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Wednesday, May 8, 2024

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रणदीप गुलेरिया डॉक्टरों से चर्चा में बोले 85% कोरोना मरीजों को ऑक्सीजन-रेमडेसिविर की जरूरत नहीं !

नई दिल्ली: देश में कोरोना से खराब हालातों के बीच देश के टॉप डॉक्टरों ने कोविड से संबंधित मुद्दों पर बात की. इस बातचीत में दिल्ली AIIMS के डायरेक्टर डॉ. रणदीप गुलेरिया समेत देश के चार बड़े डॉक्टर शामिल हुए. इसमें मेदांता अस्पताल के चेयरमैन, डॉ. नरेश त्रेहान, मेडिसिन एम्स के प्रोफेसर और एचओडी डॉ. नवीन विग, और डायरेक्टर जनरल स्वास्थ्य सेवाएं डॉ. सुनील कुमार कोरोना पर डॉ. गुलेरिया से चर्चा की .

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इस दौरान डॉ रणदीप गुलेरिया ने कहा कि कोरोना की मौजूदा स्थिति में जनता में पैनिक है, लोगों ने घरों में इंजेक्शन, सिलेंडर रखने शुरू कर दिए हैं, जिससे इनकी कमी हो रही है. उन्होंने कहा कि कोरोना आम संक्रमण है, 85-90% लोगों में ये आम बुखार, जुकाम होता है. इसमें ऑक्सीजन, रेमडेसिविर की जरूरत नहीं पड़ती है.

AIIMS के डायरेक्टर डॉ. रणदीप गुलेरिया ने कहा कि जो मरीज घर हैं और जिनका ऑक्सीजन सेचुरेशन 94 से ज़्यादा है उन्हें रेमडेसिविर की कोई जरूरत नहीं है. उन्होंने कहा कि अगर आम रेमडेसिविर लेते हैं तो उससे आपको नुकसान ज़्यादा हो सकता है फायदा कम होगा.

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डॉ रणदीप गुलेरिया का कहना है कि लोगों ने घबराहट में रेमडेसिविर इंजेक्शन की होल्डिंग शुरू कर दी है जिसके चलते इसकी कमी हो गई है. इसकी कालाबाजारी भी होने लगी है. उन्होंने कहा कि कुछ ने ऑक्सीजन की होल्डिंग भी शुरू कर दी है, ये गलत है.

वहीं मेदांता अस्पताल के डॉ नरेश त्रेहान ने रेमडेसिविर को लेकर कहा कि यह कोई मैजिक इंजेक्शन नहीं है. जब सेचुरेशन 95 -97 हो तो ऑक्सीजन की कोई जरुरत नहीं होती है. एकदम से ऑक्सीजन न लगाएं, नहीं तो दिक्कत हो सकती है. हल्के लक्षण के साथ पॉजिटिव आने पर यदि अच्छे से घर में देखभाल की जाए तो आइसोलेशन में ठीक हो सकते हैं.

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डॉ. सुनील कुमार ने कहा है कि सभी जिलों के अधिकारियों को जिले की पॉजिटिविटी रेट की निगरानी करनी चाहिए और इसे 1-5% से नीचे रखने का लक्ष्य रखना चाहिए. मुंबई में एक समय पर 26% पॉजिटिविटी रेट थी लेकिन गंभीर प्रतिबंधों के बाद, यह 14% पर आ गई. दिल्ली अभी 30% पॉजिटिविटी रेट पर संघर्ष कर रहा है. हमें सख्त प्रतिबंध लगाना चाहिए.

वहीं डॉ. नवीन विग कि यदि हमें इस बीमारी को हराना है तो हमें स्वास्थ्यकर्मियों को बचाना होगा. उनमें से कई पॉजिटिव आ रहे हैं. अगर हम स्वास्थ्यकर्मियों को बचाते हैं तो वे रोगियों को बचाने में सक्षम होंगे.

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