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Saturday, June 1, 2024

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संपादक की कलम से खाश विश्लेषण – एनसीपी बनायेगी सरकार ? मुख्यमंत्री होगा शिवसेना का ? कांग्रेस के समर्थन पत्र का इंतजार – अजीत पवार

सौ. चित्र लोकमत

संपादक – रवि जी. निगम

महाराष्ट्र की राजनीति का शिलशिलेवार विश्लेषण-

मुम्बई (महाराष्ट्र) – महाराष्ट्र के राजनीतिक घटनाक्रम को देखते हुये राजनीतिक परिपेक्ष में ये विश्लेषण करना कहीं अनुचित नहीं होगा ।

कि महाराष्ट्र में सरकार बनाने को लेकर चर्चा गरम है, शिवसेना ने अपने स्टैण्ड में कायम रहते हुये बीजेपी को तो इस चर्चा से बाहर कर दिया, वहीं उसके बाद ये कयास जोरों पर थे कि सायद अब राज्य में जल्द एक सरकार मिलने जा रही है शिवसेना, एनसीपी – कॉंग्रेस के रूप में, ये चर्चा तब जोरों आ गयी, जब बीजेपी ने राज्यपाल के समीप जाकर ये स्पष्ट कर दिया कि वो सरकार बनाने में असमर्थ है, जिसके पश्चात राज्यपाल ने शिवसेना को सरकार बनाने का न्यौता दिया कि वो लगभग २४ घण्टे में अपनी इच्छा क्षमता के साथ स्पष्ट करें कि वो सरकार बना सकती है।

विदित हो कि कई दिनों की उठापटक के बाद चर्चा इस ओर अग्रसित हो गयी की क्या महाराष्ट्र राष्ट्रपति शासन की ओर अग्रसर हो रहा है, ज्ञात हो कि बीजेपी जो गत २०१९ विधानसभा चुनाव में १०५ सीट प्राप्त कर सिंगल लॉरजेस्ट पार्टी के रुप में उभरी, वहीं ५६ सीट लेकर शिवसेना सेकण्ड लॉरजेस्ट पार्टी और ५४ सीट व ४४ सीट लेकर एनसीपी तीसरी व काँग्रेस चौथे पायदान पर पहुंची।

इसी बीच राज्यपाल द्वारा सरकार गठन को लेकर संवैधानिक कदम उठाया गया और बीजेपी को सिंगल लॉरजेस्ट पार्टी होने के नाते उसे सरकार गठन का न्यौता साँपा गया था लेकिन शिवसेना के अपने स्टैण्ड पर कायम रहते सरकार बनाने की असमर्थता राज्यपाल के समक्ष जाहिर करनी पड़ी।

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जिसके पश्चात राज्यपाल ने न्यौता शिवसेना को दिया जिसके बाद राजनीतिक गहमा-गहमी और तेज हो गयी, बैठकों का दौर भी चरम पर पहुॅच गया, मीडिया में भी कौतुहल बढ़ता दिखाई दिया और ये उत्सुक्ता भी बढ़ गयी की कभी भी एनसीपी – कॉग्रेस का समर्थन पत्र जारी हो सकता है और शिवसेना समर्थन पत्र के साथ राज्यपाल से मुलाकात कर सकती है, उसी बीच एनसीपी ने शिवसेना को समर्थन देने की मंशा ये कहते हुये जाहिर की कि शिवसेना के यदि एनसीपी – कांग्रेस का समर्थन चाहती है तो उसे बीजेपी से पूरी तरह से संम्बन्ध खत्म करने होगें और एनडीए से बाहर निकलना होगा, शिवसेना ने समय न गवाते हुये अपना मत स्पष्ट कर दिया कि केन्द्र सरकार में एक मात्र मंत्री सासंद अरविन्द सावंत केन्द्र सरकार में अपने मंत्री पद से इस्तीफा देगें और इसका ऐलान स्वतः अरविन्द सावंत की ओर से ही किया गया और उन्होने अपना इस्तीफा पीएम मोदी को ये आरोप लगाते हुये सौंप दिया कि बीजेपी ने हमारे पक्ष प्रमुख को झूठा करार दिया है जिससे वो आहत होते हुये अपना मंत्री पद से इस्तीफा दे रहे हैं साथ ही पत्रकारों को ये भी अवगत कराया कि अब महाराष्ट्र में सरकार गठन का रास्ता साफ हो गया ।

