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Wednesday, March 26, 2025

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गिरफ्तारी का आधार बताना अनिवार्य: सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में स्पष्ट किया कि किसी अभियुक्त को उसकी गिरफ्तारी के आधार के बारे में सूचित करना सिर्फ औपचारिकता नहीं, बल्कि एक अनिवार्य संवैधानिक आवश्यकता है। यदि पुलिस इस प्रक्रिया का पालन नहीं करती, तो यह संविधान के अनुच्छेद 22 के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा।

गिरफ्तार व्यक्ति को जानकारी देना अनिवार्य

जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस एन कोटिस्वर सिंह की पीठ ने कहा कि गिरफ्तार और हिरासत में लिए गए प्रत्येक व्यक्ति को जल्द से जल्द गिरफ्तारी के कारण बताए जाने चाहिए।

यह फैसला वित्तीय धोखाधड़ी के एक मामले में आरोपी विहान कुमार की गिरफ्तारी से जुड़ा था।
✔ पीठ ने इस गिरफ्तारी को असंवैधानिक करार दिया और संविधान के अनुच्छेद 22(1) के उल्लंघन का मामला माना।
✔ कोर्ट ने विहान कुमार की तत्काल रिहाई का आदेश दिया।

संविधान के अनुच्छेद 22(1) का महत्व

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में संविधान के अनुच्छेद 22(1) की अनिवार्यता को रेखांकित किया।

गिरफ्तारी के कारणों की जानकारी स्पष्ट और समझने योग्य भाषा में दी जानी चाहिए।
यह सुनिश्चित किया जाए कि अभियुक्त को गिरफ्तारी के कारणों का पूरा ज्ञान हो।
संचार का तरीका ऐसा हो कि संवैधानिक सुरक्षा का उद्देश्य पूरा हो सके।

जस्टिस ओका ने कहा:

“जब कोई गिरफ्तार अभियुक्त अनुच्छेद 22(1) के उल्लंघन का आरोप लगाता है, तो यह साबित करने की जिम्मेदारी जांच अधिकारी और एजेंसी की होती है कि इस अनुच्छेद का पालन किया गया है।”

अगर पुलिस ऐसा करने में विफल रहती है, तो गिरफ्तारी को अवैध माना जाएगा।
यह अभियुक्त के व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन होगा।
संविधान की गारंटी का पालन न करने पर गिरफ्तारी को अमान्य घोषित किया जाएगा।

मजिस्ट्रेट का भी कर्तव्य

अगर गिरफ्तार व्यक्ति को न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाता है, तो यह मजिस्ट्रेट की जिम्मेदारी है कि वह देखे कि अनुच्छेद 22(1) और अन्य संवैधानिक प्रावधानों का पालन हुआ या नहीं।
✔ अगर अनुच्छेद 22(1) का उल्लंघन सिद्ध हो जाता है, तो न्यायालय को तुरंत आरोपी की रिहाई का आदेश देना चाहिए।
✔ यह जमानत देने का एक मजबूत आधार होगा।

अस्पताल में आरोपी को हथकड़ी लगाने पर नाराजगी

✔ कोर्ट ने पाया कि इस मामले में पुलिस ने आरोपी के साथ अमानवीय व्यवहार किया।
✔ उसे हथकड़ी लगाकर अस्पताल ले जाया गया और अस्पताल के बिस्तर से जंजीरों से बांध दिया गया।

सुप्रीम कोर्ट ने इसे अनुच्छेद 21 का उल्लंघन बताया और कहा:

“गरिमा के साथ जीने का अधिकार हर नागरिक का मौलिक अधिकार है।”

हरियाणा सरकार को आदेश दिया गया कि वह पुलिस के लिए सख्त दिशानिर्देश जारी करे।
यह सुनिश्चित किया जाए कि भविष्य में ऐसी घटनाएं दोबारा न हों।

निष्कर्ष:

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला संवैधानिक अधिकारों की रक्षा में एक अहम कदम है।

गिरफ्तारी के कारणों की जानकारी देना अनिवार्य है।
संविधान के अनुच्छेद 22(1) का पालन न करने पर गिरफ्तारी अवैध मानी जाएगी।
मजिस्ट्रेट को भी यह सुनिश्चित करना होगा कि गिरफ्तारी संवैधानिक प्रक्रिया के तहत हुई हो।
पुलिस द्वारा अमानवीय व्यवहार की घटनाओं पर सख्त कार्रवाई होगी।

यह फैसला भारत में कानून व्यवस्था और मानवाधिकारों को मजबूती देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

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