आज हमारा देश गर्व के साथ ‘बापू’ यानि महात्मा मोहनदास कर्मचन्द गाँधी की १५०वीं जयंती बड़े धूम-धाम से मना रहा है । इस जयंती के पीछे कुछ यादें जुड़ी हुई हैं , आज देशवासी उन्हें उनके द्वारा देश की खातिर त्याग , तपस्या , समर्पण और उनके बलिदान के लिये याद करता है और रहेगा ।
ये वो कर्मयोद्धा थे जिन्होने उच्चशिक्षा ग्रहण करने के पश्चात भी ऐशो-आराम की जिन्दगी यापन करने के बजाय एक सहज और सरल मानव की तरह सच्चे दिल से देश की पूजा की , वे सदैव अहिंसा के पुजारी की तरह ही अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ते रहे, उन्होने मात्र एक लाठी और एक घोती के बल पर अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराने के लिये आजादी की लड़ाई लड़ी, उन्होने उस लाठी का इस्तेमाल कभी भी हिंसा के लिये नहीं किया, और अपनी कुशल नीति से देश को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराने में सफल हुये, और अपना सर्वत्र देश को न्योछावर कर दुनियाँ से अलविदा हो गये।
इसी पर एक गीतकार ने अपनी रचना के माध्यम से उनके व्यक्तित्व को कुछ इस तरह उकेरा ”दे दी हमें आजादी बिना खड्ग बिना ढाल , सावरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल” ये पंक्तिया आज भी हर देशवासी के मस्तिष्क पटल पर गूँजायेमान होती रहती है।
मगर अफ़शोस देश में कुछ ऐसे भी लोग हैं जो उनकी विचारधारा से भिन्न विचार रखते हैं, यही नहीं उनकी आलोचनायें भी मुखर हो कर करते हैं , उनका सारा जीवन ही उनकी आलोचना में व्यतीत हुआ, लेकिन कहते हैं न कि ‘सत्ता जो न कराये वो थोड़ा है’।
आज गांधी जी की पंक्तियाँ यथार्थ की गहराई में चरिथार्थ होते दिख रही है –
लेकिन एक कडुवी सच्चाई ये भी है कि जो कभी ‘बापू’ को लेकर अपशब्दों का इस्तेमाल किया करते थे सोशल मीडिया पर अभद्र टिप्पणियाँ किया करते थे आज वो मौन है ? अब सत्ता और कुर्सी इतना भा रही है कि उसको बचाये रखने के लिये मीलों पदयात्रा की जा रही है ।
जिस बापू ने एक लाठी और एक घोती के दम पर आज भी करोड़ों लोगों के दिल पर राज कर रखा है , अब उन्हें डर सता रहा है कि कहीं ये चली गयी तो लाखों के सूट का क्या होगा ?
क्योंकि एक की तो पदयात्रा वाजिब लगती है क्योंकि उन्होने बापू की विचारधारा पर ही चलकर देश की आजादी में अपनी अहम भूमिका निभाई , लेकिन उस विचारधारा का क्या हुआ जिसका जन्म ही विपरीत विचारधारा में ही हुआ ? आखिर इसे कौन सी संज्ञा दी जायेगी या दी जानी चाहिये ? वो कौन सा कारण है जिसने ये सब करने में मजबूर किया ?
इस पर सोचें और विचार करें . . . . .आखिर ऐसा क्यों ?