लेकिन एनसीपी – काँग्रेस में समर्थन को लेकर उहापोह की स्थिति बरकरार रही और बैठकों का दौर जारी रहा , उधर शिवसेना सब कुछ खोकर इसी आस में इन्तजार की घड़ी को टकटकी लगाकर देख रही थी कि वो कौन सा वक्त होगा जब समर्थन पत्र उसे हासिल होगा वहीं शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे भी एनसीपी प्रमुख शरद पवार के साथ बैठके करते नजर आये यही नहीं उन्होने शरद पवार के अलावा काँग्रेस अध्यक्षा सोनिया गाँधी से भी फोन पर वार्ता की, वार्ता में क्या बातचीत हुई ये स्पष्ट नही हुआ लेकिन समर्थन पर सहमति जल्द स्पष्ट होगी ये खबर मीडिया में छायी रही ।

लेकिन राज्यपाल द्वारा शिवसेना को सोमवार सायं ७ः३० बजे तक का वक्त दिया गया व सरकार बनाने की इच्छा व शक्ति जाहिर करनी थी। लेकिन समय खिसकता जा रहा था और सेना की पेशानियों पर बल बढ़ता जा रहा था अन्ततोगत्वा शिवसेना को राज्यपाल के समक्ष जाकर समय सीमा बढ़ाने की माँग के लिये जाना पड़ा क्योंकि सेना के पास इसके अलावा दूसरा कोई और विकल्प ही नही बचा था , लेकिन राज्यपाल ने समय सीमा बढ़ाने पर अपनी असमर्थता जाहिर की।

वहीं राज्यपाल ने एनसीपी को न्यौता देते हुये अगले दिन ८:३० बजे तक सरकार बनाने की स्थिति साफ करने को कहा है आज सायं ८:३० बजे तक एनसीपी को अपनी इच्छा और शक्ति बल राज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत करनी है।

एक अनुमान के मुताबिक विश्लेषण –

आज सायं ८:३० बजे तक एनसीपी अपनी इच्छा और शक्ति बल राज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत कर देगी इसकी संभावना मजबूत दिखाई दे रही है या फिर काँग्रेस के न्यौते के बक्त को भी उपयोग कर सकती है ?

एनसीपी – काँग्रेस गठबन्घन की सरकार बननी तय है वहीं ये भी तय है कि मुख्यमंत्री भी शिवसेना का ही होगा …

कारण क्या है ?

यदि इसको पूरे घटना चक्र के साथ देखा जाय तो ये साफ स्पष्ट हो जाता है कि ये संभावना प्रबल है कि सरकार एनसीपी – काँग्रेस की ही बनेगी लेकिन इस सच्चाई को भी नकारा नहीं जा सकता है कि मुख्यमंत्री शिवसेना का ही होगा।

आप पूछेंगे वो कैसे ?

तो वो ऐसे कि काँग्रेस-एनसीपी ने निर्णय आने के पश्चात से शिवसेना के स्टैण्ड का समर्थन उसके पहले ही दिन से ही कर दिया था, लेकिन यहाँ ये देखना भी था कि दोनों ही पार्टियाँ अपने घुर विरोधी पार्टी शिवसेना को समर्थन किस आधार पर दे सकती हैं इस पर दोनों ही पक्ष के बीच असमंजस की स्थिति बनी हुई थी, तब दोनों पार्टी के बीच ये सहमति बनी कि कुछ भी हो लेकिन बीजेपी को सत्ता से दूर ही रखना होगा और इसी के साथ ये बयान दोनों ही पक्षों की ओर से पुरजोर तरीके से बुलन्द किया गया कि भले ही शिवसेना का मुख्यमंत्री हो लेकिन बीजेपी को सत्ता से दूर रखा जाना काँग्रेस-एनसीपी को महाराष्ट्र में जीवन्त बनाये रखने के लिये अत्यन्त जरूरी।

इसी कड़ी का ही हिस्सा है ये नाटकीय दौर

जब बीजेपी ने अपनी सारी अंक गणित लगा और किसी भी सूरत में सरकार न बना पाते देख अपने हथियार डाल दिये तो अब इन दोनों पार्टियों ने केन्द्र बिन्दु शिवसेना को बनाया और बॉल कभी इघर तो कभी उघर कभी एनसीपी – कभी काँग्रेस के पाले में डाल शिवसेना को राज्यपाल द्वारा दिये वक्त को कैसे उसके हाथ से निकाला जाये उसका अभ्यास शुरू कर दिया, क्योंकि इन दोनों ही पार्टियों को पूरी उम्मीद थी कि राज्यपाल दूसरे बड़े गठबन्धन को हो सकता है पहले न्यौता दे दे लेकिन ऐसा हुआ नही और मौका सेना को मिल गया।

