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Thursday, May 2, 2024

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संपादक की कलम से – आखिरकार डिप्टी सीएम फार्मूला के बाद ही बनी राजस्थान में बात। —- रवि जी. निगम

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तमाम मीटिंग , चर्चा , बातचीत , बैठकों के बाद राहुल गाँधी ने कार्यकओं के अलावा दो दिग्गज नेतओं के बीच रस्साकसी को विराम देने के लिये आखिरकार डिप्टी सीएम फार्मूलें पर ही निर्णय लेने पर मजबूर होना पड़ा।

ये फैसला 2019 के आम चुनाव के मध्येनजर रखते हुये लेना पड़ा , कांग्रेस नहीं चाहती थी कि राहुल के अध्यक्ष बनने के बाद कई चुनावों के हारने के पश्चात तीन हिन्दी हॉट लाईन राज्यों में बड़ी मसक्कत से हाथ लगी जीत को इतनी आसानी से हाथ से जाने नहीं जाने देना।

राहुल गाँधी बाखूबी जानते थे कि अशोक गहलोत या सचिन पायलट इनमें से किसी भी एक को भी नाराज किया गया तो इसका असर बहुत बुरे परिणाम की ओर ले जा सकता है, क्योंकि दोनों ही दिग्गज अपना – अपना मजबूत जनाधार रखते हैं ।

जहाँ  गहलोत के साथ 45 वर्षों का राजनैतिक, प्रशासनिक अनुभव के अलावा हर नेता के साथ अच्छे संबन्ध जनता में उनकी लोक प्रियता और जातिगत समीकरण के मजबूत आधार ।

वहीं पायलट की नव युवाओं में मजबूत पकड़ के साथ – साथ राज्य में साढ़े चार वर्षों की अभूतपूर्व मेहनत और कठिन परिश्रम , वित्त में खाशा अनुभव , जातिगत समीकरण में मजबूत पकड़ , गुर्जरों का कांग्रेस को सौ प्रतिशत समर्थन देना इसकी प्रमुख वजह । 

यही वो कारण थे कि चुनाव जीतने के पश्चात भी आलाकमान को तीन दिनों तक मथापच्ची करनी पड़ी , राहुल कांग्रेस से उस परम्परा को भी विराम देना चाह रहे थे , कि कांग्रेस पर एक ही परिवार राज हावी रहता है उसके आगे सभी दिग्गज नतमस्तक नजर आते हैं , सरकार तो जनता चुनती है , मगर मुख्यमंत्री को दिल्ली में बैठा एक ही घराना चुनता है।

राहुल इस परम्परा के दाग को धोना चाहते थे कि जनता की चुनी सरकार में जनता का ही चुना मुख्यमंत्री होगा न कि दिल्ली से उतारा गया पैराशूट मुख्यमंत्री , जो जनता के साथ विश्वासघात होता। 

और राहुल ने उस धारणा को मिथक साबित कर दिया , अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री और सचिन पायलट को उप मुख्यमंत्री बनाकर , लेकिन इस फैसले से एक चूक होती नहीं दिख रही ? 

राजस्थान में डिप्टी सीएम फार्मूले वाली सरकार को वरीयता, लेकिन मध्य प्रदेश की जनता को कहीं उसकी उम्मीद से वंचित नहीं किया गया , क्या सिंधिया के अर्न्तमन में इसकी पीड़ा टीसेगी के नहीं , क्या उनके समर्थकों को ये बात कचोटेगी के नहीं ? 

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इसका प्रत्यक्ष प्रमाण तो यही है कि सिंधिया पहले ही इस बात पे नारजगी जाहिर कर चुके हैं कि वो सचिन पायलट से सीनियर हैं और अपने प्रदेश में भी उनका अस्तित्व व वर्चस्व पायलट से कमतर नही है , तो क्या वो इस तरह के दोतरफा फैसले से खुश होगें , तो सायद नही। इसका तो परिणाम 2019 के आम चुनाव के पश्चात ही समझ आ जायेगा ।

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