दिल्ली विधानसभा चुनाव में भा.ज.पा. ने अपने चुनाव प्रचार को बहुत सक्रिय तरीके से चलाया है। प्रदेश अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने दावा किया है कि चुनाव की घोषणा के बाद से भाजपा कार्यकर्ताओं ने 1.25 लाख ड्राइंग रूम बैठकें की हैं, जिनमें दिल्लीवासियों को समझाया गया है कि भाजपा का सत्ता में आना दिल्ली के लिए कैसे बड़ा कदम हो सकता है।
वहीं, आम आदमी पार्टी (आप) ने महिला मतदाताओं पर फोकस किया है और कांग्रेस ने शीला दीक्षित के शासन काल वाली दिल्ली को वापस लाने का वादा किया है। जनता अब देखेगी कि किसके वादे को वह अपने वोट से समर्थन देती है, जिसका पता 8 फरवरी को चुनाव परिणामों से चलेगा। वोटिंग 5 फरवरी को होगी।
दलित सीटों का महत्व
दिल्ली में अनुसूचित जाति (एससी) के लिए 12 सीटें आरक्षित हैं। पिछली बार आम आदमी पार्टी ने इन सभी सीटों पर जीत हासिल की थी। हालांकि, अब वाल्मीकि समुदाय के लोगों की नाराजगी और अमृतसर में बाबा साहब अंबेडकर की प्रतिमा के साथ छेड़छाड़ के बाद इन वोटरों का रुख किस ओर होगा, यह एक अहम सवाल बन चुका है। भाजपा का दावा है कि इस बार दलित समुदाय उसका समर्थन करेगा, जबकि केजरीवाल ने खुद को दलितों के लिए सबसे ज्यादा काम करने वाला नेता बताया है। कांग्रेस भी मानती है कि दलित समाज अब भाजपा-आप की राजनीति से परेशान होकर उसकी ओर लौट रहा है।
वीरेंद्र सचदेवा का वोट डालने का संकल्प
वीरेंद्र सचदेवा ने बताया कि वे 5 फरवरी को सुबह 7 बजे पूर्वी दिल्ली के एक बूथ पर अपना वोट डालेंगे। उनका कहना था कि उनके वोट के साथ ही वे दिल्ली को कुशासन से मुक्त करने की शुरुआत करेंगे। भाजपा ने अपने कार्यकर्ताओं से अपील की है कि वे सुबह सात बजे से मतदान करवा कर इस दिशा में योगदान दें।
चुनाव में किसका पलड़ा भारी होगा?
अब देखना यह होगा कि दिल्लीवासी किस पार्टी के वादों के साथ जाएंगे, और किसका जनाधार मजबूत होगा। 8 फरवरी को परिणाम से इस बात का पता चलेगा।