जो दोनों ही पार्टी की मंशा पर पानी फेर गया लेकिन दोनों की उम्मीद नही टूटी और वक्त का इतंजार करना ही उचित समक्षा ।

आपको बताते चलें कि एनसीपी हो या कॉंग्रेस ये कतई नहीं चहते है कि उनकी विचारधारा पर किसी भी प्रकार का कोई सवाल उठे और साथ ही ये भी नही चाहते हैं कि राज्य की जनता के बीच ऐसा कोई संदेश जाये कि एनसीपी – कॉंग्रेस ने सत्ता सुख के खातिर अपनी विचारधारा को ही तिलाजंलि दे दी साथ ही ये भी संदेश नहीं जाने देना चहेगी की उसने शिवसेना को धोखा दिया, जिसके प्रथम कड़ी थी एनडीए से उसका अलग कराना उसके पश्चात सेना को उस स्तर पर ला खड़ा करना जहाँ सेना बिना शर्त के एनसीपी – काँग्रेस की सशर्त एजेण्डे पर काम करने के लिये तैयार हो ।

क्योंकि सेना के सामने अब अपनी दांव पर लगी प्रतिष्ठा को बचाने की अत्यथिक आवश्यकता है और वहीं यदि सेना वापिस अपनी जिद्द पर अड़ती है तो एनसीपी – काँग्रेस के खोने के लिये बहुत कम है लेकिन सेना के लिये बहुत कुछ है।

अब एनसीपी – कॉंग्रेस के पाले में गेम है अब एनसीपी – कॉंग्रेस शिवसेना के साथ ये डील कर सकते हैं, प्रथम – कि वो उद्वव ठाकरे को मुख्यमंत्री तो बना सकते हैं लेकिन सरकार एनसीपी – कॉंग्रेस की ही होगी जिससे आपका मान भी बना रहेगा और हमारी विचारधारा की प्रतिष्ठा भी बरकार रहेगी, इससे आपका हक आपको मिल जायेगा और जनता के बीच हमारा दिया गया बयान भी बरकरार रहेगा कि मुख्यमंत्री शिवसेना का होना चाहिये इससे ये वचन भी सार्थक होगा कि राज्य को वैकल्पिक सरकार देने के लिये एनसीपी – कॉंग्रेस विचार करेगी। साथ ही एनसीपी का डिप्टी सीएम और विधानसभा अध्यक्ष व गृहमंत्री काँग्रेस का और बाकी के मंत्री पद तीनों के हिस्से में बराबर बांटे जायें इस तरह की भी डील हो सकती है।

दूसरा विकल्प या डील ये हो सकती है कि जो मांग शिवसेना बीजेपी करती आ रही है उसी प्रारूप में सरकार का गठन एनसीपी – काँग्रेस व शिवसेना सरकार हो , ढाई साल एनसीपी का मुख्यमंत्री ढाई साल शिवसेना का मुख्यमंत्री और दोनों ही टर्म में कांग्रेस का विधानसभा अध्यक्ष और गृहमंत्री और बाकी के मंत्री पद तीनों के हिस्से में बराबर बांटे जायें इस तरह की भी डील हो सकती है। या ढाई साल काँग्रेस का मुख्यमंत्री ढाई साल शिवसेना का मुख्यमंत्री और दोनों ही टर्म में एनसीपी का विधानसभा अध्यक्ष और गृहमंत्री और बाकी के मंत्री पद तीनों के हिस्से में बराबर बांटे जायें।

लेकिन इस प्रकार के गठन के लिये वक्त भी लग सकता है क्योंकि इसके अलावा कॉमन-मिनिमम प्रोग्राम भी तैयार करने में वक्त लग सकता है।

यदि ये संभावनाये सच साबित होती है तो राजनीति में एक और वर्चश्व का फैसला होगा निर्धारित । ज्ञात हो कि इसके सूत्रधार या रणनीतिकार यदि कोई है तो ये कहना गलत नहीं होगा कि वो एनसीपी प्रमुख शरद पवार को ही इंगित करता है।

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