती पर जन्मे लोग शैतान ? ये कैसी सोच और विचारधार की नीति और रीत है ?

क्या साम्प्रदायिक सौहाद्र को बिगाड़ कर , घर्म और जाति के भेदभाव के सहारे ही सत्ता तक पहुँचना ही एक सरल माध्यम दिखता है ? क्या हमारे देश में इसके अलावा क्या कोई और मुद्दे नहीं बचे ? क्या कोई और मूलभूत मुद्दा दिखाई नहीं देता जो गरीबों से जुड़ा हुआ हो ? क्या गरीब, बेरोजगार, मजदूर, किसान आदि की समस्यायें समाप्त हो चुकी हैं ? 

क्यों कर जनता के मूलभूत मुद्दे को ऐसी धार नही दी जाती,  जिससे जनता का सरोकार है ? क्या सच मायने में जनता से उसकी जरूरत पूँछी जाती है कि आखिर उसे सबसे ज्यादा किस चीज की जरूरत है ? यदि इस विषय पर गम्भीरता से विचार किया गया होता तो सायद देश को सबसे ज्यादा लाभ हुआ होता ।

– मानवाधिकार अभिव्यक्ति

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