इस्राइल के रक्षा विशेषज्ञ इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि 15 नवंबर को एक इस्राइली अरबपति के तेल टैंकर पर हुआ हमला ईरान में बने ड्रोन से किया गया। हमले में इस्तेमाल हुआ ड्रोन शाहेद-136 था। इस घटना में कोई जख्मी नही हुआ, लेकिन ड्रोन ने जहाज में छेद कर दिया। विशेषज्ञों का कहना है कि इस ड्रोन के जरिए 80 किलोमग्राम के हथियार दागा गया, उसे देखते हुए जहाज को हुआ नुकसान कम ही माना जाएगा।
अमेरिकी थिकं टैंक योर्कटाउन इंस्टीट्यूट में सीनियर फेलॉ स्टीफन ब्रायन के मुताबिक यह पहला मौका नहीं है, जब ईरान किसी इस्राइली तेल टैंकर को निशाना बनाया हो। लेकिन यह पहला मौका है, जब ऐसा हमला किसी मिसाइल या लिम्पेट माइन के बजाय ड्रोन से किया गया। अब तक यह माना जाता था कि ईरान के शाहेद ड्रोन चलते हुए वाहन पर हमला करने में सक्षम नहीं हैं, क्योंकि इनमें कैमरा या रडार या ऑनबॉर्ड सेंसर नहीं लगे हुए हैं।
वेबसाइट एशिया टाइम्स पर छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक स्टीफन ब्रायन ने यह सवाल उठाया है कि अगर शाहेद में वे उपकरण नहीं हैं, जो उसने चल रहे इस्राइली जहाज को कैसे पहचान और सटीक निशाना साधा? ब्रायन के मुताबिक इस हमले के बाद फारस की खाड़ी और लाल सागर या काला सागर से गुजरने वाले जहाजों की सुरक्षा को लेकर गहरी चिंता पैदा हो गई है।
ईरान ने शाहेद-136 ड्रेन रूस को बेचे हैं। समझा जाता है कि उसने हजारों ड्रोन रूस को दिए हैँ। रूस ने इन ड्रोन्स का इस्तेमाल यूक्रेन पर हमलों के दौरान किया है। पश्चिमी विशेषज्ञों के मुताबिक ईरान ने ड्रोन मुख्य रूप से मुख्य रूप से अमेरिकी इलेक्ट्रॉनिक्स का इस्तेमाल करते हुए तैयार किया है। इसमें 550 एमडी क्षमता के चार गैस सिलिंडर लगे हैं। ये सिलिंडर मूल रूप से जर्मनी में बने थे। लेकिन समझा जाता है कि उसी मॉडल पर चीन में उनका उत्पादन हुआ, जिनका ईरानी ड्रोन्स में इस्तेमाल हुआ है।
वैसे ईरान का दावा है कि उसने सारा उत्पादन अपने देश के अंदर ही किया है। खबरों के मुताबिक रूस ने इन ड्रोन्स के लिए ईरान को नए ऑर्डर दिए हैं, जिनकी सप्लाई के लिए इनका उत्पादन किया जा रहा है।
अब अनुमान लगाया गया है कि इस्राइली जहाज पर हुए हमले में ड्रोन को समुद्रीय तट से 240 किलोमीटर की दूरी से दागा गया। विशेषज्ञों का अनुमान है कि चूंकि इस ड्रोन में कैमरे या अन्य सेंसर नहीं लगे हैं, इसलिए हमले से पहले उसकी प्रोग्रामिंग की गई होगी। समझा जाता है कि इन ड्रोन्स को अधिक मारक बनाने के लिए रूस ने इनमें कुछ सुधार किया है और उस तकनीक को ईरान से साझा किया है। रूसी तकनीक से ये ड्रोन पुराने इंजन से ही अधिक दूरी तक मार करने में सक्षम हो गए हैं।
अब इस्राइल और उसके समर्थक देशों को अंदेशा है कि ईरान न सिर्फ फारस की खाड़ी, काला सागर या लाल सागर में उनके जहाजों को निशाना बना सकता है, बल्कि उग्रवादी संगठनों हिज्बुल्लाह और हमास को भी ये ड्रोन दे सकता है। इससे पश्चिम एशिया में लड़ाई की सूरत बदल जाएगी। ब्रायन ने कहा है- ‘इन कारणों से अमेरिका, नाटो, इस्राइल और अन्य खाड़ी देशों को उभरते खतरे पर अधिक ध्यान देना चाहिए।’