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Thursday, May 2, 2024

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हाथरस केस – हाईकोर्ट ने पीड़ित परिवार का पक्ष सुना, सरकार को लताड़ लगाते हुए कहा जो गरीब के साथ किया वो अमीर के साथ करते

लखनऊ – आज हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच द्वारा हाथरस घटना की पीड़िता के परिवार की मर्जी के बिना और रातों-रात अंतिम संस्कार कराने के मुद्दे पर सुनवाई हुई। पीड़ित परिवार की ओर से अधिवक्ता सीमा कुशवाहा ने परिवार का पक्ष रखा और शासन पर आरोप लगाया कि बिना सहमति के पीड़िता का अंतिम संस्कार किया गया। वहीं पीड़िता के परिजनों के अलावा कई अधिकारी भी कोर्ट में मौजूद रहे। सीओ और मजिस्ट्रेट की निगरानी में पीड़ित परिवार से पांच लोग कोर्ट के सामने पेश हुए और अपना बयान दर्ज कराया। अगली सुनवाई 2 नवंबर को होगी। 

ज्ञात हो कि छह गाड़ियों के काफिले के साथ पीड़ित परिवार के पांच सदस्य और एसडीएम अंजली गंगवार, सीओ शैलेन्द्र बाजपेयी, जनपद के डीएम प्रवीन लक्ष्यकार व एसपी भी पीड़ित परिवार के साथ लखनऊ पहुंचे। उक्त मामला न्यायमूर्ति पंकज मित्तल व न्यायमूर्ति राजन रॉय की खंडपीठ की उपस्थिति में ‘गरिमापूर्ण ढंग से अंतिम संस्कार के अधिकार’ टाइटिल के तहत सूचीबद्ध किया गया।

विदित हो कि ये मामला 1 अक्तूबर को हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने स्वतः संज्ञान लेते हुए, अपर मुख्य सचिव गृह, पुलिस महानिदेशक, अपर पुलिस महानिदेशक कानून व्यवस्था, जिलाधिकारी हाथरस और पुलिस अधीक्षक हाथरस को तलब किया था। साथ ही न्यायालय ने मृतक पीड़िता के मां-पिता, भाई व बहन को भी हाजिर होने को कहा था, ताकि अंतिम संस्कार के सम्बंध में उनके द्वारा बताए तथ्यों को भी जाना जा सके। इतना ही नहीं न्यायालय ने अधिकारियों को मामले से सम्बंधित दस्तावेज इत्यादि लेकर उपस्थित होने का भी आदेश दिया था।

वहीं पीड़िता की अधिवक्ता सीमा कुशवाहा ने पत्रकारों को कोर्ट की कार्यवाही साझा करते हुए, बताया कि न्यायालय ने पीड़ित परिवार का पक्ष सुना तथा राज्य सरकार से पूंछा कि आपने ऐसा क्यों किया तो जवाब में लॉ एंड ऑर्डर फेल होने का हवाला दिया, जबकि सर्वविदित है कि वहाँ 50-60 लोग ही उपस्थित थे, वहीं 300 सौ से 400 सौ पुलिसकर्मी मौजूद थे और सारा का सारा इलाका और बॉर्डर सील था तो लॉ एण्ड ऑर्डर बिगडने का सवाल ही कहाँ से उठता था, साथ ये भी बताया कि न्यायालय ने एडीजी लॉ एण्ड ऑर्डर प्राशांत कुमार की टिप्पणी की भी आलोचना की जिसमें उन्होने फॉरेंसिक जांच का हवाला देते हुए कहा था कि रिपोर्ट में सीमन की मौजूदगी नहीं प्राप्त हुई, जिसपर कोर्ट ने 2013 को धारा 375 में संशोधन का और 2018 का जिक्र किया, उसे पढने के बाद ही सार्वजनिक तौर पर बयान देना चाहिये, इतना ही नहीं सरकार को लताड़ लगाते हुए कहा कि जो गरीब परिवार के साथ वर्ताव किया वो अमीरों के भी साथ किया जाता, जबकि सबको संविधान ने समानता का अधिकार प्रदान किया है।

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