आईआईटी मद्रास और इसरो ने मिलकर स्वदेशी माइक्रोप्रोसेसर ‘शक्ति’ विकसित किया है, जो भारत को अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इस माइक्रोप्रोसेसर का उपयोग बाहरी अंतरिक्ष में कमांड और नियंत्रण प्रणालियों समेत कई महत्वपूर्ण कार्यों में किया जा सकता है।
शक्ति माइक्रोप्रोसेसर परियोजना का नेतृत्व आईआईटी मद्रास के निदेशक वी. कामकोटि कर रहे हैं। यह परियोजना कंप्यूटर विज्ञान और इंजीनियरिंग विभाग के अंतर्गत प्रताप सुब्रह्मण्यम सेंटर फॉर डिजिटल इंटेलिजेंस एंड सिक्योर हार्डवेयर आर्किटेक्चर में संचालित हो रही है।
क्या है ‘शक्ति’ की खासियत?
- ओपन-सोर्स टेक्नोलॉजी: शक्ति प्रोसेसर का डिजाइन रिस्क-5 (RISC-V) पर आधारित है, जो एक ओपन-सोर्स इंस्ट्रक्शन सेट आर्किटेक्चर (ISA) है।
- स्वदेशी विकास: इसे इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय की ‘डिजिटल इंडिया रिस्क-5’ (DIR-V) पहल के तहत विकसित किया गया है।
- सुरक्षा और आत्मनिर्भरता: इस तकनीक का उद्देश्य माइक्रोप्रोसेसर आधारित स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा देना और उपयोगकर्ताओं के लिए सर्वश्रेष्ठ सुरक्षा और दृश्यता प्रदान करना है।
- विस्तृत उपयोग: शक्ति प्रोसेसर का उपयोग इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) से लेकर रणनीतिक रक्षा जरूरतों और अंतरिक्ष अभियानों में किया जा सकता है।
इसरो और आत्मनिर्भर भारत की दिशा में बड़ी उपलब्धि
आईआईटी मद्रास के निदेशक वी. कामकोटि के अनुसार, स्वदेशी RISC-V कंट्रोलर फॉर स्पेस एप्लिकेशन (IRIS) चिप को शक्ति प्रोसेसर बेसलाइन से विकसित किया गया है। इसरो इस चिप का उपयोग अपने विभिन्न अनुप्रयोगों, कमांड और नियंत्रण प्रणालियों, और अन्य महत्वपूर्ण कार्यों के लिए करेगा।
यह कदम भारत को स्पेस टेक्नोलॉजी में आत्मनिर्भर बनाने और देश में विकसित सेमीकंडक्टर तकनीक को मजबूत करने की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान देगा। शक्ति माइक्रोप्रोसेसर के सफल विकास से भारत को आयात पर निर्भरता कम करने और स्वदेशी रक्षा व अंतरिक्ष उपकरणों के निर्माण में मजबूती मिलेगी।
निष्कर्ष
आईआईटी मद्रास और इसरो का यह संयुक्त प्रयास ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान को मजबूत करेगा। शक्ति माइक्रोप्रोसेसर न केवल भारत के स्पेस सेक्टर में क्रांति लाएगा, बल्कि इसे रक्षा और आईओटी जैसी तकनीकों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला बनाया गया है। आने वाले वर्षों में इस तकनीक के व्यापक रूप से अपनाए जाने की संभावना है, जिससे भारत अंतरिक्ष और रक्षा क्षेत्र में और अधिक मजबूती हासिल कर सकेगा।