रिपोर्ट -विपिन निगम
लखनऊ(यूपी): भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस का दम भर रही योगी सरकार ने यदि आबकारी विभाग की फाइलें पलटीं तो पिछली सरकारों का एक और कारनामा उजागर हो सकता है। शराब कारोबारियों को अनुचित मुनाफे का जिक्र कर नियंत्रक महालेखापरीक्षक (सीएजी) ने शराब कारोबारियों के साथ तत्कालीन आबकारी अधिकारियों के गठजोड़ का इशारा किया है। रिपोर्ट में जांच की संस्तुति भी की है। सीएजी की रिपोर्ट में वर्ष 2008 से 2018 तक की आबकारी नीति का अध्ययन कर निष्कर्ष दिए गए हैं, जिसमें 24805.96 करोड़ रुपये का वित्तीय प्रभाव बताया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि डिस्टलरियों और ब्रेवरी के संचालकों को भारत निर्मित विदेशी शराब व बीयर के दाम निर्धारित करने का अधिकार दे दिया गया था, जिसकी वजह से शराब कारोबारियों को अनुचित लाभ मिला और सरकारी खजाने को नुकसान हुआ। इसके साथ ही फुटकर दुकानों के गलत तरीके से नवीनीकरण सहित विशिष्ट जोन का उल्लेख है। कहा गया है कि विशिष्ट जोन में शराब तस्करी रोकने के नाम पर वह जिले शामिल कर लिए गए, जो पड़ोसी राज्यों की सीमा से सटे नहीं है, जबकि सीमा वाले जिले छोड़ दिए गए। खास बात यह है कि महालेखाकार ने इन सभी मामलों में संबंधित अधिकारियों की जवाबदेही तय करने के लिए जांच की संस्तुति की है। इसके साथ ही सुझाव दिया है कि अनुचित रूप से शराब कारोबारियों ने जो लाभ कमाया है और उसके सापेक्ष सरकार को जो शुल्क नहीं मिला, उसकी वसूली भी विभाग को करनी चाहिए। चूंकि रिपोर्ट में एक-एक तथ्य को उजागर किया है, इसलिए यदि सरकार ने इस आधार पर जांच कराई तो सपा-बसपा काल में जिम्मेदार पदों पर रहे कई अधिकारियों की गर्दन फंस सकती है।